- पार्थसारथि थपलियाल
भारतीय उपमहाद्वीप विश्व राजनीति में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इस उपमहाद्वीप के प्रमुख देश भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव हैं। भारत सबके मध्य में स्थित है। इन देशों के अतिरिक्त चीन, अफगानिस्तान और म्यांमार भी इस भूभाग की राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों को गहराई से प्रभावित करते हैं। भारत इस क्षेत्र का सबसे बड़ा देश है, जिसका वर्तमान क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। आकार के आधार पर यह विश्व का छठा सबसे बड़ा देश और जनसंख्या के आधार पर प्रथम स्थान पर है। यहां की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या सनातन धर्मावलंबी है। हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख सभी सनातन परंपरा के अंग हैं। बाहरी आक्रांताओं के आगमन के बाद यहां इस्लाम, क्रिश्चियन, यहूदी और पारसी जैसे धर्मों का प्रसार हुआ। एक समय था जब भारतीय उपमहाद्वीप को ‘सभ्यता का पालना’ कहा जाता था। यहां के लोग पारस्परिक संवाद और सांस्कृतिक आदान- प्रदान में गहराई से जुड़े रहते थे। सांस्कृतिक विविधता के बावजूद इस भूभाग की मूल पहचान सनातन परंपरा से ही बनी रही। किंतु समय-समय पर आए बाह्य आक्रांताओं और उनकी संस्कृति ने अनेक सामाजिक और राजनीतिक विषमताएं उत्पन्न कीं। इन्हीं विषमताओं ने इस क्षेत्र को विभाजन और संघर्ष की ओर धकेला।
अगस्त 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, उसी समय मोहम्मद अली जिन्ना को संतुष्ट करने के लिए भारत का विभाजन धर्म के आधार पर किया गया। परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान अस्तित्व में आए। यह विभाजन आगे चलकर उपमहाद्वीप की स्थिरता के लिए गंभीर संकट साबित हुआ। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बना। अंग्रेजी शासनकाल में बर्मा (वर्तमान म्यांमार) और श्रीलंका भी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थे। चीन, जिस पर कभी आंशिक रूप से अंग्रेजों और आंशिक रूप से जापान का प्रभाव था, 1 अक्टूबर 1949 को पूर्ण स्वतंत्र हुआ और उसने समाजवादी शासन प्रणाली अपनाई, जो मूलतः कम्युनिस्ट शैली पर आधारित थी।
श्रीलंका का कर्ज का जाल और भारतीय सहयोग
श्रीलंका, जिसकी जनसंख्या लगभग दो करोड़ सत्रह लाख है, कभी एशिया का उभरता सितारा माना जाता था। किंतु राजपक्षे परिवार की सत्ता-लालसा और भ्रष्टाचार ने इसे कंगाल बना दिया। विदेशी कर्ज़ से बंदरगाह और हवाई अड्डे बने, पर उनका उपयोग न्यूनतम रहा। इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) के अनुसार, 2022 में श्रीलंका पर विदेशी कर्ज़ 83 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। जब ईंधन और खाद्य संकट चरम पर पहुंचा तो जनता ने राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा कर लिया। भारत ने इस संकट की घड़ी में 4 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दी, जबकि चीन, जिसने कर्ज़ का जाल बिछाया था, संकट में किनारा करता दिखा।
बांग्लादेश में अस्थिरता और बाहरी हस्तक्षेप
बांग्लादेश तीन ओर से भारत से घिरा हुआ इस्लामी देश है। यहां चीन ने अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत भारी निवेश किया है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट (2023) के अनुसार, बांग्लादेश पर विदेशी कर्ज़ का बोझ 95 अरब डॉलर से अधिक है। अमेरिका लंबे समय से बांग्लादेश से एक द्वीप की मांग करता रहा, किंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसे ठुकरा दिया। इसके बाद पाकिस्तान की आईएसआई और कट्टरपंथी संगठनों ने वहां हिंसक आंदोलन छेड़ दिया। अगस्त 2024 में चरमपंथियों ने हिंदुओं पर अमानवीय अत्याचार किए, उनके घर जलाए, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया और मंदिरों को नुकसान पहुंचाया। परिणामस्वरूप शेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी। 6 अगस्त 2024 को संसद भंग कर मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश का प्रमुख बना दिया गया। अगस्त 2025 में यहां मुद्रास्फीति 8.29 प्रतिशत तक पहुंच गई और बेरोज़गारी बढ़ी रही। यूनुस, जो अमेरिकी डीप स्टेट से जुड़े माने जाते हैं, भारत को हिंदुओं के पलायन के बहाने कठघरे में खड़ा करना चाहते थे, किंतु इसमें सफल नहीं हो पाए। इस पूरे परिदृश्य में चीन मूकदर्शक बना रहा। भारत ने रेलवे, बिजली और व्यापारिक सहयोग देकर बांग्लादेश को स्थिर करने की कोशिश की, किंतु राजनीतिक अस्थिरता अब भी जारी है।
