Uttarakhand High Court Shifting मामले में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित कर सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। हाईकोर्ट खंडपीठ के मौखिक आदेश का ध्वनिमत से विरोध करते हुए यह प्रस्ताव पारित किया गया है। बतादें कि उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने पिछले दिनों एक मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय की बेंच को ऋषिकेश शिफ्ट करने का मौखिक निर्देश दिया था। इसके बाद से ही राज्य में यह मुद्दा बेहद गरम है। आक्रोश का आलम यह है कि जब खंडपीठ ने यह आदेश दिया तो बार एसोसिएशन के अधिकारी चलती कोर्ट में चीफ जस्टिस के पास पहुंच गए थे। हालांकि, गढ़वाल रीजन में स्थित बार एसोसिएशन स्थानांतरण की वकालत कर रहा है। उधर, ढेर सारे कर्मचारी संगठन भी कुमाऊं से हाईकोर्ट की शिफ्टिंग के विरोध में उतर आए हैं।
Uttarakhand High Court Shifting : कुमाऊं मंडल के अधिवक्ताओं में भारी आक्रोश… बोले- हाईकोर्ट नैनीताल से शिफ्ट हुआ तो होगी बड़ी समस्या
Uttarakhand High Court Shifting मामले में हुई बैठक में अधिवक्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट 17 मई से बंद होने वाली है इसलिए हमें जल्द कोई बड़ा फैसला लेना चाहिए। कहा कि एक कमेटी बनाकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करनी चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि जल्द से जल्द आदेश को चुनौती देनी चाहिए और वहां के एक सीनियर अधिवक्ता को भी इस केस में रखना चाहिए। वकीलों का कहना है कि नैनीताल में हाईकोर्ट के विस्तार के लिए बहुत गुंजाइश है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट बार के अध्यक्ष डीसीएस रावत ने कहा है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता से संपर्क किया जाएगा।

हाईकोर्ट के हटने से बिगड़ेगी कुमाऊं की स्थिति
उधर, इस मामले में अब कर्मचारी संगठन भी कूद पड़े हैं। इनका कहना है कि सभी बड़े कार्यालय और उनके मुख्यालय गढ़वाल मंडल में हैं। कई निदेशालय ऐसे भी हैं, जो हैं तो कुमाऊं में मगर उनका संचालन देहरादून से हो रहा है। ऐसे में हाईकोर्ट को भी यहां से हटा लेने पर कुमाऊं की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी। यहां से पलायन होने लगेगा। पहाड़ और विरान हो जाएंगे।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कमल पपनै ने कहा है कि हाईकोर्ट शिफ्ट करना कुमाऊं के लोगों को धोखा देना है। नैनीताल अगर ट्रैफिक की समस्या से जूझ रहा है तो काठगोदाम में रोपवे के नजदीक पार्किंग बनाकर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिए हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की कोई जरूरत नहीं है। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य को दो बेंच की कतई जरूरत नहीं है।
Uttarakhand High Court Shifting … आखिर हंगामा क्यों बरपा है, क्यों नहीं बन पा रही सहमति
रोजडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष आन सिंह जीना का कहना है कि कुमाऊं मंडल के हिस्से में हाईकोर्ट ही है। नैनीताल से यदि हाईकोर्ट शिफ्ट करना ही है तो गौलापार ही बेहतर विकल्प है। इसे गढ़वाल ले जाना उचित नहीं है। वहीं, अधिकतर कर्मचारियों का कहना है कि राज्य को दो भागों में बांटने की कोशिश हो रही है। वैसे में कुमाऊं मंडल के हिस्से में कुछ खास नहीं आया है। राज्य गठन के समय यह तय हुआ था कि राजधानी गढ़वाल में होगी तो हाईकोर्ट कुमाऊं में। वैसे भी दर्जनों बड़े कार्यालय देहरादून शिफ्ट हो चुके हैं। ऐसे में अब हाईकोर्ट भी यहां से चला गया तो कुछ नहीं बचेगा। यहां के लोगों को रोजगार के लिए मजबूरी में पलायन करना पड़ेगा। सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
Uttarakhand News : क्यों खाली हो रहा कुमाऊं, नैनीताल से एक के बाद एक शिफ्ट हो रहे सरकारी दफ्तर
एक के बाद एक कार्यालय कुमाऊं से हो रहे शिफ्ट
बीते वर्षों में एक के बाद एक कार्यालय देहरादून भेज दिए गए। इनमें परिवहन आयुक्त से लेकर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक कार्यालय तक शामिल हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद आरटीओ कार्यालय के भवन में परिवहन आयुक्त कार्यालय खुला था। करीब डेढ़ साल तक परिवहन आयुक्त कार्यालय हल्द्वानी में चला। बाद में इसे देहरादून में शिफ्ट कर दिया गया। इसकी कोई ठोस वजह भी नहीं बताई गई। इसी तरह वन विभाग के कई कार्यालय नैनीताल और हल्द्वानी में बने थे। जिन्हें एक के बाद एक कर देहरादून पहुंचा दिया गया। नैनीताल में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक का कार्यालय होता था, जहां से वन्यजीव के संरक्षण, रेस्क्यू आपरेशन की अनुमति और दिशा- निर्देश देने का काम होता था। करीब नौ साल पहले इसे भी देहरादून शिफ्ट कर दिया गया।