हजार बर्क गिरे लाख आंधियां उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
साहिर लुधियानवी का यह शेर चौखुटिया ब्लॉक के चौकोड़ी गांव की महिलाओं पर एकदम सटीक बैठती है। पारंपरिक खेती में जब घाटा होने लगा तो इन्होंने कुछ अलग करने की सोची। इसके बाद यहां की कुछ महिलाओं ने योग सीखा बाद में सबको ट्रेनिंग देने लगीं। कुछ ने स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से चप्पलें बनाने का काम शुरू किया। कुछ ने बिच्छू की घास से पैसे कमाने शुरू किए। बिच्छू की घास नाम से आप चौंक गए होंगे। कई लोगों को यह अजीब लग रहा होगा। लेकिन, यह सच है। जहां एक ओर बिच्छू का डंक लोगों को तकलीफ देता है वहीं बिच्छू की घास से इन महिलाओं की जिंदगी में उजाला आ गया है। तीरंदाज अर्जुन रावत की रिपोर्ट…
कई की जिंदगी में आया उजियारा
गांव की एक महिला कहती हैं कि वह लोग आसपास से बिच्छू की घास काट कर घर लाती हैं। इसके बाद उसके पत्ते अलग कर उसे सुखा देती हैं। इसके बाद बाहर से लोग आकर उसे ले जाते हैं। उन्हें इसके ठीक-ठाक पैसे मिल जाते हैं। वह कहती हैं कि बिच्छू की घास नुकीली होती है। कभी-कभार शरीर में धंस जाती है। तब खूब दर्द होता है। हम इसको बड़ी सावधानी से काटते हैं। इसलिए इसमें समय लगता है। लेकिन, इस काम के पैसे समय पर मिल जाते हैं। गांव की कई महिलाएं इस काम से जुड़ गई हैं। वह बतातीं हैं, हम खेती का काम निपटाने के बाद इसको करते हैं।

बड़े काम की है बिच्छू की घास
गर्म तासीर वाले इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका डाईओका है। यह पहाड़ों पर नमी वाली जगहों पर बहुतायत में उगता है। इनके पौधों में मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्र सोडियम, कैल्सियम, आयरन और विटामिन प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इनका विशेष महत्व है। स्थानीय लोगों का दावा है कि शरीर में कहीं सूजन आ जाने पर इसको पीस कर लगाने पर सूजन खत्म हो जाती है। कहते हैं कि पित्त दोष, जकड़न, कब्ज व पीलिया व मलेरिया की बीमारी से लड़ने में भी यह सक्षम है। इसके अलावा कई बीमारियों के उपचार में इसका प्रयोग स्थानीय स्तर पर किया जाता है।
चप्पलें भी बनाई जाती हैं बिच्छू की घास से
बिच्छू की घास के रेशे से बनी चप्पलों की खूब मांग है। फ्रांस में तो काफी पसंद की जाती है। उत्तराखंड की कॉटेज इंडस्ट्री को फ्रांस से ऑर्डर भी मिलते हैं। इसके अलावा विभाग कई ई-कॉमर्श कंपनियों से आपूर्ति का करार करता रहता है।

संभावनाएं अपार मगर प्रशिक्षण की दरकार
जिस पौधे की विश्व में इतनी मांग है इसके बाद भी राज्य में इसका व्यावसायिक उपयोग न के बराबर है। अगर, इसका सही ढंग से प्रचार कर दिया जाए तो रोजगार के लिए पहाड़ के लोगों को मैदान में जाने से रोका जा सकता है। साथ ही राज्य की आधी आबादी का और सशक्त किया जा सकता है। चखौटिया ब्लॉक की इन महिलाओं से बात करने के बाद लगा कि अगर यहां प्रशिक्षण केंद्र खुल जाए तो इस काम को यह और पेशेवर तरीके से कर अपनी आमदनी बढ़ा सकती हैं। इनकी मेहनत का और सही ढंग से मूल्यांकन हो सकेगा। खैर, यह सब सरकार के हाथ में है। उम्मीद है कि वह इस दिशा में जल्द ही कोई कदम उठाएगा।
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