वैसे तो climate change का असर दुनिया भर में दिखने लगा है। मगर, पहाड़ी इलाकों में इसका असर अन्य स्थानों से ज्यादा हो रहा है। देवभूमि की बात ही करें तो फरवरी माह में भी अमरूद के पेड़ फलों से लद गए हैं। मार्च-अप्रैल में फूलने वाले काफल-बुरांश जनवरी में खिलने लगे हैं। पहाड़ों पर मोर नाचते हुए दिख रहे हैं। हाल ही में बागेश्वर में मोर दिखाई दिया था। जिससे पर्यावरणविद भी अचंभित थे। आखिर मोर समुद्रतल से करीब 3100 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंच गया। आमतौर पर, मोर समुद्र तल से 1,600 फीट की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मोर पहाड़ों की ओर जा रहे हैं। मौसम वैज्ञानिक इन बदलावों को खतरनाक मान रहे हैं। इसे प्रकृति की चेतावनी के रूप में देख रहे हैं।
फरवरी तक बर्फ से लदे रहने वाले पहाड़े काले दिखाई देने लगे हैं। फरवरी माह में ही लोगों को गर्मी का अहसास होने लगा है। यह स्थिति मैदानी इलाकों सरीखी है। जनवरी-फरवरी में अमूमन पहाड़ों पर भीषण ठंड पड़ती थी। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कई दिनों तक पहाड़ बर्फ से ढके रहते थे लेकिन पिछले एक दशक में हालात काफी बदल गए हैं।
नवंबर-दिसंबर की बारिश हुई कम, पहाड़ों में तापमान 21 से ऊपर पहुंचा
पहाड़ों में अमूमन नवंबर और दिसंबर माह में अच्छी बारिश होती थी। मगर, पिछले तीन साल के आंकड़ों को देखें तो लगता है मेघ रूठ गए हैं। वर्ष 2022 से बारिश अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो रही है। जनवरी 2023 में 64.15 मिमी बारिश हुई थी। 2024 में जनवरी का महीना भी बिना बारिश के बीता इस साल जनवरी में 10.50 मिमी बारिश हुई थी। इस दौरान ऊंचाई वाले इलाकों में हल्की बर्फबारी हुई। फरवरी की शुरुआत में ही दिन के समय 25-26 डिग्री सेल्सियस तापमान चला जा रहा है। बर्फबारी और बारिश न होने से सूखे जैसे हालात बनने लगे हैं। पिथौरागढ़ में 3 फरवरी को अधिकतम तापमान 21.2 था। वहीं, टिहरी का टेंपरेचर 18 डिग्री के ऊपर था।
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मार्च-अप्रैल में खिलने वाला बुरांश फरवरी में खिला
हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 4000 मीटर की मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांश सदाबहार वृक्ष है। बुरांस के पेड़ों पर मार्च-अप्रैल माह में लाल सूर्ख रंग के फूल खिलते हैं। बुरांस के पेड़ को उत्तराखंड का राज्य वृक्ष घोषित किया गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड में इसका कारोबार भी किया जाता है। कारोबारी बताते है कि 20 फरवरी के बाद बुरांश का फूल जूस बनाने के लिए लोग लेकर आते हैं, उस समय पर्याप्त मात्रा में बुरांश का फूल आता है। मगर इस बार जनवरी के पहले सप्ताह में ही बुरांश लेकर कुछ लोग पहुंच गए थे, लेकिन यह काफी कम था। बारिश नहीं होने के कारण सभी पेड़ों पर बुरांश पूरी तरह से नहीं खिला है। कोपलें भी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाए हैं। ऐसे में कारोबार 35 से 40 फीसदी तक कम होने की संभावना है।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के ललित तिवारी का कहना है उनके शोध में भी 26 दिन पहले बुरांश खिलने का पैटर्न सामने आया है। ललित तिवारी का कहना है उनके शोध में भी 26 दिन पहले बुरांश खिलने का पैटर्न सामने आया है। फूल खिलने के लिए अनुकूल वातावरण समय से पहले मिल रहा है। इस कारण बीज पहले बन जाएंगे और बारिश बाद में होगी तो रिजनरेशन नहीं हो पाएगी। जल्द खिलने से इसके रंग में थोड़ा बदलाव आया है। साथ ही रसायनिक गुण भी प्रभावित होते हैं। बुरांश का जूस दिल और लिवर के मरीजों के लिए मुफीद होता है। समय से पहले फूल खिलने से इसके औषधीय गुणों पर भी असर पड़ने की संभावना है। मीडिया से बातचीत में सेवानिवृत्त सीनियर हिम वैज्ञानिक वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी डॉ. डीपी डोभाल बातते हैं, सर्दियों में बारिश, बर्फबारी नहीं होने से ग्लेशियर सिमट रहे हैं। बढ़ते तापमान और प्रदूषण की अनदेखी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। इसकी अनदेखी भविष्य में जनजीवन पर भारी पड़ सकती है।