Obesity Problem : अब तक पतले बच्चे को देखकर मन में ख्याल आता था कि बच्चे को उचित पोषण नहीं मिल रहा है। इसलिए वह कुपोषण का शिकार है। लेकिन, यूनिसेफ की एक रिपोर्ट बताती है कि मानव इतिहास में ऐसा पहली बार है जब मोटे बच्चों की संख्या कम वजन वाले बच्चे से ज्यादा हो गई है। रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ कुपोषण नहीं रह गई। मोटापा (Obesity) उससे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इसका सबसे बड़ा कारण है जंक फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड। यह कुपोषण का नया चेहरा है। यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट चेतावनी देती है कि अगर समय रहते कदम न उठाए गए तो हमारे बच्चे आने वाले वर्षों में मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार बन हैं।
अध्ययन में अभिभावकों को सलाह दी गई है कि वह अपने बच्चे को अधिक से अधिक खेलने के लिए प्रेरित करें। इससे उनका शारीरिक ओर मानसिक विकास तो होगा ही साथ ही वजन बढ़ने की समस्या पर भी लगाम लगेगी। डिजिटल क्रांति के दौर में बच्चों ने मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रानिक गैजेट्स से दोस्ती कर ली है। इसलिए अधिकतर बच्चे बाहर खेलने की बजाय घरपर बैठक मोबाइल, टीवी या अन्य चीजों पर समय अधिक बिता रहे हैं। यह समस्या कोरोना के बाद ज्यादा देखी गई।
यूनिसेफ की वर्ल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में अब हर दसवां बच्चा मोटापे से जूझ रहा है। यह आकड़ा लगभग 18.8 करोड़ बच्चों का है। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब मोटापे से पीड़ित बच्चों की संख्या कम वजन वाले बच्चों से ज्यादा हो गई है। 2000 से अब तक पांच से 19 वर्ष की आयु के कम वजन वाले बच्चों की संख्या 13% से घटकर 9.2% रह गई, लेकिन मोटापे से जूझ रहे बच्चों का अनुपात तीन गुना बढ़कर 9.4% हो गया।
बच्चों की डाइट पर विज्ञापनों का दबाव
रिपोर्ट के अनुसार बच्चों की डाइट पर अब बाजार की ताकतें हावी हैं। चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा से भरे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड व कोल्ड ड्रिंक उनके खानपान पर कब्जा कर चुके हैं। यूनीसेफ द्वारा किए गए 170 देशों के सर्वे में 75% युवाओं ने बताया कि उन्होंने पिछले हफ्ते जंक फूड व सॉफ्ट ड्रिंक के विज्ञापन देखे। 60% बुवाओं ने स्वीकार किया कि इन विज्ञापनों से उनकी खाने की इच्छा और बढ़ गई। यही नहीं, संघर्ष या युद्ध-प्रभावित देशों के 68% युवाओं तक भी जंक फूड के विज्ञापन पहुंच रहे हैं।
करने की आवश्यकता है।
विज्ञापनों से बढ़ी ज्यादा खाने की आदत
यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि टीवी, सोशल मीडिया पर विज्ञापनों की भरमार इस समस्या के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। अध्ययन में सामने आया है कि बच्चों में विज्ञापन देखकर ज्यादा खाने की इच्छा जागृत होती है। यह सर्वे 170 देशों में किया गया। सर्वे में शामिल 75 प्रतिशत युवाओं का कहना है कि विज्ञापन देखने से उनकी खाने की इच्छा तीव्र होती है। खास बात यह है कि युद्धग्रस्त देशों में भी ऐसे विज्ञापनों की भरमार है।
39.1 करोड़ बच्चे ओबिसिटी के शिकार
दुनिया में 39.1 करोड़ बच्चे बढ़ते वजन की समस्या से जूझ रहे हैं। इसमें आधे बच्चे मोटापे की श्रेणी में आते हैं। प्रशांत द्वीप समूह में स्थिति सबसे गंभीर है। नियू में 38, कुक आइलैंड्स 37 और नाउरू 33% बच्चे मोटापे से के शिकार हैं। अमेरिका और यूएई जैसे अमीर देशों में भी 21% बच्चे मोटापे से पीड़ित हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक मोटापा बच्चों को सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी प्रभावित करता है।
भारत ने ट्रांस फैट की मात्रा घटाई
भारत ने खाद्य पदार्थों में ट्रांस-फैट की मात्रा को घटाकर अधिकतम 2% तक सीमित कर दिया है। यह नियम खाने के तेल, वसा और उनसे बने उत्पादों पर लागू है। भारत ऐसा कदम उठाने वाला पहला मध्यम आय वाला देश बना है। भारत में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी चेताया कि पैकेज्ड व फास्ट फूड में नमक और वसा मात्रा, एफएसएसएआई की सीमा से कहीं ज्यादा है।
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