Close Menu
तीरंदाज़तीरंदाज़
    https://www.teerandaj.com/wp-content/uploads/2025/08/Vertical_V1_MDDA-Housing.mp4
    अतुल्य उत्तराखंड


    सभी पत्रिका पढ़ें »

    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube Pinterest Dribbble Tumblr LinkedIn WhatsApp Reddit Telegram Snapchat RSS
    अराउंड उत्तराखंड
    • Uttarakhand : ग्रेजुएट लेवल भर्ती पेपर लीक मामले में एकल सदस्यीय आयोग ने सौंपी रिपोर्ट
    • बेजोड़ इकोनॉमी की राह पर Uttarakhand
    • किसान मेला : भारत की सभ्यता और संस्कृति कृषि के चारों ओर ही हुई विकसित : राज्यपाल
    • Uttarakhand : नगर निकायों की 18 सेवाएं होंगी डिजिटल, जानिए क्या होगा फायदा
    • Urban Drainage System के लिए सीएम धामी ने केंद्रीय वित्त मंत्री से मांगी सहायता
    • NCRB Report-2023 : एक और अनचाहा तमगा, अवैध असलहा रखने के मामले में हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड नंबर वन
    • NCRB REPORT-2023 : जो नहीं मिले, वो कहां गए ?
    • Uttarakhand : आदर्श रेलवे स्टेशन के रूप में विकसित किया जाए देहरादून-हरिद्वार स्टेशन
    • Uttarakhand : वन्य जीव हमले में जनहानि पर सहायता राशि बढ़ाकर 10 लाख रुपये की जाएगी
    • केमिस्ट को न बनाएं डॉक्टर, खुद से कफ सिरप लेने से पहले दस बार सोचें
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube WhatsApp Telegram LinkedIn
    Sunday, October 12
    तीरंदाज़तीरंदाज़
    • होम
    • स्पेशल
    • PURE पॉलिटिक्स
    • बातों-बातों में
    • दुनिया भर की
    • ओपिनियन
    • तीरंदाज LIVE
    तीरंदाज़तीरंदाज़
    Home»उत्तराखंड 360»Uttarakhand & Himachal… आह सेब, वाह सेब!
    उत्तराखंड 360

    Uttarakhand & Himachal… आह सेब, वाह सेब!

    भारत में कई राज्य ऐसे हैं जिनकी संस्कृति में समानता है। जब किसी ऐसे सांस्कृतिक मेल-जोल वाले राज्यों का ज़िक्र आता है, तो 'देवभूमि' कहे जाने वाले दो राज्यों हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है। इन दो राज्यों में काफी समानताएं हैं, चाहे वह संस्कृति हो, परंपराएं हों, खान-पान हो, फसलें हों या फिर प्राकृतिक परिदृश्य। हिमालय की गोद में बसे ये पर्वतीय राज्य मानो एक ही मां के दो बच्चे हों। इनकी तुलना का एक खास आधार है बागवानी और इसमें भी सबसे अधिक चर्चित फसल है सेब।
    teerandajBy teerandajNovember 17, 2024Updated:November 17, 2024No Comments
    Share now Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn
    Share now
    Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn
    • अतुल्य उत्तराखंड ब्यूरो के लिए प्रिया शांडिल्य

    सेब की फसल ने हिमाचल और Uttarakhand  दोनों ही राज्यों के हजारों लोगों को रोजगार दिया है। सेब आज भारत के राजस्व में महत्वपूर्ण योगदान करता है। इस परिप्रेक्ष्य में सवाल उठते हैं, क्या सेब उत्पादन में उत्तराखंड, हिमाचल के समकक्ष है? कहां बेहतर गुणवत्ता के सेब मिलते हैं? कितने क्षेत्र में सेब की खेती होती है? दोनों राज्यों की बागवानी में कौन सी मुख्य भिन्नताएं हैं? सरकारी सहायता और सुविधाओं का प्रभाव कितना है और किन सुधारों की आवश्यकता है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में न केवल इन राज्यों के आर्थिक भविष्य की झलक है, बल्कि भारत के सेब उत्पादन में नए अवसरों की राह भी है।

