Pithoragarh : सुनने में यह अजीब लग सकता है लेकिन यह पहाड़ की सच्चाई है। यहां पर ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। सीमांत जिला पिथौरागढ़ की तहसील बंगापानी की आबादी करीब 25 हजार है। यहां के लोगों को अगर जुकाम, बुखार भी हो जाए तो दवा लेने इन्हें 100 किलोमीटर दूर धारचूला, मुनस्यारी या फिर जिला अस्पताल जाना पड़ता है। राज्य गठन के 24 साल हो चुके हैं। राज्य सरकार जश्न मना रही है। मनाना भी चाहिए। लेकिन, इस मौके पर हमें उन लोगों की भी बात करनी चाहिए जो अब तक मूलभूत आवश्यकताओं से अछूते हैं।
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पिथौरागढ़ में बीते दो दशकों में अस्पतालों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन सीमांत तहसील बंगापानी में एक भी एलोपैथिक अस्पताल नहीं बन सका। यहां के लोगों को मानसून के दौरान कठिन भौगोलिक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। यहां के लोगों के लिए प्राकृतिक आपदाओं से निपटना सबसे कठिन चुनौती है। इसके अलावा अस्पताल का न होना भी इन लोगों के लिए कष्टदायक है। क्षेत्र के दर्जन भर से भी अधिक गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं। कनार, मेतली, ओखलढुंगा, देवलेख, भटभटा, शिलिंग, खोली, माणी-धामी, आलम-दारमा, मदरमा, बसीरा आदि दर्जनों गांव स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल सकी है। ऐसे में क्षेत्र के लोगों के सामने पलायन के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।
उत्तराखंड बनने के 24 साल बाद भी तहसील मुख्यालय के नजदीकी गांव आलम दारमा, मदरमा, गार्थी, माड़ी-धामी, मेतली, देवलेख समेत अन्य क्षेत्रों के लोगों को इलाज के लिए पांच से 10 किमी पैदल चलकर सड़क तक पहुंचना पड़ रहा है। इसके बाद ये लोग बस पकड़कर जिला मुख्यालय पहुंचते हैं। आप इनका कष्ट महसूस करिए…बीमार व्यक्ति के लिए पांच से दस किलोमीटर का सफर कैसा होता होगा।
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विभागीय तौर पर बंगापानी क्षेत्र मुनस्यारी सीएससी के अंतर्गत आता है। पिथौरागढ़ के सीएमओ मीडिया से बातचीत में कहते हैं अस्पताल खोलने का निर्णय शासन स्तर पर ही लिया जा सकता है। वहां पर अस्पताल खोलने की मांग शासन तक पहुंचाया जाएगा। सवाल यह है कि 24 साल तक इस मांग को शासन तक क्या नहीं पहुंचाया गया? देहरादून में बैठे नीति नियंता क्या यहां के हालात से अनभिज्ञ हैं? या ये लोग इनको भगवान भरोसे छोड़े हैं।
घरों में रखते हैं दवाएं

एक चिंताजनक बात यह है कि यहां के लोग खुद से खरीद कर दवाओं का सेवन कर रहे हैं। सर्दी-जुकाम, बुखार के लिए सभी लोग 100 किलोमीटर का सफर तय कर अस्पताल तो जा नहीं सकते हैं। इसलिए इन क्षेत्रों के अधिकांश घरों में इन मर्जों की दवाएं मेडिकल स्टोर से खरीद कर रखते हैं। लोग एंटीबायोटिक का इस्तेमाल भी धड़ल्ले से कर रहे हैं। चिकित्सक इसे बेहद खतरनाक मानते हैं। डॉक्टरों का कहना है, बिना सलाह एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बेहद खतरनाक है। वैसे तो कोई भी दवा अपने मन से नहीं खानी चाहिए।