Close Menu
तीरंदाज़तीरंदाज़
    https://www.teerandaj.com/wp-content/uploads/2025/08/Vertical_V1_MDDA-Housing.mp4
    अतुल्य उत्तराखंड


    सभी पत्रिका पढ़ें »

    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube Pinterest Dribbble Tumblr LinkedIn WhatsApp Reddit Telegram Snapchat RSS
    अराउंड उत्तराखंड
    • Uttarakhand : ग्रेजुएट लेवल भर्ती पेपर लीक मामले में एकल सदस्यीय आयोग ने सौंपी रिपोर्ट
    • बेजोड़ इकोनॉमी की राह पर Uttarakhand
    • किसान मेला : भारत की सभ्यता और संस्कृति कृषि के चारों ओर ही हुई विकसित : राज्यपाल
    • Uttarakhand : नगर निकायों की 18 सेवाएं होंगी डिजिटल, जानिए क्या होगा फायदा
    • Urban Drainage System के लिए सीएम धामी ने केंद्रीय वित्त मंत्री से मांगी सहायता
    • NCRB Report-2023 : एक और अनचाहा तमगा, अवैध असलहा रखने के मामले में हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड नंबर वन
    • NCRB REPORT-2023 : जो नहीं मिले, वो कहां गए ?
    • Uttarakhand : आदर्श रेलवे स्टेशन के रूप में विकसित किया जाए देहरादून-हरिद्वार स्टेशन
    • Uttarakhand : वन्य जीव हमले में जनहानि पर सहायता राशि बढ़ाकर 10 लाख रुपये की जाएगी
    • केमिस्ट को न बनाएं डॉक्टर, खुद से कफ सिरप लेने से पहले दस बार सोचें
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube WhatsApp Telegram LinkedIn
    Sunday, October 12
    तीरंदाज़तीरंदाज़
    • होम
    • स्पेशल
    • PURE पॉलिटिक्स
    • बातों-बातों में
    • दुनिया भर की
    • ओपिनियन
    • तीरंदाज LIVE
    तीरंदाज़तीरंदाज़
    Home»उत्तराखंड 360»पहले कभी बकरी भी नहीं पाली थी… एक गौरक्षक ऐसा भी
    उत्तराखंड 360

    पहले कभी बकरी भी नहीं पाली थी… एक गौरक्षक ऐसा भी

    teerandajBy teerandajSeptember 11, 2023Updated:November 11, 2023No Comments
    Share now Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn
    Share now
    Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn

    पिछले कुछ साल में गौरक्षकों को लेकर इस देश में काफी डिबेट हुई। कई बार ऐसा होता है कि गाय को बचाने वाले लोग हिंसा का शिकार हो जाते हैं। यहां तक की बहुत सारे गौरक्षकों ने अपनी जान तक गंवाई है। ऐसे में सवाल ये है कि जो गोवंश बचाया जाता है, उनका क्या होता है? सरकारी सिस्टम क्या इतना सक्षम है? सरकारी गौशालाओं की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। हम इस तलाश में थे कि क्या कोई व्यक्तिगत स्तर पर ऐसा कुछ कर रहा है जिसे देखकर ये कहा जा सके कि सच में गौ सेवा हो रही है। इसी तलाश में हम विकास नगर पहुंचे। जहां हमारी मुलाकात रूमी राम जसवाल से हुई।

    थाने लाई गायों का क्या होता है?

    गौसेवक रूमी राम जसवाल की कहानी काफी दिलचस्प है। ये बात 2008 की है, जब वह देहरादून जा रहे थे तो पुलिस चौकी में किसी ने गोवंश पकड़ा हुआ था। तब यह बात हुई कि पकड़ी हुई गायों को कौन रखेगा। उस वक्त रूमी राम जसवाल गांव के प्रधान भी थे। जब कोई आगे नहीं आया तो रूमी राम ने कहा कि मैं इन गायों की रक्षा और सेवा करूंगा। तब से यह सिलसिला शुरू हुआ और आज तकरीबन 15 साल हो चुके हैं और यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। गौसेवा का सिलसिला शुरू होने के सवाल पर रूमी राम ने बताया, 2008 में जब मैं गांव का प्रधान बना उस समय गोवंश की तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती थी। एक जनप्रतिनिधि होने के नाते हमारा ये फर्ज होता है कि जो भी अपराध क्षेत्र में हो रहे हैं, उन पर अंकुश लगाया जाए। मैं कोई भी काम औपचारिकता के लिए नहीं करता हूं। समाज को बेहतर बनाने के लिए कोई भी काम की शुरुआत खुद से करनी चाहिए। 2008 में सरकार द्वारा विश्व गौ ग्राम यात्रा का आयोजन किया जा रहा था। यात्रा के दौरान हम बालाजी धाम झाझरा जा रहे थे। उस वक्त मेरे ग्राम पंचायत के किसी सदस्य ने मुझे यह सूचना दी कि शीतला नदी के किनारे से बड़ी संख्या में गोवंशों को एक वाहन में लोड किया जा रहा है, दर्जनों गोवंश वहां पड़े हुए हैं। उस वक्त तत्काल हमने विधायक राजकुमार के माध्यम से थाना सहसपुर को इस घटना की सूचना दी और थाने की टीम ने मौके पर पहुंचकर 40 गौवंशों को वहां से पकड़ा।

