Mohan Bhagwat Birthday – आज 11 सितंबर है। यह दिन अलग-अलग स्मृतियों से जुड़ा है। एक स्मृति 1893 की है, जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागों में विश्व बंधुत्व का संदेश दिया और दूसरी स्मृति है 9/11 का आतंकी हमला, जब विश्व बंधुता को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई गई। आज के दिन की एक और विशेष बात है। आज एक ऐसे व्यक्तित्व का 75वां जन्मदिवस है, जिन्होंने वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र पर चलते हुए समाज को संगठित करने, समता समरसता और बंधुत्व की भावना को सशक्त करने में अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। संघ परिवार में जिन्हें परम पूजनीय सरसंघचालक के रूप में श्रद्धाभाव से संबोधित किया जाता है, ऐसे आदरणीय Mohan Bhagwat जी का आज जन्मदिन है।
मेरा Mohan Bhagwat जी के परिवार से बहुत गहरा संबंध रहा है। मुझे उनके पिता, स्वर्गीय मधुकरराव भागवत जी के साथ निकटता से काम करने का सौभाग्य मिला था। मैंने अपनी पुस्तक ज्योतिपुंज में मधुकरराव जी के बारे में विस्तार से लिखा भी है। अपनी युवा अवस्था में उन्होंने लंबा समय गुजरात में बिताया और संघ कार्य की मजबूत नींव रखी। मधुकरराव जी का राष्ट्र निर्माष्ण के प्रति झुकाव इतना प्रबल था कि अपने पुत्र मोहनराव को भी पढ़ते रहे। एक पारसमणि मधुकरराय ने मोहनराव के रूप में एक और इस महान कार्य के लिए निरंतर पारसमणि तैयार कर दी।
भागवत जी 1970 के दशक के मध्य में प्रचारक बने। जो संघ को जानते हैं, उन्हें पता है कि प्रचारक परंपरा संघ कार्य की विशेषता है। भागवत भी उस महान परंपरा की मजबूत धुरी हैं। भागवत जी ने उस समय प्रचारक का दायित्व संभाला, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश पर इमरजेंसी थोप दी थी। उन्होंने कई वर्षों तक महाराष्ट्र के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों, विशेषकर विदर्भ में काम किया। 1990 के दशक में अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख के रूप में उनके कार्यों को आज भी कई स्वयंसेवक स्नेहपूर्वक याद करते हैं। इसी कालखंड में मोहन भागवत जी ने बिहार के गांवों में अपने जीवन के अमूल्य वर्ष बिताए और समाज को सशक्त करने के कार्य में समर्पित रहे।
वर्ष 2000 में वे सरकार्यवाह और 2009 में सरसंघचालक बने। उन्होंने राष्ट्र प्रथम की मूल विचारधारा को हमेशा सर्वोपरि रखा। सरसंघचालक होना मात्र एक संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं है। यह एक पवित्र विश्वास है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी दूरदर्शी व्यक्तित्वों ने आगे बढ़ाया है और इस राष्ट्र के नैतिक और सांस्कृतिक पथ को दिशा दी है। यह गर्व की बात है कि मोहन भागवत जी ने न केवल इस विशाल जिम्मेदारी के साथ पूर्ण न्याय किया है, बल्कि इसमें अपनी व्यक्तिगत शक्ति, बौद्धिक गहराई और सहृदय नेतृत्व भी जोड़ा है।
