Uttarakhand के पिथौरागढ़ में दीवाली के मौके पर बाजार तरह-तरह के सामानों से सजे हुए हैं। ग्रामीण इलाकों से लोग खरीदारी के लिए मुख्य बाजार पहुंचने लगे हैं। हर साल की तरह मार्केट चीनी लाइटों, रंग-बिरंगी शोपीस मालाओं, दीयों व अन्य इलेक्ट्रिक उपकरणों से भरे पड़े हैं। लेकिन इन सबसे इतर च्यूरे के घी से दिवाली के दिए, कैंडल लोगों के बीच आकर्षक का केंद्र बना है। इसे स्थानीय महिलाओं द्वारा बनाया गया है। रंग बिरंगे दिए सबको लुभा रहे हैं। इन दीयों में तेल या मोम की जगह पिथौरागढ़ में पाए जाने वाले स्थानीय पेड़ च्यूरे से निकलने वाले एक प्रकार के घी का प्रयोग किया गया है। च्यूरे से बने यह दीए करीब 10 घंटे तक घरों को रोशन करते हैं।

नारायणी स्वयं सेवा सहायता समूह इस काम को मन से कर रहा है। इस समूह की संस्थापिका नेहा जोशी कहती हैं, इस दिवाली लोगों के घर रोशन होने के साथ हमारे क्षेत्र की महिलाओं के घर भी रोशन होंगे। वह कहती हैं कि दिवाली के दिये के अलावा उन लोगों ने करवा चौथ के लिए स्पेशल थाली, कंगन, चलनी बनाए थे। जो काफी बिके। कंगन पर तो महिलाएं अपने पति का नाम भी लिखा सकती थीं। बाजार में यह खूब बिका। अब लोग धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं। चीनी झालरों की जगह दीये को प्राथमिकता देने लगे हैं। यही वजह है कि पिछली दिवाली की अपेक्षा इस बार हम ज्यादा काम किए हैं। हमारे साथ जुड़ी महिलाओं को पैसे भी ज्यादा मिले हैं। वह कहती हैं कि च्यूरे का साबुन, लिप बाम और कैंडल बनाने में उनके समूह की महिलाएं दक्ष हो चुकी हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में देश के अन्य हिस्सों में भी इसकी मांग बढ़ेगी।
तीन रुपये प्रति दिया मेहनताना
नेहा जोशी बताती हैं कि वह समूह की महिलाओं को तीन रुपये प्रति दिया पेंट करने को देती हैं। सामान उनका होता है। महिलाओं को डिजाइन बता दिया जाता है। दिवाली के समय तो कई महिलाएं 100-100 दिये भी पेंट कर देती हैं। इससे उन्हें 300 रुपये मिल जाते हैं। वह बताती हैं कि उनके साथ अभी 9 महिलाएं जुड़ीं हैं। ये महिलाएं गृहिणी हैं। पहले कोई काम नहीं की हैं। इन्हें प्रशिक्षण देकर काम कराया जा रहा है। वह बताती हैं कि अधिकांश महिलाओं के घरों में आय को कोई साधन नहीं था। उन्हें खुशी होती है कि उनकी वजह से किसी के घर में उजाला फैल रहा है।
2019 में बनाया समूह
नेहा जोशी ग्रेजुएट हैं। उनकी शादी 2013 में हुई। पति ठेकेदार हैं। इनकी गृहस्थी ठीक ही चल रही थी। लेकिन, मन में यह था कि अपने पहाड़ के लिए कुछ करना है। महिलाओं के लिए कुछ करना है। वह बताती हैं कि पहाड़ पर शराब पीने की समस्या गंभीर होती जा रही है। कई घरों में इस वजह से कलह बढ़ती जा रही है। जब वह यह सब बातें सुनती थी तो उनका मन व्यथित हो जाता है। कई घर ऐसे थे कि जहां महिलाओं के पास एक भी पैसा नहीं होता था। पति जो कमाता वह पीने में उड़ा देता था। ऐसे में उन्होंने सोचा कि कुछ काम ऐसा शुरू किया जाए जिसमें कुछ महिलाओं के जीवन पर असर पड़े। इसके बाद वह 2019 में नारायणी स्वयं सेवा सहायता समूह की स्थापना की। शुरुआत में ज्यादा जानकारी नहीं थी। दीये बनाते थे। धीरे-धीरे अपना काम बढ़ाने लगे। हमारी कोशिश होती है कि हमारे साथ जुड़ी महिलाओं के हाथ में कम से कम दो तीन हजार रुपये महीने आ ही जाए। खुशी की बात यह है कि अब ऐसा होने लगा है।
च्यूरे के साबुन, लिप बाम भी
नारायणी स्वयं सहायता समूह च्यूरे का साबून और लिप बाम भी बनाता है। लिप बाम 40 रुपये में बेचते हैं। 100 ग्राम का साबुन 100 रुपये में और 75 ग्राम का साबुन 70 रुपये में बेचते हैं। आउटलेट में खुद जाकर सामान पहुंचाती हैं। साथ ही कई कंपनियां उनका प्रोडक्ट लेकर जाते हैं, बाहर जाकर ब्रॉडिंग, पैकेजिंग कर बेचते हैं। नेहा जोशी बताती हैं कि रुद्रपुर, दिल्ली और मुंबई तक उनका प्रोडक्ट जाता है। हालांकि, अभी ज्यादा मात्रा में नहीं जाता है।
च्यूरे से बदल रही तस्वीर
बटर ट्री के फल च्यूरे से बने साबुन की मांग बाजार में बढ़ने लगी है। बाजार में साबुन, लिप बाम, बॉडी क्रीम, धूप, अगरबत्ती और च्यूरे की खली बिकने लगी है। इस परियोजना से महिलाओं और पहाड़ी किसानों की आय में सुधार हो रहा है। देश के अन्य कोनों से भी इसकी मांग आ रही है। पिथौरागढ़ में च्यूरा के पेड़ तमाम क्षेत्रों में हैं। इस पेड़ से अनेकों उत्पाद बनाए जा सकते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में अब तक लोग इन पेड़ों का कटान ज्यादा करते थे। लेकिन, अब पेड़ों को काटने के बजाय च्यूरे से घी निकालने का काम जोरों पर हो रहा है। इससे अनेक लोगों को रोजगार मिल रहा है।