नेपाल…एक असफल गणराज्य
नेपाल 2008 तक हिंदू राजशाही के अधीन था। 28 मई 2008 को वहां गणराज्य की स्थापना हुई, किंतु यह व्यवस्था सफल नहीं हो पाई। पिछले 17 वर्षों में नेपाल में 14 प्रधानमंत्रियों का बदलना इसकी अस्थिरता का प्रमाण है। हिमालयन टाइम्स (सितंबर 2025) के अनुसार, नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रति वर्ष औसतन 4 प्रतिशत जीडीपी का नुकसान होता है। 12 सितंबर 2025 को सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बनीं, उससे पहले वहां हिंसक आंदोलन और आगजनी हुई थी। सरकारी कार्यालयों को नुकसान पहुंचाया गया और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई। भ्रष्टाचार और नेतृत्वहीनता ने जनता को त्रस्त कर दिया है। बेरोज़गारी इतनी अधिक है कि लाखों युवा सड़कों पर उतरकर राजनेताओं से त्यागपत्र की मांग करने लगे। भारत ने ‘प्रतीक्षा करो, देखते जाओ’ की नीति अपनाई और हर संभव सहयोग प्रदान किया, किंतु नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता अब भी एक बड़ी चुनौती है।
मालदीव..राजनीतिक संकट और भारत की भूमिका
मात्र पांच लाख बीस हजार की आबादी और 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले मालदीव ने भी चीन का दामन थामा। चीन समर्थित राष्ट्रपति मुइज्जू ने 2023 में भारतीय सेना को देश से बाहर निकालने का आदेश दिया और ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाया गया। जब पर्यटन घटा, तो विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो गया। एशियन डेवलपमेंट बैंक (2024) के अनुसार, मालदीव की अर्थव्यवस्था का 28 प्रतिशत हिस्सा पर्यटन पर निर्भर है। अंततः मालदीव को भारत की ओर सहयोग के लिए देखना पड़ा। भारत ने सुरक्षा और आपदा प्रबंधन में मदद देकर साबित किया कि पड़ोसी बदल नहीं सकते, पर रिश्ते सुधारे जा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी जुलाई 2025 में मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ समारोह में मुख्य अतिथि रहे, जिसने भारत की भूमिका को और मज़बूत किया।
पाकिस्तान… आतंकवाद का एक्सपोटर और असफल राज्य
पाकिस्तान, अपनी स्थापना से ही भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहा। मुंबई बम ब्लास्ट (1993), संसद पर हमला, (2001), मुंबई सीरियल धमाके और आतंकी हमला, (2008), पठानकोट (2016), उरी (2016) और पुलवामा (2019) जैसे हमले भारत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के उदाहरण हैं। ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2024 के अनुसार, पाकिस्तान दुनिया के शीर्ष 10 आतंक प्रभावित देशों में से एक है। भारत ने 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर पाकिस्तान के नाकाम मंसूबों की नींव हिला दी। उसके बाद से दोनों देशों के बीच संबंध ठप हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है, विदेशी कर्ज़ 45 अरब डॉलर से अधिक है और महंगाई 40 प्रतिशत तक पहुंच गई है। बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन चल रहा है और अफगान तालिबान पाकिस्तान में सक्रिय हैं। भारत का रुख स्पष्ट है- ‘आतंक और वार्ता साथ-साथ संभव नहीं।‘ नोटबंदी ने पाकिस्तान की फर्जी करेंसी पर गहरी चोट की। 2025 में हुए पहलगाम हमले के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से अपने सैन्य शौर्य का परिचय दिया, जिसे दुनिया ने देखा। पाकिस्तान आज भी सेना के नियंत्रण में एक असफल राज्य बना हुआ है।
