हर अभिभावक अपनी आकांक्षाओं का बोझ बच्चों पर डालते हैं। हमेशा से ऐसा होता आया है। इस कारण Cut-throat कंपटीशन का दौर अपने चरम पर पहुंच गया। अब यह बच्चों की सेहत पर भारी पड़ रहा है। फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ टुर्कु से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए अध्ययन (Research) में सामने आया है कि पढ़ाई, नौकरी और अन्य क्षेत्रों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण युवाओं और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसके नतीजे जर्नल यूरोपियन चाइल्ड एंड एडोलसेंट साइकाइट्री में प्रकाशित हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अध्ययन में भारत के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग से जुड़े शोधकर्ता समीर कुमार प्रहराज ने भी सहयोग दिया है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में भारत, चीन, फिनलैंड, ग्रीस, इस्राइल, जापान, नॉर्वे और वियतनाम के 13 से 15 वर्ष की आयु के 13,184 युवाओं को शामिल किया।
भारी पड़ रही हिचक
दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है, इसके बावजूद भारत में इन समस्याओं से जूझते 99 फीसदी किशोर मनोवैज्ञानिक या विशेषज्ञों के पास नहीं जाते हैं। पहले भी कई मंचों से बड़े विशेषज्ञ यह कह चुके हैं कि अपने देश में मानसिक बीमारी को लोग बेहद हल्के में लेते हैं। यह बताने में हिचक या शर्म महसूस होती है कि उन्हें किसी प्रकार की कोई मानसिक बीमारी है।
मनोचिकित्सकों की कमी भी एक वजह
शोधकर्ताओं का कहना है कि देश में मनोचिकित्सकों की सीमित संख्या भी एक बड़ी समस्या है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में प्रति लाख बच्चों और किशोरों पर मनोचिकित्सकों की संख्या महज 0.02 है। वहीं, चीन में यह आंकड़ा 0.09 है। दूसरी तरफ नॉर्वे में प्रति एक लाख किशोरों पर मनोचिकित्सकों की संख्या 47.74 तथा फिनलैंड में 45.4 है।
26 फीसदी बढ़ी चिंताग्रस्त लोगों की संख्या
फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ टुर्कु से जुड़े शोधकर्ताओं के अनुसार एक वर्ष में चिंताग्रस्त लोगों की संख्या में 26 फीसदी का और अवसाद पीड़ितों की संख्या में 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अनुमान है कि 2019 में, 30.1 करोड़ लोग चिंताग्रस्त थे। इनमें 5.8 करोड़ बच्चे और किशोर थे। इसी तरह 28 करोड़ लोग अवसादग्रस्त थे। इनमें 2.3 करोड़ बच्चे और किशोर शामिल हैं।
परेशानी से उबरने के लिए ले रहे सोशल मीडिया का सहारा
शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक, मानसिक समस्याओं से जूझ रहे किशोर और युवा चिकित्सक के पास जाने के बजाय सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। इस कारण वह अपनी बात खुलकर साझा नहीं कर पा रहे हैं। यह उनके स्वास्थ्य के लिए और भी हानिकारक साबित हो रहा है। हालांकि, कई युवा या किशोर इस तरह की दिक्कतों से उबरने के लिए अपने दोस्त, शिक्षक और परिवार के सदस्यों की मदद लेते हैं। ऐसे में सही सलाह या मदद न मिलने के कारण उनकी समस्या ज्यादा बढ़ जाती है।