    हमारा सारा काफिला देहरादून परेड ग्राउंड में कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जा रहा था। लेकिन मुझे लगा कि इन गोवंश को पकड़कर थाने ले जाने के बाद इनका क्या होगा। यह सोचते हुए मैं थाना सहसपुर पहुंचा। वहां पहुंच कर मैंने देखा कि पुलिस ने बड़ी संख्या में गोवंश पकड़े तो हैं लेकिन उन्हें रखने की जिम्मेदारी भी वही लोग ले रहे थे जो तस्करी में संलिप्त थे। मैं उन लोगों को जानता था क्योंकि मैं एक जन प्रतिनिधि था। यह देखकर मैंने थाना अध्यक्ष को बोला कि जिन लोगों को आप इन गोवंशों की जिम्मेदारी सौंप रहे हैं वो खुद गोवंश तस्करी के धंधे में संलिप्त हैं। तब थाना अध्यक्ष ने मुझे कहा कि आप राजनीति करते हैं लेकिन व्यवस्था के नाम पर आप जीरो हैं। आप बताइए हम इन गोवंश को कहां रखें। उस वक्त मुझे वह बात बहुत ज्यादा खटकी और मैंने श्री कृष्ण को आराध्य मानते हुए अपने मन ही मन में प्रण किया कि जब मैंने इन गोवंशों को छुड़वाया है तो जब तक इन गोवंशों की कोई व्यवस्था नहीं होती तब तक मैं इनको अपने पास रखूंगा। मुझे थाना सहसपुर से यह पता चल गया कि जब तक गोवंशों को आप वैकल्पिक तौर पर रखेंगे और जब तक इनकी स्थाई रूप से रहने की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक गोवंशों के भरण पोषण की व्यवस्था सरकार करेगी। उस वक्त 40 गायें थीं, जिसमें से एक गाय को गांव के किसी व्यक्ति ने ले लिया था। हमारे समाज की यह विडंबना है कि हम गाय को गौ माता तो कहते हैं लेकिन उनकी देखरेख नहीं करते और जो गाय उपयोगी है हम उसे ही रखने के लिए तैयार होते हैं।

    जो गाय बच्चा देने वाली थी उसे तो किसी व्यक्ति ने रख लिया बाकी 39 को उन्होंने छोड़ दिया था। गोवंशों के भरण पोषण की व्यवस्था सरकार करती है। 201 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से इनके भूसे और चारे की व्यवस्था होती है। इसके बाद मैं सारी गायों को अपने घर ले आया। पुलिस को भी गायों को रखने की जगह मिल गई। अब पुलिस गौ तस्करों से गायों को छुड़वाकर मेरे घर पर छोड़ देती थी। ऐसे में इनकी संख्या 300 से ज्यादा हो चुकी थी जिसके बाद मेरे पास इन्हें रखने की जगह नहीं बची और ना ही उस हिसाब से इनके भरण पोषण की कोई व्यवस्था हो पा रही थी।

