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    Home»दुनिया भर की»India Space Missions … अंतरिक्ष में भारत का बसेरा!
    दुनिया भर की

    India Space Missions … अंतरिक्ष में भारत का बसेरा!

    भारत की अंतरिक्ष यात्रा साल 1962 में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति यानी आईएन-सीओपीएआर की स्थापना के साथ शुरू हुई। 1963 में केरल के थुंबा से पहले साउंडिंग रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ भारत के औपचारिक अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई। बाद में डॉ. विक्रम साराभाई ने उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास के लिए 15 अगस्त 1969 को आईएन-सीओपीएआर के स्थान पर इसरो की स्थापना की। छह दशक के सफर के बाद आज इसरो दुनिया की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है।
    teerandajBy teerandajSeptember 14, 2025Updated:September 14, 2025No Comments
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    India Space Missions : 22 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दिल्ली में भारत मंडपम में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) का मॉड्यूल दिखाया। भारत 2028 तक बीएएस का पहला मॉड्यूल लांच करने की प्लानिंग कर रहा है। 2035 तक भारत उन देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा, जिनके पास अंतरिक्ष में प्रयोगशाला यानी ऑर्बिटल लैबोरेटरी है। अभी अंतरिक्ष में केवल दो ऑर्बिटल लैब हैं। पहला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन आईएसएस और दूसरा चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन। आईएसएस को पांच देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां मिलकर चलाती हैं। भारत का लक्ष्य 2035 तक अपना स्टेशन बना लेने का है। पहला मॉड्यूल बीएएस-01 करीब 10 टन वजनी होगा। इसे पृथ्वी से 450 किलोमीटर ऊंचाई पर लो अर्थ ऑर्बिट (निचली कक्षा) में स्थापित किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में लाइफ साइंस, मेडिसिन और ग्रहों की खोज के लिए काम होगा। माइक्रोग्रैविटी में इंसानों की सेहत पर असर की स्टडी की जाएगी और लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने की तकनीक परखी जाएंगी। यह स्पेस टूरिज्म को भी बढ़ावा देगा। इससे भारत को कॉमर्शियल स्पेस सेक्टर में नई पहचान मिलेगी।

    पिछले एक दशक में अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने मजबूत इच्छाशक्ति के दम पर सफलता के नए आयाम स्थापित किए और अंतरिक्ष कूटनीति के क्षेत्र में भी धाक जमाई है। साल 2014 से लगातार सुधारों के चलते इस क्षेत्र में संभावनाओं के नए दरवाजे खुले हैं। अंतरिक्ष अनुसंधान का बजट तीन गुना बढ़ा है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में पहली बार 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति मिली है। साल 2020 में भारत ने इन-स्पेस के रूप में एक नोडल एजेंसी स्थापना कर निजी कंपनियों के लिए स्पेस सेक्टर खोला। आज 328 से अधिक स्पेस स्टार्टअप उभरकर सामने आए हैं। ये सभी इसरो और दूसरे भागीदारों के साथ मिलकर भारत के अंतरिक्ष इनोवेशन इकोसिस्टम को बढ़ाने में अहम रोल निभा रहे हैं।

     

     

    अंतरिक्ष में भारत की भावी योजनाएं

    गगनयान मिशन के लिए चयनित अंतरिक्ष यात्री।

    गगनयान इसरो के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III के जरिये लांच किया जाएगा। भारत के पहले पूर्ण स्वदेशी मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान कार्यक्रम का बजट 20,193 करोड़ रुपये है। मिशन गगनयान के लिए चार अंतरिक्षयात्रियों ने ट्रेनिंग पूरी कर ली है। ये चार हैं – ग्रुप कैप्टन पीबी नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला। मिशन गगनयान के शुरुआत चरण के तहत ही शुभांशु शुक्ला को एक्सिओम-4 मिशन पर भेजा गया था। गगनयान आगे के एडवांस मिशनों का बेस तैयार करेगा। गगनयान मिशन तीन दिवसीय है। मिशन के लिए 400 किलोमीटर की पृथ्वी की निचली कक्षा पर मानव को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और फिर सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाया जाएगा। इससे पहले पहले मानव रहित परीक्षण उड़ान होगी, जिसमें एक व्योममित्र रोबोट भेजा जाएगा। इस मिशन की सफलता के साथ भारत भी अमेरिका, रूस और चीन के श्रेणी में शामिल हो जाएगा।

    प्रत्येक देशवासी अंतरिक्ष क्षेत्र का कमाल देखकर गर्वित हो रहा है। हमारे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला स्पेस स्टेशन से लौट चुके हैं। हम अपने दम पर गगनयान की तैयारी कर रहे हैं। हम अपने बलबूते पर स्पेस स्टेशन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। मुझे बहुत गर्व हो रहा है कि देश के 300 से अधिक स्टार्टअप स्पेस के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन स्टार्टअप्स में हजारों नौजवान पूरे सामर्थ्य के साथ जुटे हैं।

    भारत के रॉकेट सिर्फ पेलोड नहीं ले जाते बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के सपनों को भी अपने साथ ले जाते हैं। भारत की अंतरिक्ष यात्रा का अर्थ दूसरों से प्रतिस्पर्धा करना नहीं है। इसका अर्थ है एक साथ मिलकर ऊंचाइयों को छूना। हम मानवता की भलाई के लिए अंतरिक्ष की खोज करने के लिए एक साथ मिलकर लक्ष्य साझा करते हैं।

    – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

    सूर्य के पास भी पहुंचे हम


    भारत का पहला सौर मिशन आदित्य एल-1 सितंबर 2023 में लांच किया गया। इसका मकसद सूर्य-पृथ्वी लैग्रेजियन बिंदु 1 यानी एल-1 के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना था। यह बिंदु पृथ्वी से करीब 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर है। इस साल फरवरी के महीने में आदित्य एल-1 के सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप ने निचले सौरमंडल फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर में एक शक्तिशाली सौर तीव्र अग्नि करनेल का अभूतपूर्व विजुअल कैद किया।

     

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