    पूरे उत्तराखंड में जलवायु की स्थिति में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। यहां हर साल 1000 मिमी से 2500 मिमी बारिश होती है। विभिन्न जिलों में रेतीली से लेकर बालुई दोमट मिट्टी पाई जाती है। जमीन की ऊंचाई भी समुद्रतल से 400 से लेकर 2400 मीटर से अधिक तक है, जिसमें निचले, मध्य और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं। जलवायु भिन्नता के कारण, फसल पद्धतियां एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती हैं। सेब की खेती के लिए 1,500 मीटर से 2500 मीटर के बीच की ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाके उपयुक्त होते हैं। इनमें पिथौरागढ, अल्मोड़ा, चमोली और बागेश्वर के कुछ हिस्से शामिल हैं। पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के कुछ हिस्से 3000 से 7,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इनकी निचली घाटियों में सेब का उत्पादन पूरे राज्य में सबसे ज्यादा होता है। आज उत्तराखंड के मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। बेमौसम बरसात, ओले, कम बर्फबारी और बहुत ज्यादा गर्मी, इनके चलते ऊंचाई वाले इलाकों में भी फसलों के उत्पादन पर बुरा असर देखने को मिल रहा है। सेब की खेती के लिए समय पर और भारी बर्फबारी बहुत जरूरी है। कम या अत्यधिक बारिश से भी सेब की गुणवत्ता, इसके आकार में अंतर देखने को मिलता है।

    यह भी पढ़ें : ठगी का हाईटेक जाल… यहां समझिए A TO Z और बचने के उपाय

    सेब के उत्पादन में रिकॉर्ड गिरावट

    साल 2024 में उत्तराखंड में 27.723 हजार टन सेब की पैदावार हुई। यह पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम है। बीते वर्ष उत्तराखंड में कुल 43.329 हजार टन सेब की खेती हुई थी। डाटा देखें तो मार्च 2012 से 2024 तक के बीच 13 साल में सेब की खेती में 77.5 प्रतिशत की कमी आई है। साल 2013 में सबसे ज्यादा 123.228 हजार टन की पैदावार हुई थी। वहीं साल 2024 में अब तक की सबसे कम पैदावार रिकॉर्ड की गई है। आंकड़े साफ बताते हैं कि उत्तराखंड में सेब की पैदावार बहुत गिर गई है। वहीं साल 2024 में अब तक हिमाचल प्रदेश ने 580.296 हजार टन सेब की खेती की है।

    उत्तराखंड में सेब की पैदावार वाले इलाके

    रामगढ़, मुक्तेश्वर (नैनीताल), चौबटिया, लोहाघाट, बिनसर, जालना (अल्मोड़ा), कनाताल (टिहरी) और हर्षिल (उत्तरकाशी)

    सेब नीति के प्रस्ताव में शामिल वादे

    6 अगस्त, 2023 को कृषि एवं बागवानी मंत्रालय की ओर से उत्तराखंड में सेब उत्पादन एवं विपणन को बढ़ावा देने के लिए पहली सेब नीति के प्रस्ताव की जानकारी दी थी। इसके तहत सरकार ने किसानों को पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सेब के नए बगीचे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया और 0.2 से 20 हेक्टेयर भूमि पर सेब के बगीचे तैयार करने का वादा किया था। जिसपर काफी हद तक सरकार ने काम भी किया, लेकिन फिर भी उत्तराखंड में सेब की बागवानी में इजाफा होने के बदले नुकसान हुआ। उत्तराखंड में कम उत्पादन और राज्य में सेब की उत्पादकता के लिए बदलते जलवायु के अलावा विभिन्न कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे कि क्षेत्रफल, पुराने और बूढ़े बगीचे, सेब के अंतर्गत अपेक्षाकृत नया रोपित क्षेत्र, जो फल लगने की अवस्था नहीं है, रोपण सामग्री की गुणवत्ता, खराब फसल प्रबंधन प्रथाएं, फसल कटाई के बाद की बर्बादी, संसाधनों का असंतुलन उपयोग आदि।

    उत्तराखंड में सेब की खेती

    उत्तराखंड में सेब की बागवानी के लिए कुल क्षेत्रफल 25,785 हेक्टेयर है, जिसमें सालाना लगभग 62,000 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। वहीं पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती का कुल क्षेत्रफल 2022 में 1,15,016 हेक्टेयर था, जो 2023 में बढ़कर 1,15,680 हेक्टेयर हो गया था। बड़े क्षेत्रफल भी अधिक सेब की पैदावार में सहायक है। सेब उत्तराखंड में उत्पादित प्रमुख बागवानी फसलों में से एक है। डाटा के हिसाब से यह राज्य में फल फसल उत्पादन के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल का 17% तथा कुल फल उत्पादन का 13% भाग है। 2014-15 में कुल क्षेत्रफल एवं उत्पादन उत्तराखंड में सेब क्रमशः 34,000 हेक्टेयर और लगभग 92,300 मीट्रिक टन अनुमानित था। उत्तराखंड सरकार के बागवानी विभाग के अनुसार, सेब उत्पादन का क्षेत्र 2016-17 में 25,201.58 हेक्टेयर से घटकर 2022-23 में 11,327.33 हेक्टेयर हो गया, जिससे उपज में 30% की गिरावट आई।

    कहां के सेब की क्वालिटी बेहतर?

