- पार्थसारथि थपलियाल
भारत के लोकतांत्रिक जीवन में हाल के वर्षों में कई घटनाएं ऐसी घटी हैं जिन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि बाहरी शक्तियां और आंतरिक अवसरवादी तत्व मिलकर अराजकता फैलाने का प्रयास करते हैं। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में युवाओं की नाराजगी को भड़काकर जिस तरह व्यवस्था को अस्थिर किया गया और फ्रांस जैसे परिपक्व लोकतंत्र में भी सड़क की राजनीति ने सरकार को चुनौती दी, उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह सब संयोग है या प्रयोग। भारत के संदर्भ में यह प्रश्न और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अमेरिका के धनाढ्य व्यक्ति जॉर्ज सोरोस ने कुछ वर्ष पहले घोषणा की थी कि भारत सरकार को अस्थिर करने के लिए उसमें एक हजार करोड़ रुपये का फंड निर्धारित कर रखा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने पिछले ग्यारह वर्षों में जो राजनीतिक स्थिरता हासिल की है, वह वैश्विक ताक़तों को असहज करती है। 2014 के बाद से देश की राजनीति में जो सबसे बड़ा परिवर्तन दिखा, वह यह था कि सरकार को ‘टीम इंडिया’ की संज्ञा दी गई। इसका आशय यह था कि यह केवल एक दल की सरकार नहीं बल्कि राष्ट्र के हर वर्ग, हर क्षेत्र और हर राज्य के सहयोग से बनी साझी व्यवस्था है। इस टीम में शामिल नेता दूरदर्शी, परिपक्व, दृढ़ निश्चित और लोकतांत्रिक मूल्यों के रक्षक हैं। ‘डीप स्टेट’ का प्रयास में कभी प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच मतभेद की अफवाहें फैलाना, कभी गृहमंत्री अमित शाह और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के बारे में भ्रामक प्रचार करना- ये सब इसी रणनीति का हिस्सा रहे हैं। सोशल मीडिया पर चलने वाली फर्जी ख़बरें, फ़ोटोशॉप किए गए वीडियो और झूठे नैरेटिव इस बात का प्रमाण हैं कि बाहरी शक्तियां भारत की आंतरिक राजनीति को धनबल पर प्रभावित करने का प्रयास करती हैं। यह भी देखने समझने योग्य बात है कि पिछले ग्यारह वर्षों में किसी भी केंद्रीय मंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध नहीं हुआ। विपक्षी दलों ने भले ही कई बार सरकार के विरुद्ध आरोपों की बौछार की हो, किंतु न तो कोई घोटाला उजागर हुआ, न ही कोई मंत्री व्यक्तिगत लाभ के आरोप में फँसा। पूर्व की सरकारों के कार्यकाल में घोटाले, रिश्वत और भाई – भतीजावाद अक्सर सरकारों की पहचान बनते रहे थे। मोदी सरकार ने राजनीति को पारदर्शिता का नया मानक दिया।
यह सच है कि लोकतंत्र में असहमति और आलोचना आवश्यक है। किंतु जब यह आलोचना गली मोहल्ले की गालीगलौज तक आ जाए, भाषा सांस्कृतिक सीमाएं पार कर दे, सामाजिक मर्यादाओं को तार तार कर दे, राष्ट्रविरोधी स्वरूप धारण कर ले, तो वह केवल विपक्ष की कमजोरी ही नहीं बल्कि लोकतंत्र के लिए भी चुनौती ही नहीं खतरा भी है। कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी और कुछ वामपंथी नेताओं द्वारा दिए गए बयान कई बार इस सीमा को लांघ जाते हैं। अनुच्छेद 370, नागरिकता संशोधन कानून, कृषि सुधार और यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भी कुछ विपक्षी नेताओं ने ऐसे वक्तव्य दिए जिन्हें विदेशों की ताक़तों ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया। यही नहीं, भारत की छवि को धूमिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर सरकार पर आरोप लगाना लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ है।
भारत में युवाओं की संख्या बड़ी है और यह सबसे बड़ी ताक़त है। किंतु यदि इस ऊर्जा का इस्तेमाल राष्ट्र निर्माण में न होकर अराजक आंदोलनों में हो, तो स्थिति गंभीर हो सकती है। पड़ोसी देशों में यही हुआ। महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से त्रस्त जनता को सोशल मीडिया के जरिये भड़काकर व्यवस्था के खिलाफ खड़ा कर दिया गया। भारत में भी इसी प्रयोग की कोशिश की गई, किंतु यहां प्रधानमंत्री मोदी की ‘जनता के बीच विश्वसनीयता’ और सरकार की स्पष्ट नीति ने उन प्रयासों को सफल नहीं होने दिया।
प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति का आधार केवल सत्ता नहीं है, बल्कि जनता का भरोसा है। यही कारण है कि वे हर मंच पर ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ की बात करते हैं। यह राजनीति विभाजनकारी नहीं, बल्कि समावेशी है। इसी के चलते केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल बना और ‘टीम इंडिया’ की अवधारणा मजबूत हुई। इस टीम ने न केवल विकास को प्राथमिकता दी बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा भी सुनिश्चित की। पड़ोसी देशों और पश्चिमी लोकतंत्रों में जो अराजक आंदोलन हुए, वे केवल घरेलू समस्याओं का परिणाम नहीं थे। उनके पीछे बाहरी शक्तियों की सक्रियता भी थी। भारत को इन प्रयोगों से सावधान रहना होगा। डीप स्टेट जब देखता है कि सीधा हमला संभव नहीं है, तब वह अंदरूनी मतभेद और वैमनस्य पैदा करने की चाल चलता है।
वर्तमान सरकार जिसे टीम भारत के तौर पर देखा जाता है, चाक चौबंद है। डीप स्टेट और अवसरवादी विपक्षी राजनीति की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत स्थिर है और मजबूत भी। अतः आज सबसे बड़ी जिम्मेदारी जनता, मीडिया और राजनीतिक नेतृत्व पर है कि वे राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर इन प्रयोगों को विफल करें। इस डीप स्टेट की गतिविधियों पर सरकार को ही नहीं जनता को भी पैनी निगाह रखने की आवश्यकता है।