अप्रैल 2016 के दौरान ड्यूटी करते वक्त ऊधम सिंह नगर में एक डॉक्टर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। डॉक्टर की पत्नी ने मुआवजे के लिए नौ साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रशासन ने उचित अनुग्रह राशि का भुगतान नहीं किया। इसके बाद आदेश दिया कि Uttarakhand सरकार एक करोड़ रुपये डॉक्टर विधवा को मुआवजे के तौर पर अदा करे। दरअसल, 2016 में 50 लाख अनुग्रह राशि को तत्कालीन सीएम ने मंजूरी दे दी थी। जिसे दिया नहीं गया। इस कारण अदालत ने मुआवजा राशि बढ़ दी। इससे पहले हाईकोर्ट ने 1.99 करोड़ रुपये 7.5% वार्षिक ब्याज के साथ देने का आदेश दिया गया था। साथ ही, हाईकोर्ट ने ‘उत्तराखंड मेडिकेयर सर्विस पर्सन्स एंड इंस्टिट्यूशंस (हिंसा और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से रोकथाम) अधिनियम, 2013’ को लागू करने और पीड़ित परिवार को असाधारण पेंशन लाभ देने का निर्देश दिया था। इस आदेश को उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने यह आदेश दिया है।
मामला 20 अप्रैल 2016 का है। बिहार के गया जिले के मूल निवासी 40 वर्षीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार सिंह जसपुर, ऊधम सिंह नगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ओपीडी ड्यूटी पर थे। उन्हें गोली मार दी गई। वह अपने परिवार के साथ अस्पताल परिसर में ही रहते थे। आरोपी माणिक राठी को दो दिन बाद गिरफ्तार किया गया। पुलिस को उसने बताया कि डॉक्टर ने उसके नवजात बच्चे का इलाज करने से इनकार कर दिया था, जिसकी बाद में मौत हो गई, इसी कारण उसने डॉक्टर पर हमला किया।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 26 मई 2016 को उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने डॉक्टर के परिवार को 50 लाख रुपये अनुग्रह राशि देने का प्रस्ताव रखा था, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मंजूरी दी थी। बावजूद इसके, यह राशि कभी जारी नहीं की गई। डॉक्टर की पत्नी ने अदालत में कहा कि यदि 2016 में ही उन्हें यह मुआवजा मिल जाता, तो उन्हें नौ साल लंबी कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ती।
उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि डॉक्टर के परिवार को पहले ही अवकाश नकदीकरण, सामान्य भविष्य निधि (GPF), पारिवारिक पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य लाभ मिल चुके हैं। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के 18 अक्टूबर 2021 के अंतरिम आदेश के तहत डॉक्टर के बेटे को स्वास्थ्य विभाग में जूनियर असिस्टेंट की नौकरी दी गई है। सरकार ने यह भी कहा कि परिवार को पहले ही 10 लाख रुपये का भुगतान किया जा चुका है। सरकार ने हाईकोर्ट द्वारा ‘मल्टीप्लायर मेथड’ का उपयोग करके मुआवजा निर्धारित करने को भी अस्थिर बताया।
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मुख्य सचिव द्वारा परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने की सिफारिश के बावजूद, इसे लागू नहीं किया गया और परिवार नौ वर्षों से न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है… हमारी दृष्टि में, इस घटना की गंभीरता को देखते हुए, यह राशि ब्याज सहित भुगतान की जानी चाहिए।” कोर्ट ने ब्याज जोड़ते हुए मुआवजा राशि 1 करोड़ रुपये तय की। अब तक 11 लाख रुपये का भुगतान किया जा चुका है, सुप्रीम कोर्ट ने शेष 89 लाख रुपये जल्द से जल्द भुगतान करने का निर्देश दिया। अदालत ने अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए 22 अप्रैल को इस मामले की फिर से सुनवाई करने का निर्णय लिया है।