    हमने लड़ाई लड़ी…

    वह कहते हैं कि मेरे पास कोई व्यवस्था नहीं थी। मैंने अपनी जिंदगी में कभी एक बकरी तक भी नहीं पाली थी। लेकिन जब मैं इन्हें घर लेकर आया तो मैं अपने क्षेत्र के सभी युवाओं को इकट्ठा कर क्षेत्र में लगे सभी होर्डिंग्स को निकालकर उनसे अस्थाई रूप से रहने लायक बनाया। लगभग 6 महीने तक हमने उसी जगह पर सभी गायों को रखा। फिर धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे। ज्यादातर आर्मी से रिटायर्ड अफसर दान वीर आगे आए और उन्होंने मदद की। इसके साथ ही उन्होंने कई सामग्री भी दी। फिर हमने यहां पर गोवंशों के लिए बड़ा हाउस बनाने की सोची। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही की सरकार ने हमारा साथ नहीं दिया। यह अब सिडकुल का क्षेत्र है। कुछ दिनों में आप यहां बड़ी-बड़ी बिल्डिंग देखेंगे। पहले हमने यहां कोका कोला कंपनी से लड़ाई लड़ी। इंद्रजीत सिंह जी के नेतृत्व में हमने यहां कोका कोला कंपनी को नहीं आने दिया। यह एक बड़ी ग्रीन बेल्ट है लेकिन कुछ दिनों बाद यहां बड़ी इंडस्ट्री बनना शुरू हो जाएंगी। ऐसे में हमें इन गोवंशों की चिंता है। हम इनकी स्थाई रूप से व्यवस्था कैसे करें। लेकिन जब तक हम हैं तब तक हम अपनी जिम्मेदारी निभाते रहेंगे।

    अब राम जी ने बड़ी गौशाला बना ली है तो क्या सरकार से किसी तरह की कोई मदद मिल रही है? वह कहते हैं कि गोवंश अधिनियम 2007 हमारी सरकार ने बनाया। मुझे यह कहते हुए बुरा तो जरूर लग रहा है जिन्होंने अधिनियम बनाया था उन्होंने ही इस अधिनियम को नहीं माना। मैंने इन गोवंशों को सुरक्षित तो कर दिया है लेकिन स्थाई रूप से रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। मेरी उम्र 54 साल हो चुकी है। मैं कब तक इन्हें संभाल पाऊंगा। पीजीआई अस्पताल के हिसाब से मुझे भारी कम करने के लिए सख्त मनाही है। मेरी भी मजबूरी है, ऐसे में चिंता इस बात की है कि अगर इनकी स्थाई व्यवस्था नहीं हुई तो इनका भविष्य अधर में लटक जाएगा। इसलिए मैं बार-बार सरकार से आग्रह कर रहा हूं और मुझे विश्वास भी है कि जिस तरीके से धामी सरकार गोवंशों के लिए कार्य कर रही है, मुझे विश्वास है कि उनकी कृपा दृष्टि मुझ पर भी जरूर होगी।

    गायों का नाम रखा है

    उन्होंने सभी गायों का नाम भी रखा हुआ है ऐसा तभी होता है जब आप पर्सनली अटैच हो। लेकिन सरकारी गौशालाओं में यह अटैचमेंट देखने को नहीं मिलती। एक चैलेंज यह भी है कि अगर गाय दुधारू हो तभी लोग उसे रखने के लिए तैयार होते हैं। लेकिन अगर वह मेल गोवंश है तो लोग उसे लेने के लिए आगे नहीं आते हैं। वहां सबसे ज्यादा मेल गोवंश दिखे। आगे इनका क्या होता है? उन्होंने कहा कि मेरे पास इस समय 109 गोवंश हैं और इनमें लगभग 60 से 70 मेल गोवंश ही हैं। इनमें से 15- 20 गाय बुजुर्ग हो चुकी हैं। इनमें से 9 -10 गाय ही दुधारू हैं। मैंने अभी तक जितना भी काम किया है वह सरकार के सहयोग के बिना किया है। मैंने यह काम अपना फर्ज मानकर किया है इसलिए मुझे इनसे व्यक्तिगत रूप से लगाव है। मैं 14- 15 सालों से यह काम कर रहा हूं। मैं अपने परिवार को भूल सकता हूं लेकिन इन्हें नहीं। जैसे पुलिस ने इन्हें मुझे दिया है वैसे औपचारिकता के तौर पर मैं भी इन्हें थाने में छोड़ सकता हूं। लेकिन मैं नहीं छोड़ पा रहा हूं। वहीं मैं आपके माध्यम से सरकार का इस ओर ध्यान खींचना चाहता हूं कि हम लोग यह सोच लेते हैं कि आज 100 गाय हैं तो कल 200 या फिर 300 या इनकी संख्या बढ़ जाएगी फिर अंत में इन सब का क्या होगा। मैं आपको बता दूं कि आज से 6 साल पहले मेरे पास लगभग 300 से ज्यादा गोवंश था। फिर मैंने देखा कि जो ऐसे परिवार हैं, जैसे की  एससी एसटी, विधवा, विकलांग, बीपीएल, बेरोजगार जिन्हें दूध से वंचित हैं। यह देखते हुए मैंने एक आम बैठक बुलाई और उसमें घोषणा की कि जो भी ऐसे लोग हैं, जो गाय को पालना चाहते हैं उन्हें निशुल्क गाय मैं दूंगा। ऐसे लोगों को एक शर्त पर हम गाय देते हैं कि आप जिंदगी भर इनको नहीं बेचोगे। जिसके बाद हम ₹10 के स्टांप पेपर में उनसे लिखवाते हैं और प्रधान को उसका गवाह बनाते हैं। इसके साथ ही उन लोगों का आईडी प्रूफ हम अपने पास रखते हैं। मैं अभी तक 166 परिवारों को गोवंश दे चुका हूं। और मेरे पास एडवांस में डेढ़ सौ से ज्यादा एप्लीकेशन हैं।