भारतीय उपमहाद्वीप के पड़ोसी देशों में भ्रष्ट सरकारों ने उनकी जनता को संकट में धकेल दिया, जबकि भारत ने आत्मनिर्भरता और सुशासन के बल पर विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए। आईएमएफ वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (2025) के अनुसार, भारत की जीडीपी 4.6 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी है। भारत जी-20, ब्रिक्स, क्वाड, एससीओ और आसियान का सक्रिय सदस्य है। चीन और अमेरिका, दोनों ही भारत की स्थिरता से असहज हैं। चीन कर्ज़ बांटकर और विकास योजनाएं दिखाकर पड़ोसी देशों में घुसपैठ करता है, जबकि अमेरिका दबाव और प्रतिबंध की नीति अपनाता है। इसके बावजूद भारत ने संतुलित कूटनीति और आत्मनिर्भरता से अपनी पहचान मजबूत की है। भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और अत्याधुनिक सैन्य शक्ति है। ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2025 में भारत विश्व की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना के रूप में दर्ज है। विदेशी मुद्रा भंडार सुरक्षित हैं और महंगाई नियंत्रित स्तर पर है। हाल ही में नवरात्रि के आरंभ में जीएसटी दरों में कटौती इसका संकेत है कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और जनता को राहत पहुँचाने में सक्षम है। दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका दो स्तरों पर है- एक ओर चीन की आक्रामक नीति और बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव की चुनौती, तो दूसरी ओर पाकिस्तान की अस्थिरता और आतंकवाद का संकट। इन परिस्थितियों में भारत सुरक्षा और स्थिरता का प्रतीक है। श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और बांग्लादेश में भारत ने अवसंरचना, व्यापार और आपदा प्रबंधन के माध्यम से “नेबरहुड फर्स्ट” नीति को सशक्त किया है।
महाशक्ति के रूप में उभरता भारत
भारत आज नई विश्व-व्यवस्था के केंद्र में खड़ा है। एशिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और चौथी सबसे शक्तिशाली सैन्य शक्ति के रूप में भारत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि 21वीं सदी का नेतृत्व वह कर सकता है। 4.6 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी और स्थिर लोकतंत्र भारत को वैश्विक निवेश का प्रमुख आकर्षण बना चुके हैं। अंतरिक्ष से लेकर परमाणु शक्ति तक, भारत ने आत्मनिर्भरता की ऐसी मिसाल रखी है जिस पर दुनिया की निगाहें टिक गई हैं। चंद्रयान-3 और आदित्य-एल1 ने भारत को वैज्ञानिक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया, वहीं रक्षा उत्पादन में “मेक इन इंडिया” अभियान ने उसे आत्मनिर्भर बना दिया।
कूटनीति में भी भारत संतुलन साधे हुए है। रूस और अमेरिका, चीन और पश्चिम- इन ध्रुवों के बीच भारत ने अपनी स्वतंत्र नीति बनाए रखी है। यही कारण है कि जी-20 और ब्रिक्स से लेकर क्वाड और एससीओ तक, हर वैश्विक मंच पर भारत की उपस्थिति निर्णायक बन चुकी है। सिर्फ अर्थशक्ति या सैन्य क्षमता ही नहीं, योग, आयुर्वेद और लोकतांत्रिक मूल्य भी भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत कर रहे हैं। यही कारण है कि भारत को आज विश्वगुरु और महाशक्ति दोनों रूपों में देखा जा रहा है। यह उभार मात्र आकांक्षा नहीं, बल्कि वास्तविकता है।
भारत लोकतांत्रिक मूल्यों, पारदर्शिता और सुशासन का उदाहरण प्रस्तुत करता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की अस्थिरता की तुलना में भारत की राजनीतिक स्थिरता उसे क्षेत्रीय नेतृत्व प्रदान करती है। ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और रक्षा में आत्मनिर्भरता ने भारत को उपमहाद्वीप का केंद्रबिंदु बना दिया है। आज भारत केवल उपमहाद्वीप ही नहीं, बल्कि विश्व में भी एक “उत्तरदायी शक्ति” के रूप में देखा जा रहा है। ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन ने लिखा है कि “भारत उपमहाद्वीप में स्थिरता का लंगर है।” निःसंदेह, आत्मनिर्भर और सशक्त भारत उपमहाद्वीप को शांति, विकास और संतुलन की दिशा में आगे बढ़ा रहा है।