Trekking In Uttarakhand : यह सुनने में अजीब लगेगा लेकिन, यह सच है। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ट्रैकिंग के लिए अभी तक कोई मानक प्रचालन प्रक्रिया (SOP) नहीं बनी है। जबकि, पिछले दो वर्षों में ट्रैकिंग के दौरान करीब 38 लोग जान गंवा चुके हैं। अब सहस्त्रताल ट्रैक हादसे के बाद राज्य स्तर पर एक एसओपी बनाने की जरूरत महसूस होने लगी है। बड़ा सवाल यह है कि अगर ट्रैकिंग को राज्य पर्यटन विभाग प्रमोट कर रहा है तो अब इतनी बड़ी लापरवाही क्यों बरती गई। अब बताया जा रहा है कि पर्यटन विभाग जल्द ही कोई मानक प्रचालन प्रक्रिया बनाने जा रहा है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर इतने वर्षां तक इस मुद्दे पर कुछ क्यों नहीं किया गया।
राज्य में ट्रैकिंग के लिए नीति तो बनी है। लेकिन, इसे लागू करने के लिए एसओपी ही नहीं है। वर्ष 2022 में द्रौपदी के डांडा में 29 पर्वतारोहियों की मौत के बाद भी एसओपी का मुद्दा जोरशोर से उठा था। विडंबना है कि तब से लेकर अब तक ट्रैकर्स की सुरक्षा के लिए मानक तय करने का मुद्दा पर्यटन और वन विभाग के बीच झूलता रहा। यह तय नहीं हो पा रहा है कि एसओपी कौन बनाएगा? सहस्त्रताल ट्रैक पर हादसे के बाद सरकार हरकत में आई तो तब जाकर तय हुआ कि वन विभाग के सहयोग से पर्यटन विभाग एक एसओपी तैयार करेगा। अब बताया जा रहा है कि स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी भी एक एसओपी तैयार कराएंगे। सूत्रों के मुताबिक इसकी कवायद भी शुरू हो चुकी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने वन और पर्यटन विभाग को एसओपी बनाने के निर्देश दे दिए हैं।
राज्य में 100 से ज्यादा ट्रैक, जमकर किया जाता है प्रचार
उच्च हिमालय क्षेत्रों में 100 से ज्यादा ट्रैक हैं, जिन्हें सैलानियों के लिए खोला गया है। वन विभाग इनकी अनुमति देता है। इनका प्रमोशन पर्यटन विभाग करता है। विभाग की वेबसाइट पर उच्च हिमालय क्षेत्रों का प्रमुखता से जिक्र है और उनके आकर्षक फोटो भी अपलोड हैं। लेकिन एसओपी नहीं है। जबकि राफ्टिंग, एयरो स्पोर्ट्स जैसे साहसिक खेलों की एसओपी पर्यटन विभाग ही संचालित करता है।
सहस्त्रताल ट्रैक हादसे मामले में मुकदमा दर्ज
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल एडवेंचर फाउंडेशन के उत्तराखंड चेप्टर के निदेशक मंजुल रावत कहते हैं कि पर्यटन विभाग की ओर से साहसिक गतिविधियों के लिए सभी जिलों में एक-एक अधिकारी तैनात है। ऐसे में ट्रैकिंग के लिए गाइडलाइन बनाने और उसे लागू करने में पर्यटन विभाग को पीछे नहीं हटना चाहिए। मंजुल के मुताबिक स्थानीय ऑपरेटर्स को ट्रैकिंग की ट्रैनिंग देने, सुरक्षा के उच्च तकनीकी संसाधन विकसित करने, इंटरनेट एग्रीगेटर से बचने के भी प्रावधान होने चाहिए। ऐसे लोगों का भी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करना चाहिए। दरअसल, सहस्त्रताल में मौसम बिगड़ने के बाद रास्ता भटकने के कारण नौ ट्रैकरों की मौत हो गई थी। जबकि 13 ट्रैकर्स को एसडीआरएफ, आईटीबीपी और एयरफोर्स की मदद से बचा लिया गया। मुख्यमंत्री ने हादसे की जांच कराने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद राज्य में एसओपी को लेकर चर्चा छिड़ गई है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल कहते हैं- ट्रेकर्स के लिए सुरक्षा के इंतजाम के प्रति उदासीनता निराशाजनक है। एसओपी कहां है। किसी ने यह जानने का प्रयास किया कि 60 या 70 साल आयु के लोग ऐसे कठिन ट्रैक के लिए क्या फिट हैं। सहस्त्रताल गए दल में एक ट्रैकर 70 वर्ष और तीन 60 वर्ष से अधिक आयु के थे। एसओपी बनाना ही काफी नहीं, उसे जमीन पर उतारना भी जरूरी है। इसके लिए सरकार को गंभीरता से काम करना होगा। आखिरकार, पर्यटन विभाग ही इसका जमकर प्रचार करता है। अगर, इस तरह हर साल हादसे होते रहे तो यहां कौन से पर्यटक आएगा।