    गोवंशों के लिए जमीन बेच दी

    राम ने बताया कि इनमें से एक भी गाय ऐसी नहीं है जो मैंने खरीदी हो या मेरी अपनी हो। जो 350 के पार गायों का आंकड़ा पहुंचा था वह भी पुलिस द्वारा मुझे दी गई थी। राम जी की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उन्होंने अपनी जमीन भी बेच दी थी? इस बात का जिक्र होने पर वह कहते हैं कि जब 2008 में मैंने इन गोवंशों को रखा, तब मैं सरकार के भरोसे कब तक बैठा रहता। जो मेरे पास था वह तीन-चार महीने में ही खत्म हो चुका था। लेकिन जब मुझे सरकार से कोई मदद नहीं मिली तो मैंने अपनी 10-12 बिगहा जमीन इन गोवंशों के लिए बेच दी। मुझे यह भरोसा था कि आज नहीं तो कल सरकार इन गोवंशों के लिए व्यवस्था जरूर करेगी। मैं बहुत ज्यादा कर्ज तले दब चुका था। ऐसे में कई लोग मदद के लिए आगे आए और मुझे सलाह भी थी। मैं ठेकेदारी का काम भी करता हूं तो उन्होंने मुझे सलाह दे कि मैं अपना प्राइवेट काम भी करता रहूं।  मेरे पास पांच-छह परिवार हैं जो इन गोवंशों की देखभाल का काम करते हैं। 2017 से पहले जितनी बुरी स्थिति मेरी थी, आज उतनी नहीं है। अब मैं गोमूत्र से भी कई प्रॉडक्ट्स बना रहा हूं। इसके साथ ही गोबर से भी कई तरह के उत्पाद तैयार कर रहा हूं। गायों के रखरखाव के लिए भी मैंने सेटअप कर दिया है। मेरी पीड़ा सिर्फ इन गायों तक ही नहीं है। अभी जब लंपी वायरस आया था तो इस क्षेत्र में ही लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा गायों की मौत लंपी वायरस से तड़प तड़प कर हुई है। वह भी गौ माता थी। उनकी व्यवस्था नहीं हो पाई। हम भविष्य में ऐसे गोवंशों के लिए भी काम करना चाहते हैं। उसके लिए सरकार को बड़े स्तर पर काम करने की जरूरत है।

