Global Warming Research Story : पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन के घातक परिणाम सामने आने लगे हैं। अपना देश भी इससे अछूता नहीं है। हिमालयी राज्य उत्तराखंड की बात की जाए तो प्राकृतिक आपदाएं यहां की नियति बन चुकी हैं। हर वर्ष इसमें कई लोगों की जान जाती है। भुस्खलन की धटनाएं काफी बढ़ गई हैं। ऐसा बेमौसम व ढेर बारिश के कारण हो रहा है। ऐसे में काफी समय से इस विषय पर शोध की जरूरत महसूस की जा रही थी। जो स्थान विशेष के बारे में सटीक जानकारी दे सके। ऐसे में जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआइएच) रुड़की में हिममंडल एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे मौसम के बारे में सटीक जानकारी मिल सकेगी। इसकी मदद से प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में मदद भी मिलेगी।
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दरअसल, इस विषय पर दुनिया भर में शोध हो रहे हैं। लेकिन, परेशानी यह है कि हर राज्य की भागौलिक स्थितियां अलग होती हैं। इसे ऐसे समझिए- जो ग्लेशियर दक्षिण में हैं वहां पर धूप पड़ने की स्थिति में बर्फ के पिघलने की रफ्तार ज्यादा हो सकती है। ग्लेशियर की ऊंचाई उसके आकार वहां के तापमान पर उसके पिघलने की रफ्तार निर्भर करती है। ऐसे में किसी क्षेत्र विशेष के हिमनद पर अध्ययन करके दूसरे क्षेत्र के बारे में सटीक आंकड़े प्राप्त नहीं किए जा सकते। इसलिए हिममंडल एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना की गई है। यहां के वैज्ञानिक इसी विषय पर शोध करेंगे।
बताया जा रहा है कि यहां के 11 वैज्ञानिकों की टीम 16 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम रही है। इसके अलावा ग्लेशियर संबंधी सभी शोध को एक स्थान पर एकत्र करने के लिए पोर्टल भी तैयार हो रहा है। इससे देश के दूसरे हिस्सों में हो रहे शोध को मदद मिल सकेगी।
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मीडिया से बातचीत के दौरान हिममंडल एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र के प्रमुख विज्ञानी डा. सुरजीत सिंह ने बताया कि हिमनद पर नेपाल, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका, यूके, रूस, चीन आदि देश शोध कर रहे हैं। भारत में भी 12 से अधिक अनुसंधान, विकास और शैक्षणिक संस्थान इस पर अध्ययन कर रहे हैं। इस तरह के शोध में कई बार दोहराव का खतरा बना रहता है। इससे मैनपावर एवं पैसे की बर्बादी की आशंका रहती है। सभी शोध कार्यों की जानकारी एक जगह उपलब्ध हो, इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय ने केंद्र को एक पोर्टल विकसित करने के निर्देश दिए हैं। सी-डैक पुणे यह पोर्टल तैयार कर रहा है। ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि पोर्टल में अपना शोध डालने वाले संस्थान या शोधकर्ता की अनुमति के बिना उसकी डिटेल रिपोर्ट और आंकड़े नहीं देखे जा सकेंगे।
बड़े काम का साबित होगा यह केंद्र
अब तक भारत में हिम और हिमनद अनुसंधानीय अध्ययन से संबद्ध ऐसा कोई एकल संस्थान नहीं था, जो अंतःविषयक अनुसंधान एवं विकास कार्यों में संलग्न हो। साथ ही हिम और हिमनद अनुसंधान अध्ययनों से संबद्ध विभिन्न मुद्दों का शुरू से आखिर तक समाधान प्रदान करता हो। इस केंद्र की स्थापना से यह कमी दूर हो जाएगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हिमालयी राज्यों को इससे काफी लाभ होगा। क्यों कि प्राकृतिक आपदाओं की सबसे ज्यादा मार वही झेलते हैं।
हिमालयी क्षेत्र में चार ग्लेशियरों का अध्ययन
एनआइएच रुड़की हिमालय के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक उत्तरकाशी स्थित 30 किमी लंबे गंगोत्री ग्लेशियर की वर्ष 2002 से निगरानी कर रहा है। वहां पर आटोमेटिक वेदर स्टेशन भी लगाया हुआ है। हाल ही में संस्थान ने हिमालय के तीन और ग्लेशियर की निगरानी शुरू की है। इनमें उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित मिलम ग्लेशियर, टिहरी जिले का खतलिंग ग्लेशियर और हिमाचल प्रदेश का त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर शामिल है। हालांकि, ऐसे अध्ययन कई वर्षों तक चलते हैं। तब जाकर वैज्ञानिक किसी निष्कर्ष तक पहुंचते हैं।