इन्होंने अधिक से अधिक युवाओं को संघ कार्य के लिए प्रेरित किया को यात्रा में भागवत जी का कार्यकाल संग में सर्वाधिक परिवर्तन का मन रखना, मोहन जी की बहुत बड़ी विशेषता रही है। संघ की 100 साल है। बेष्ठ कार्य पद्धति अपनाने की इच्छा और बदलत अमन के प्रति खुला कालखंड माना जाएगा। चाहे गणवेश परिवर्तन हो या संघ शिक्षा वगों में बदलाव हो, ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन उनके निर्देशन में संपन्न हुए। कोरोना काल में उन्होंने स्वयंसेवकों को सुरक्षित रहते हुए समाजसेवा करने की दिशा दी। हमें कई स्वयंसेवकों को खोना भी पड़ा, लेकिन भागवत जी की प्रेरणा ऐसी थी कि अन्य स्वयंसेवकों की दृढ़ इच्छाशक्ति कमजोर नहीं पड़ी।
इस वर्ष की शुरुआत में मैंने नागपुर में उनके साथ माधव नेत्र चिकित्सालय के उद्घाटन के दौरान कहा था कि संघ अक्षयवट की तरह है। जो राष्ट्रीय संस्कृति और चेतना को ऊर्जा देता है। इसकी जड़ें बहुत गहरी और मजबूत हैं। इन मूल्यों को आगे बढ़ाने में जिस समर्पण से मोहन भागवत जी जुटे हैं, यह हर किसी को प्रेरणा देता है। समाज कल्याण के लिए संघ की शक्ति के निरंतर उपयोग पर उनका विशेष बल रहा है। इसके लिए उन्होंने पंच परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है। इसमें स्व-बोध, सामाजिक समरसता नागरिक शिष्टाचार, कुटुंब प्रबोधन और पर्यावरण के सूत्रों पर चलते हुए राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता दी गई है। हर भारतवासी को पंच परिवर्तन के इन सूत्रों से अवश्य प्रेरणा मिलेगी।
संघ का हर कार्यकर्ता वैभव संपन्न भारत माता का सपना साकार होते देखना चाहता है। इस सपने को पूरा करने के लिए जिस स्पष्ट विजन और ठोस एक्शन की जरूरत होती है, मोहन जो इन दोनों गुणों से परिपूर्ण है। उनके स्वभाव की एक और बड़ी विशेषता है कि वे मृदुभाषी हैं। उनमें सुनने की अद्भुत क्षमता है। यह विशेषता न केवल उनके व्यक्तित्व को गहराई देती है बल्कि उनके दृष्टिकोण को भी गहराई देती है। मोहन जी हमेशा ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के पक्षधर रहे हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि वह अपनी व्यस्तता के बीच संगीत और गायन में भी रुचि रखते हैं। वे विभिन्न भारतीय वाद्ययंत्रों में भी निपुण हैं। पठन-पाठन में उनकी रुचि, उनके अनेक भाषणों और संवादों में साफ दिखाई देती है।
पिछले दिनों देश में जितने सफल जन-आंदोलन हुए, चाहे स्वच्छ भारत मिशन हो या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मोहन भागवत जी ने पूरे संघ परिवार को इन आंदोलनों में ऊर्जा भरने के लिए प्रेरित किया। मैं पर्यावरण से जुड़े उनके प्रयासों जानता हूं। मोहन जी का आत्मनिर्भर भारत पर भी बहुत जोर है। कुछ दिनों में विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ 100 वर्ष का हो जाएगा। यह सुखद संयोग है कि विजयादशमी का पर्व, गांधी जयंती और लालबहादुर शास्त्री की जयंती और संघ का शताब्दी वर्ष एक दिन ही आ रहे हैं। यह भारत और विश्व भर के लाखों स्वयंसेवकों के लिए ऐतिहासिक अवसर है। हम स्वयं सेवकों का सौभाग्य है कि हमारे पास भागवत जी जैसे दूरदर्शी और परिश्रमी सरसंघचालक हैं, जो ऐसे समय में संघ का नेतृत्व कर रहे हैं। एक युवा स्वयंसेवक से लेकर सरसंघचालक तक की उनकी जीवन यात्रा उनकी निष्ठा और वैचारिक दृढ़ता को दर्शाती है। मैं मां भारती की सेवा में समर्पित मोहन भागवत जी के दीर्घ और स्वस्थ जीवन की पुन: कामना करता हूं। उन्हें जन्मदिन पर अनेकानेक शुभकामनाएं।