विज्ञान को सही ढंग से परिभाषित करने की आवश्यकता है। विज्ञान केवल आराम प्रदान करने का साधन नहीं है, बल्कि यह आवश्यकता की जननी है। विज्ञान का उद्देश्य प्रकृति को समझना, रचनात्मकता और कल्पनाशीलता को बढ़ावा देना और स्थायी विकास के रास्ते तलाशना है। आज विज्ञान और प्रकृति के बीच स्वाभाविक तालमेल को अनदेखा करने के कारण विश्व जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और संसाधनों की कमी जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। यह बातें पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी ने कहीं। मौका था द दून स्कूल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय छात्र विज्ञान सम्मेलन। इस सम्मेलन में भारत के विभिन्न कोनों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और इटली के छात्रों ने भी भाग लिया। इस आयोजन का मकसद है विज्ञान के प्रति छात्रों के रुझान को प्रोत्साहित करने और उनके भीतर सृजनशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना।
सम्मेलन के उद्घाटन के बाद डॉ. जोशी ने कहा कि हमारे संसाधन अब ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विभाजित हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र उत्पादक बन गए हैं और शहरी क्षेत्र उपभोक्ता। इसी तरह, धर्म और जाति के आधार पर समाज का बंटवारा हो रहा है, जो स्वाभाविक विज्ञान को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने कहा, नदी बचाओ की सोच से आगे बढ़कर नदी बनाओ जैसे विचारों को अपनाने की जरूरत है।
उपभोक्तावादी मानसिकता के स्थान पर उत्पादकता पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और स्थायी भविष्य प्रदान किया जा सके। डॉ. जोशी ने यह भी कहा कि आज हम केवल मनुष्य पैदा कर रहे हैं, लेकिन मानवता को भूलते जा रहे हैं। प्रकृति का अवैज्ञानिक विदोहन हो रहा है, जो हमारे संतुलन को बाधित कर रहा है। उन्होंने इस सम्मेलन को एक ऐसा मंच बताया जो छात्रों को विज्ञान के गहरे पहलुओं को समझने और उनके जरिए समाज और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने की प्रेरणा देता है।
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द दून स्कूल में आयोजित यह सम्मेलन न केवल छात्रों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि यह उन्हें वैश्विक समस्याओं को पहचानने और उनके समाधान में अपनी भूमिका निभाने का अवसर भी प्रदान करता है। विज्ञान और प्रकृति के इस अनूठे संगम से न केवल छात्रों के ज्ञान में वृद्धि होगी, बल्कि यह आयोजन मानवता और स्थायित्व की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।
सम्मेलन के समन्वयक आनंद कुमार मंध्यान ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए इस वर्ष की थीम “Breaking the Boundaries” का परिचय दिया। उन्होंने प्रतिभागियों को प्रेरित किया कि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजने में अपनी भूमिका निभाएं।
विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. जगप्रीत सिंह ने मुख्य अतिथि पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी का परिचय कराते हुए द दून स्कूल के प्रतीक चिह्न और “Light Your Lamp” के आदर्श वाक्य की प्रासंगिकता को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समझाया।
उन्होंने सम्मेलन में भाग लेने आए देश-विदेश के छात्रों और शिक्षकों से स्कूल के प्राकृतिक, समावेशी और सीखने के माहौल को आत्मसात करने का आह्वान किया। प्रधानाचार्य ने द दून स्कूल की समृद्ध विरासत का उल्लेख करते हुए कहा कि यह परिसर बार-बार आप सभी के दिलों में गूंजता रहेगा और प्रेरणा देता रहेगा।

डॉ. जगप्रीत सिंह ने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे बेहतर भविष्य के लिए बदलाव के वाहक बनें। उन्होंने प्रकृति को संरक्षित और सुरक्षित रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि सभी को मिलकर सोच-समझकर और सहयोग के साथ काम करना होगा। उन्होंने एक सामूहिक संकल्प लेने का आह्वान किया कि हमारी खोजें, अनुसंधान और तकनीक सतत, जवाबदेह और जिम्मेदार होनी चाहिए। डॉ. सिंह ने इस अवसर पर “Nest in with each other in peace” का नारा देते हुए सभी को शांति और सह-अस्तित्व के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी।
कार्यक्रम के छात्र प्रभारी तारक हरजाई ने अपने संबोधन में सम्मेलन के दौरान होने वाली विभिन्न गतिविधियों और उनके उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने छात्रों को इन गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने और अपने विचार साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया। यह सम्मेलन न केवल विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में सीमाओं को तोड़ने का प्रयास है, बल्कि एक ऐसा मंच भी है जहां युवा वैज्ञानिक और विचारक वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजने के लिए मिलकर काम करेंगे। द दून स्कूल का यह आयोजन शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में स्थिरता, जिम्मेदारी और रचनात्मकता की एक नई मिसाल पेश करता है। उद्घाटन सत्र में कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, शिक्षाविद, पत्रकार, शोधकर्ता और विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।