Name Plate Controversy : कांवड़ मार्ग पर स्थित रेस्टोरेंट, ढाबों पर मालिक के नाम का नेमप्लेट लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की दलील खारिज कर दी। यूपी सरकार ने शुक्रवार को हलफनामा दाखिल किया। इसमें उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि निर्देश के पीछे का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान पारदर्शिता कायम करना और यात्रा के दौरान उपभोक्ताओं/कांवड़ियों को उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में जानकारी देना था। ये निर्देश कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर दिए गए थे ताकि वे गलती से कुछ ऐसा न खाएं, जो उनकी आस्थाओं के खिलाफ हो।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया है, ‘मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और एस वी एन भट्टी की पीठ ने कहा कि वह 22 जुलाई के आदेश पर कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं करेगी। हमने अपने आदेश में जो जरूरत थी वह कह दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में फिर कहा कि किसी को भी नाम बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। इसी के साथ कोर्ट ने अंतरिम रोक 5 अगस्त तक बढ़ा दी। साथ ही पीठ ने मध्य प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों से उनके संबंधित निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को राज्य सरकारों के जवाबों पर अपनी प्रतिक्रियाएं दाखिल करने की अनुमति दी और मामले को 5 अगस्त के लिए स्थगित कर दिया।
पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दुकानदारों को मालिक का नाम चिपकाने की जरूरत नहीं है। बल्कि, वे सिर्फ यह बताएं कि उनके पास कौन-से और किस प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं।
सबसे पहले मुजफ्फरनगर प्रशासन ने दिया था आदेश
इस विवाद की शुरुआत मुजफ्फरनगर से हुई। यहां पर पुलिस ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को इसे पूरे राज्य में बढ़ा दिया।