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    किसान मेला : भारत की सभ्यता और संस्कृति कृषि के चारों ओर ही हुई विकसित : राज्यपाल

    188वें अखिल भारतीय किसान मेले का राज्यपाल गुरमीत सिंह ने फीता काट कर शुभारंभ किया। उन्होंने मेले में लगे स्टाल का भ्रमण कर लोगों से बातचीत भी की। जिसके बाद उन्होंने गांधी हॉल में किसानों और वैज्ञानिकों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने नव निर्मित सेमीकंडक्टर लैब और आडिटोरियम का उद्घाटन करते हुए 6 पुस्तकों का विमोचन भी किया। इसके अलावा प्रदेश भर के प्रगतिशील कृषकों को सम्मानित किया।
    teerandajBy teerandajOctober 11, 2025No Comments
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    किसान मेला : कृषि केवल आजीविका नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी आत्मा और हमारे अस्तित्व का प्रतीक है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में कृषि का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व और भी अधिक है। यहां के लोग केवल खेती नहीं करते, बल्कि धरती को मां और बीज को जीवन का बीजांकुर मानते हैं। यह बातें राज्यपाल ले. ज. (सेवानिवृत) गुरमीत सिंह ने शुक्रवार को पंतनगर में 118वें किसान मेले एवं कृषि उद्योग प्रदर्शनी के शुभारंभ के मौके पर कहीं। राज्यपाल ने किसानों और वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में किसान को सृष्टि का पोषक कहा गया है। यह केवल अन्न उत्पादन का आदेश नहीं, बल्कि भूख मिटाने, समाज को पोषित करने और जीवन की निरंतरता बनाए रखने का सामाजिक दायित्व है। भारत की सभ्यता और संस्कृति कृषि के चारों ओर ही विकसित हुई है।

    हमारे त्योहार, हमारे गीत, हमारे लोकाचार, इन सभी में कृषि का ही दर्शन है। कहा कि जब हम कृषि की रक्षा करते हैं, तो कृषि हमारी रक्षा करती है। कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। आज भी देश की लगभग आधी जनसंखव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। श्रम न्यूनतम, उत्पादन में वृद्धि कर रहे नवाचार राज्यपाल ने कहा कि नई-नई वैज्ञानिक विधिया, स्मार्ट कृषि उपकरण, सेसर आधारित सिंचाई प्रणाली और द्वोन सर्वे जैसे नवाचार न केवल किसानों का श्रम कम कर रहे हैं। उत्तराखंड एक कृषि प्रधान राज्य है, यहां की जलवायु विशेषताएं इसे जैविक और प्राकृतिक खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त बनाती हैं। उन्हें बहुत प्रसन्नता है कि पत विवि के मार्गदर्शन में आज किसान, प्रकृति से संवाद करते हुए धरती की उवंगशक्ति को पुनजीवित कर रहे हैं।

    गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मनमोहन सिंह चौहान ने कहा कि किसान मेलों के माध्यम से पिछले एक वर्ष में डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के बीज किसानों तक पहुंचे हैं। यह न केवल तकनीक के क्षेतिज विस्तार का प्रतीक है, बल्कि किसानों में आत्मविश्वास जगाने वाला कदम भी है। उन्होंने बताया कि किसान मेले में 503 स्टाल लगाए गए हैं। मेला प्रभारी एवं निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. जितेंद्र क्वात्रा ने बताया कि इस बार मेले में 30 से 35 हजार किसानों के आने की संभावना है। महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा घरेलू उत्पादों जैसे जैम, अचार, बेकरी उत्पाद और हस्तशिल्प सामतियों का प्रदर्शन किया जा रहा है। इस अवसर पर छह कृषि साहित्यों का विमोचन सहित राज्य के 12 प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया गया।

    श्रीअन्न हमारे पहाड़ की अमूल्य धरोहर
    राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड के कृषि उद्योग की प्रगति और किसानों के सशक्तीकरण के तीन प्रमुख स्तंभ हैं। श्रीअन्न की खेती, शहद उत्पादन और सगंध खेती। श्रीअन्न की फसलें हमारे पहाड़ों की अमूल्य धरोहर हैं। इन फसलों में पोषण, परंपरा और पर्यावरणीय संतुलन भी है। कहा कि शहद उत्पादन में उत्तराखंड देश में अग्रणी राज्य बन सकता है। सगंध यानी ओषधीय और सुगंधित पौधों की खेती से पहाड़ी किसानों की आमदनी कई गुना बड़ सकती है। कहा कि उनका दृढ़ विश्वास है, इन तीन क्षेत्रों को मिशन मोड में विकसित किया जाए, तो उत्तराखंड के किसान आत्मनिर्भर होंगे।

