मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत के बाद कफ सिरप की गुणवत्ता को लेकर देश भर में गंभीर सवाल उठे हैं। यहां तक कि मध्य प्रदेश ने तमिलनाडु में बनने वाले कोल्ड्रिफ कफ सिरप पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। राज्य की सरकारें अपने यहां छापेमारी करवा रही हैं। उत्तराखंड में भी कोल्ड्रिफ कफ सिरप पर रोक लगा दी गई है। लोगों से अपील की जा रही है कि खुद से खरीद कर कोई कफ सिरफ को बच्चों को न दें। लेकिन, यहां बताते चले कि देश में केमिस्ट को डॉक्टर समझने का चलन बहुत पुराना है। यानी, केमिस्ट से दवाएं पूछकर खूब खरीदे जाते हैं। अब तो अधिकांश लोग इंटरनेट पर सर्च कर दवाएं ले लेते हैं। जबकि, हर कफ सिरप एक जैसे काम नहीं करते हैं। सबमें अलग-अलग सॉल्ट होते हैं। कुछ फर्क तो सिर्फ डॉक्टर ही बता सकते हैं। इसलिए खुद या किसी व्यक्ति की सलाह पर दवाएं लेना सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार चेतावनी दे चुका है कि डाइइथिलीन ग्लाइकोल और इथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी या ईजी) से दूषित सिरप, बच्चों में किडनी फेलियर और मौत तक का कारण बन सकते हैं। वहीं क्लोरफेनेरमाइनऔर डेक्सट्रोमेथोर्फेन भी बच्चे पर दुष्प्रभाव डाल सकते हैं। जैसे आज सभी परिवार इस चीज़ को लेकर जागरूक हैं कि बच्चों को टीका लगना चाहिए वैसे ही अगर इन दवाइयों और सिरप को लेकर भी जागरूकता आएगी तो कंपनियां भी सतर्क होंगी।
दरअसल, अपना देश दवाएं बनाने में अग्रणी है। लेकिन, कुछ कंपनियों की तरफ से मानक की अनदेखी करने की वजह से दुनिया में नाम भी खराब हो रहा है। दूसरे देशों में एक्सपोर्ट होने वाले भारतीय कफ सिरप को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। अफ्रीकी देश गंबिया 66 बच्चों की मौत के मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2022 में भारत की एक दवा कंपनी के चार कफ और कोल्ड सिरप को लेकर चेतावनी जारी की थी। तब भी काफी शोर शराबा हुआ था।
मध्य प्रदेश और राजस्थान की हालिया घटनाओं के मद्देनजर केंद्र सरकार ने बच्चों के लिए कफ सिरप के इस्तेमाल से संबंधित एडवाइज़री जारी की है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने सलाह दी है कि दो साल और उससे कम उम्र के बच्चों को खांसी-ज़ुकाम की दवाएं नहीं दी जानी चाहिए।पांच साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों के लिए भी आमतौर पर ऐसी दवाओं की सलाह नहीं दी जाती, लेकिन अगर देते हैं तो डोज का ध्यान रखना चाहिए और कई तरह की दवाइयों को एक साथ लेने से बचना चाहिए। मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हेल्थ सर्विसेज़ के डायरेक्टर को इस बारे में पत्र भी लिखा है।
कब लेना चाहिए कफ सिरप
इसमें कहा गया है कि बच्चों में खांसी आमतौर पर खुद ही ठीक हो जाती है और इसके लिए अक्सर दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे में ये जानना अहम हो जाता है कि आखिर कफ सिरप कब लेने चाहिए, लेना चाहिए भी या नहीं, जब न लेने की सलाह दी जाए तो कौन से विकल्प अपनाने चाहिए और अगर सिरप खरीदना हो, तो खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। अधिकांश डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादातर सर्दी-जुकाम वाली खांसी अपने आप ठीक हो जाती है। आप भाप लेकर, शरीर को पर्याप्त आराम देकर, गुनगुना पानी पीकर,सलाइन नेसल ड्रॉप्स के जरिए खांसी को कंट्रोल कर सकते हैं। बहुत दिक्कत हो तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। हो सकता है कि डॉक्टर कफ सिरप लिखें ही नहीं क्योंकि कफ सिरप में मौजूद सेडेटिव्स आपको बस थोड़ी राहत देते हैं, खांसी ठीक नहीं करते।
घरेलू उपाय पर दें ध्यान
डॉक्टर्स का कहना है कि हल्की खांसी या वायरल में पहले घरेलू उपाय ही करने चाहिए। जैसे गुनगुना पानी पीना, भाप लेना और एक साल से बड़े बच्चों को थोड़ा शहद देना। विशेष तौर पर जब खांसी इतनी हो रही हो कि रात में सोना दूभर हो जाए, कोई एलर्जी वजह हो, या फिर एसिडिटी की वजह से खांसी हो रही हो। तभी डॉक्टर के पास जाएं और उनकी सलाह पर ही दवा या कफ सिरप लें। डॉक्टर हमेशा कफ सिरप की डोज बच्चे के वजन और उम्र के हिसाब से ही तय करते हैं, इसलिए उसका ध्यान रखें। सिरप को चम्मच की बजाए, दवा के कप या डोजिंग चम्मच में ही दें।
किस उम्र में सिरप देना सुरक्षित है?
डॉक्टरों का कहना है कि चार साल से कम उम्र के बच्चों को ओवर-दी- काउंटर यानी बिना प्रिस्क्रिप्शन मिलने वाला सिरप खुद से न दें। बच्चा दो साल या उससे कम उम्र का हो तो और सावधानी बरतें। डॉक्टर की जांच और प्रिस्क्रिप्शन के बिना किसी कॉम्बिनेशन सिरप का इस्तेमाल न करें। शहद केवल एक साल से ऊपर के बच्चों को दें, उससे छोटे बच्चों में इंफेक्शन का खतरा रहता है।
हर्बल कफ सिरप सुरक्षित है?
देश में इस वक्त कफ सिरप की गुणवत्ता को लेकर बहस जारी है। वहीं दूसरे देशों में एक्सपोर्ट होने वाले भारतीय कफ सिरप को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि हर्बल लिखे होने का मतलब कतई ये नहीं कि वो हमेशा सुरक्षित हों या उसमें कोई हानिकारक पदार्थ न इस्तेमाल हुआ हो। इनमें भी दूषित केमिकल्स हो सकते हैं। इसलिए हमेशा भरोसेमंद कंपनियों की दवाएं खरीदें।
नकली सिरप से क्या परेशानियां हो सकती हैं?
नकली सिरप से सांस लेने में तकलीफ,उल्टी,सुस्ती या बेहोशी,तेज सांस, दौरा, पेशाब बहुत कम या न होना,पेट दर्द, दिमाग पर भी असर हो सकता है, हार्ट बीट रुक सकती है। इससे मिलते-जुलते कोई भी लक्षण नजर आएं तो जल्द से जल्द डॉक्टर के पास जाएं।
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