उत्तराखंड में फूलदेई पर्व धूमधाम से मनाया गया। सुबह-सुबह बच्चों के फूलदेई, छम्मा देई के गाने से हर गली-मोहल्ले, गांव गूंज उठे। रंगबिरंगे फूल अपनी डलिया में लेकर निकले बच्चों को देखकर हर कोई निहाल हुए जा रहा था। गांव से लेकर शहर तक फूलदेई को लेकर कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। ढोल-दमाऊं व अन्य वाद्ययंत्रों के साथ भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। बतादें कि चैत्र मास की प्रथम तिथि को फूलदेई पर्व मनाया जाता है। फूलदेई त्योहार को फुलारी, फूल सक्रांति भी कहते हैं। यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इन दिनों पहाड़ों में जंगली फूलों की बहार रहती है।
फूलदेई पर्व की उत्तराखंड में विशेष मान्यता है। फूलदेई (Phool Dei) चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास ही हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है। इस त्योहार को खासतौर से बच्चे मनाते हैं और घर की देहरी पर बैठकर लोकगीत गाने के साथ ही घर-घर जाकर फूल बरसाते हैं। फूल डालने वाले बच्चों को लोग उपहार देते हैं। कुछ जगह पर बच्चों ने बृहस्पतिवार को ही फूल चुनकर रख लिए, ताकि सुबह समय पर फूल डाले जा सकें।
फूलदेई से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है जिसके अनुसार एक समय की बात है जब पहाड़ों मं घोघाजीत नामक राजा रहता था। इस राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम था घोघा। घोघा (Ghogha) प्रकृति प्रेमी थी। एक दिन छोटी उम्र में ही घोघा लापता हो गई। घोघा के गायब होने के बाद से ही राजा घोघाजीत उदास रहने लगे। तभी कुलदेवी ने सुझाव दिया कि राजा गांवभर के बच्चों को वसंत चैत्र की अष्टमी पर बुलाएं और बच्चों से फ्योंली और बुरांस देहरी पर रखवाएं। कुलदेवी के अनुसार ऐसा करने पर घर में खुशहाली आएगी। इसके बाद से ही फूलदेई मनाया जाने लगा।
शासकीय आवास पर बच्चों के साथ लोकपर्व फूलदेई का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया। इस विशेष अवसर पर स्थानीय वेशभूषा में सजे-संवरे बच्चों ने पारंपरिक गीतों के साथ वातावरण को उल्लासपूर्ण बना दिया। ईश्वर से सभी बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।
प्रकृति का आभार प्रकट करने और बसंत… pic.twitter.com/uIb07AeWd5
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) March 14, 2025
उत्तराखंड (Uttarakhand) के अनेक क्षेत्रों मं चैत्र संक्रांति से फूल देई मनाने की शुरूआत हो जाती है। बहुत से इलाके जैसे कुमाऊं और गढ़वाल में एक या दो नहीं बल्कि पूरे आठ दिनों तक भी फूलदेई मनाया जाता है। यह त्योहार मन को हर्षोल्लास से भर देता है। इस त्योहार में प्रफुल्लित मन से बच्चे हिस्सा लेते हैं और बड़ों को भी अत्यधिक संतोष मिलता है। यह त्योहार लोकगीतों, मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ने का भी एक अच्छा अवसर प्रदान करता है और संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा भी देता है। इसी के साथ रंगाें का त्योहार होली भी धूमधाम से मनाई जा रही है।
चमोली जनपद में स्थित गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर में होली का अनोखा दृश्य#Holi2025#GopinathTempleHoli pic.twitter.com/ybofcqRi2R
— Uttarakhand DIPR (@DIPR_UK) March 14, 2025
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