    अन्नदाता मजबूत, तो देश मजबूत : कृषिमंत्री
    कृषिमंत्री गणेश जोशी ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत आज 89 देशों को खाद्यान निर्यात कर रहा है। यह किसानों और वैज्ञानिकों की मेहनत का नतीजा है। कहा कि प्रधानमंत्री जितना सम्मान सैनिकों का करते हैं, उतना ही सम्मान किसानों का करते हैं। जोशी ने कहा जब अन्नदाता मजबूत, होगा तो देश भी मजबूत होगा। उन्होंने मिलेट को और बढ़ावा देने सहित वोकल फॉर लोकल को अपनाने की अपील की।

    उद्यान प्रदर्शनी में प्रविष्टियों की भरमार
    मेले के दौरान कृषि महाविद्यालय की ओर से उद्यान प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसमें सब्जी, परिलक्षित पदार्थ एवं फल-फूल प्रदर्शनी में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के 29 कृषकों ने प्रतिभाग किया। जिसमें सब्जी वर्ग में कुल 155 प्रविष्टि, गमले में लगे पौधों में 71 परिलक्षित पदार्थों में 70, कुल मिलाकर 306 प्रविष्टियां प्राप्त हुईं। उत्तराखंड में अल्मोड़ा, ऊधमसिंह नगर नैनीताल, देहरादून व टिहरी गढ़वाल और फिरोजाबाद व लखनऊ के किसानों ने प्रतिभाग किया।

    मनचाहे बीज मिलने से खिले किसानों के चेहरे
    किसान मेले के पहले दिन किखनों की पहली पसंद गेहूं को 327, 303, एचडी-2967 व डीचीडब्ल्यू 187 प्रजाति के बीज रहे। जिसके लिए विवि फार्म, सीआरसी और एसपीसी के स्टॉलों पर देर शाम तक किसानों की लंबी लड़ने लगी रहीं। किसानों को विवि के प्रजनक, आधारीय और स्वप्रमाणित बीजों पर 15 प्रतिशत की छूट दी जा रही है। 11 बजे के बाद पहुंचने वाले किसानों को कुछ देर तक इंतजार करना पड़ा। इधर, बीज लेने के लिए विवि के फार्म, सीआरसी व एसपीसी स्टॉलों पर किसानों की लगभग सी-सौ मीटर लंबी लाइनें शाम तक लगी रहीं। वहीं कुछ किसानों ने मायूस होकर अन्य प्रजातियों के बीजों की खरीदी कर घर वापसी कर ली।

    गेहूं की सभी प्रजातियों पर 15 फीसदी छूट
    मेले में विवि फार्म के स्टॉल पर कम दरों पर आधारीय और स्वप्रमाथित बीज भी उपलब्ध है। सीजीएम फार्म डॉ. जयंत सिंह और एडी डॉ. अजय प्रभाकर ने बताया कि पहले उनके फार्म से उत्पादित अनाज टीडीसी को आपूर्ति किया जाता था। जिसे यह टैगिंग के बाद बीज प्रमाणित कर किसानों को बेचते थे। इस बार हल्दी में टीडीसी कार्यालय और प्रोसेसिंग प्लांट टूट गया है, जिससे उन्होंने कम इन्टेक किया है। जिसकी जमाव क्षमता प्रजनक बीजे की तरह 35 से 92 प्रतिशत तक ही है। उनके स्टॉल पर किसानों को गेहूं की सभी प्रजातियों पर 15 प्रतिशत छूट के साथ आधारीय बीज 42 रूपये प्रति किया और स्वप्रमाणित सीव 36 रुपये प्रति किलो उपलब्ध कराया जा रहा है। स्टॉल पर लगभग 3000 क्विंटल बीजों की उपलब्धता है।

    औद्योगिक अपशिष्ट नहीं बेकार, इनमें भी प्रोटीन का भंडार
    जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विवि स्थित प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में पोस्ट हार्वेस्ट प्रोसेसिंग एंड फूड इंजीनियरिंग विभाग के एमटेक छात्र अमन पाल ने एडवाइजर डॉ. सचिन कुमार के मार्गदर्शन में एक अभिनव न्यूट्रिशनल बटर बनाया है। स्वाद और प्रोटीन से भरपूर यह बटर औद्योगिक रूप से फेंके जाने वाले पेठे के बीजों से बना है। जो वैल्यू-पेडिशन पर आधारित है। छात्र अमन ने बताया कि उन्होंने ऐसे बीजों का उपयोग किया है, जो आमतौर पर उद्योगों से अपशिष्ट के रूप में त्याग दिए जाते हैं जबकि उनमें प्रचुर मात्रा में स्वस्थ वसा, प्रोटीन और खनिज आदि तत्व पाए जाते हैं। उनका यह तोध इस बात का प्रमाण है कि औद्योगिक अवशेष भी स्वास्थ्यवर्धक और उच्च पोषण युक्त उत्पादों में बदले जा सकते हैं।

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