    YouTube player

    कोई भी किसी काम को करने में तभी इंटरेस्ट लेता है जब उसे यह लगता है कि वो काम उसकी आय का साधन बन सकेगा। जो लोग गौसेवा करना चाहते हैं वे यह सोचकर हाथ पीछे खींच लेते हैं कि इस काम में खर्चा बहुत है और उतनी आमदनी नहीं होगी। राम ने कहा कि मैं दो बातें बताना चाहूंगा। हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह सपना देखे कि वह बड़ा आदमी बने और एक अच्छी जिंदगी जिये। हमारे देश में लगभग हर व्यक्ति संपन्न है, केवल वही व्यक्ति परेशान है, जो काम करना नहीं चाहता है या फिर जिसे सहयोग नहीं मिल पा रहा है। मैं यह मानता हूं कि जिस गांव घर में जितनी ज्यादा संख्या में गोवंश होगा, वो घर उतना ही समृद्ध घर होगा। यदि आप जनप्रतिनिधि हैं और आप अपने गांव के लोगों को रोजगार से जोड़ना चाहते हैं तो इसमें जनप्रतिनिधि की अहम भूमिका होती है।  जो भी रो मटेरियल है उसकी व्यवस्था ऐसी जगह करें जहां पर उसका इस्तेमाल दोबारा हो सके। जैसे कि यह गोवंश जब दुधारू स्थिति में आता है तब यह किसी भी बेरोजगार के पास जाएगा तो उसे रोजगार जरूर देगा। लेकिन 6 महीने या 1 साल बाद जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो इसका फायदा काम होने लगता है। अगर हम गांव में दूध उत्पादन के लिए लोगों को लोन देकर प्रोग्रेसिव डेरियां खुलवाते हैं तो हमें साथ-साथ में ड्राई डेरी भी चलानी चाहिए। जैसे मेरे पास ड्राई डेरी है मैं कभी भी दूध के बारे में नहीं सोचता हूं। लेकिन अगर मेरा पड़ोसी बेरोजगार है और वह प्रोग्रेसिव डेरी खोलना चाहता है तो उसके पास दुधारू गाय के साथ बछड़े भी होंगे और बुजुर्ग गाय भी होंगी या एक न एक दिन उसकी गाय दूध देना भी बंद कर देगी। अगर कोई भी गाय के भरोसे रोजगार करना चाहे तो एक न एक बार ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है कि उसने जितना भी कमाया होता है उसके पास उतना भी नहीं बचता। मेरा मानना है कि अगर गांव में एक ड्राई डेरी हो और सरकार उसमें स्ट्रक्चर और भरण पोषण की व्यवस्था कर दे तो मेल गोवंश और जो गोवंश दुधारू नहीं है वो वहां लाए जा सकते हैं। और जब वो गाबलिन स्थिति में आए तो उन बेरोजगारों को दे दिए जाएं। तभी हकीकत में श्वेत क्रांति आएगी और घर-घर में दूध होगा। बेरोजगारों को हम लगातार रोजगार से जोड़ सकते हैं। इसके साथ ही दूध के कलेक्शन सेंटर में यदि दूध की कीमत निर्धारित कर दी जाए तो वहां बड़े लेवल पर हो रही धंधेबाजी रुकेगी। यह रोजगार की दृष्टि से भी बहुत बड़ा कदम होगा। और भविष्य में कोई भी गोवंश को यह नहीं कह सकेगा कि यह अन उपयोगी है। क्योंकि दूध के अलावा भी जहां भी गोवंश है उसका गोबर और गोमूत्र से कई तरह के प्रोडक्ट्स तैयार किया जा सकते हैं।  और वही मैं अभी भी कर रहा हूं।

    आज के बच्चों की गोसेवा में रुचि नहीं

    क्या आपके बच्चे इस काम में इंटरेस्ट लेते हैं? राम ने जवाब दिया कि नई जनरेशन इस काम को करने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं लेती है। जैसे कि मैंने शुरू में बोला था कि मैं अपने बच्चों से ज्यादा इन गोवंशों के साथ रम चुका हूं। जब सारी चीज व्यवस्थित होगी और यह गोवंश उत्पादन की स्थिति में होंगे तो जरूरी नहीं है कि सिर्फ मेरे ही बच्चे बल्कि कोई भी व्यक्ति धर्म दृष्टि से इनसे जुड़ जाएगा और इस काम को आगे करेगा। गाय हमेशा देती है किसी से लेती कुछ भी नहीं है। भविष्य में आज नहीं तो कल बच्चे भी इन्हें स्वीकार करेंगे और भविष्य भी स्वीकार करेगा।

    2008 में तो इनमें से ज्यादातर गोवंश पैदा भी नहीं हुआ होगा। उस समय पुलिस ने जैसे भी गाय दी चाहे वह मेल हो फीमेल हो, दुधारू हो मैंने सबको रखा। लेकिन अब जो गाय मेरे यहां पैदा हुई हैं मैं उन्हें बच्चों की तरह रखता हूं।

    2008 में जब वह ग्राम प्रधान बने, लोग वन्यजीवों की बहुत ज्यादा तस्करी करते थे। उन्होंने 10 से ज्यादा उल्लू और डेढ़ सौ से ज्यादा चील और गिद्ध, हिरन, घुराल, विदेशी पक्षी, सुअर जैसे जंगली जानवरों को बचाया था। उन्हें वन विभाग से तीन बार राज्य सरकार, एक बार भारत सरकार द्वारा पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार और अपने क्षेत्र में नशे के खिलाफ अभियान चलाने के लिए मुझे राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था। उस समय प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे और उनके कर कमल से मुझे सम्मानित होने का मौका मिला।

    cow vigilante rumi ram jaswal उत्तराखंड के गोरक्षक गोवंश तस्करी रूमी राम जसवाल
    Follow on Facebook Follow on X (Twitter) Follow on Pinterest Follow on YouTube Follow on WhatsApp Follow on Telegram Follow on LinkedIn
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn
    teerandaj
    • Website

    Related Posts

    Uttarakhand : ग्रेजुएट लेवल भर्ती पेपर लीक मामले में एकल सदस्यीय आयोग ने सौंपी रिपोर्ट

    October 11, 2025 उत्तराखंड 360 By teerandaj2 Mins Read2
    Read More

    बेजोड़ इकोनॉमी की राह पर Uttarakhand

    October 11, 2025 उत्तराखंड 360 By teerandaj5 Mins Read2
    Read More

    किसान मेला : भारत की सभ्यता और संस्कृति कृषि के चारों ओर ही हुई विकसित : राज्यपाल

    October 11, 2025 उत्तराखंड 360 By teerandaj6 Mins Read3
    Read More
    Leave A Reply Cancel Reply

    https://www.teerandaj.com/wp-content/uploads/2025/08/Vertical_V1_MDDA-Housing.mp4
    अतुल्य उत्तराखंड


    सभी पत्रिका पढ़ें »

    Top Posts

    Uttarakhand : आपदा में भी मुस्कुराई जिंदगी, पहाड़ों को लांघकर पहुंची मेडिकल टीम, घर में कराई डिलीवरी

    August 31, 202531K

    CM Dhami ने दून अस्पताल में निरीक्षण कर मरीजों से लिया फीडबैक, वेटिंग गैलरियों में पंखे लगाने, सुविधाएं बढ़ाने के निर्देश

    September 13, 202531K

    ऋषिकेश में अवैध निर्माणों पर MDDA की ताबड़तोड़ कार्रवाई, 11 बहुमंजिला स्ट्रक्चर सील 

    August 30, 202531K

    Chardham Yatra-2025: चलो बुलावा आया है, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की यात्रा बहाल

    September 6, 202524K
    हमारे बारे में

    पहाड़ों से पहाड़ों की बात। मीडिया के परिवर्तनकारी दौर में जमीनी हकीकत को उसके वास्तविक स्वरूप में सामने रखना एक चुनौती है। लेकिन तीरंदाज.कॉम इस प्रयास के साथ सामने आया है कि हम जमीनी कहानियों को सामने लाएंगे। पहाड़ों पर रहकर पहाड़ों की बात करेंगे. पहाड़ों की चुनौतियों, समस्याओं को जनता के सामने रखने का प्रयास करेंगे। उत्तराखंड में सबकुछ गलत ही हो रहा है, हम ऐसा नहीं मानते, हम वो सब भी दिखाएंगे जो एकल, सामूहिक प्रयासों से बेहतर हो रहा है। यह प्रयास उत्तराखंड की सही तस्वीर सामने रखने का है।

    एक्सक्लूसिव

    Dhami Cabinet विस्तार का काउंटडाउन शुरू? पूर्व मंत्रियों को तत्काल मंत्री आवास खाली करने को कहा गया, देखें पत्र

    August 27, 2025

    Dehradun Basmati Rice: कंकरीट के जंगल में खो गया वजूद!

    July 15, 2025

    EXCLUSIVE: Munsiyari के जिस रेडियो प्रोजेक्ट का पीएम मोदी ने किया शिलान्यास, उसमें हो रहा ‘खेल’ !

    November 14, 2024
    एडीटर स्पेशल

    Uttarakhand : ये गुलाब कहां का है ?

    February 5, 202512K

    India Space Missions … अंतरिक्ष में भारत का बसेरा!

    September 14, 202511K

    Dehradun Basmati Rice: कंकरीट के जंगल में खो गया वजूद!

    July 15, 202511K
    तीरंदाज़
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube Pinterest LinkedIn WhatsApp Telegram
    • होम
    • स्पेशल
    • PURE पॉलिटिक्स
    • बातों-बातों में
    • दुनिया भर की
    • ओपिनियन
    • तीरंदाज LIVE
    • About Us
    • Atuly Uttaraakhand Emagazine
    • Terms and Conditions
    • Privacy Policy
    • Disclaimer
    © 2025 Teerandaj All rights reserved.

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.