    उत्तराखंड और हिमाचल में से किस राज्य का सेब गुणवत्ता के मापदंड में आगे है, ये कहा नहीं जा सकता। लेकिन, दोनों ही राज्य कुछ खास किस्म के सेब के उत्पादन में एक-दूसरे से आगे रहते हैं। हर्षिल (उत्तरकाशी) में पैदा होने वाले सेब की काफी मांग है। यह फ्रेडरिक विल्सन ही थे जिन्होंने हर्षिल के लोगों को सेब की खेती से परिचित कराया और अब यहां के सेबों का नाम उन्हीं के नाम पर ‘विल्सन सेब’ रखा गया। ‘टॉप रेड’ और ‘स्टार किंग’ का नाम हाइब्रिड वैरायटी में से है, जो 6500 फीट की ऊंचाई पर उगाई जाती है। अन्य हाइब्रिड वेरायटी में ‘स्कार्लेट गाला’, ‘वेले स्पर’, ‘रेड फ़ूजी’, ‘ऑर्गन स्पर’ और ‘रेड चीफ’ आते हैं जिन्हें 5,500-6,000 फीट की ऊंचाई पर उगाया जाता है। उत्तराखंड के बदलते जलवायु को देखते हुए उत्तराखंड और हॉलैंड के वैज्ञानिक मिलकर एप्पल की नई ब्रीड पर काम कर रहे हैं। यह एप्पल ब्रीड पारंपरिक किस्म की तुलना में जल्दी फल देती है।

    राज्य में ‘रॉयल डिलीशियस’, ‘रेड डिलीशियस’ और ‘काला जीरा’ सेब की प्रजाति काफी डिमांड में रहती है। उत्तराखंड विशेष रूप से ‘रेड फ़ूजी’ और ‘सन डिलीशियस’ जैसी स्वादिष्ट किस्मों के लिए जाना जाता है। इसके अलावा उत्तराखंड में ‘चौबटिया अनुपम’, ‘टॉप रेड’, ‘स्टार किंग’, ‘स्कारलेट गाला’, ‘वेल स्पर’, ‘ऑर्गन स्पर’, ‘रेड चीफ’ की बागवानी भी करता है।

    क्या है ‘उन्नति एप्पल प्रोजेक्ट’

    ‘उन्नति एप्पल प्रोजेक्ट’ सामूहिक प्रयास के जरिए कृषि परिवर्तन को बढ़ावा देने में काफी कारगर है। कोका-कोला इंडिया और इंडो-डच हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (आईडीएचटी) उत्तराखंड के चंपावत में इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस योजना को चंपावत में उच्च घनत्व वृक्षारोपण तकनीक से लगाये गये 100 सेब के बगीचों से 20 माह में सेब की खेती के लिए अच्छा संकेत बताया था। इस परियोजना में किसानों को उन्नत रोपण सामग्री, अच्छी कृषि पद्धतियों (जीएपी) में प्रशिक्षण और आधुनिक बुनियादी ढांचे तक पहुंच प्रदान किए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप सेब उत्पादन और किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

    सेब की बागवानी में हिमाचल में क्या अलग?

    चार विशेषज्ञों से समझिये –

    नकुल खुल्लर

    नकुल खुल्लर हिमाचल में सबसे ज्यादा सेब की पैदावार करने वाले बागवानों में से एक हैं। वह पूरे राज्य में अपने खेतों में होने वाली ‘रॉयल एप्पल’ की वेराइटी के लिए मशहूर हैं। उनका परिवार 1928 से कुल्लू क्षेत्र में सेब की पैदावार से जुड़ा है। नकुल कहते हैं, हम सेब के पौधे और पेड़ की बच्चों की तरह देखभाल करते हैं। पेड़ों से सेब तोड़ने के बाद इनके स्टोरेज क्वालिटी पर काफी ध्यान देते हैं। अगर उत्तराखंड की बात करें तो वहां हमारे किसान भाइयों को सेब की पैदावार में कुछ बदलाव करने की जरूरत है। बदलते मौसम के साथ हिमाचल में यहां की मिट्टी और तापमान के हिसाब से सेब की किस्मों में बदलाव किए गए हैं। अगर वहां भी ऐसे ही हालत हैं, तो नई किस्म और उसे उगाने की सही प्रक्रियाओं का अनुसरण करना होगा।

    हिमाचल में हॉर्टीकल्चर विभाग के डिप्टी डायरेक्टर और फ्रूट टेक्नोलॉजिस्ट बारुमल चौहान कहते हैं, एचपीडीसी प्रोजेक्ट के तहत हम किसानों को सब्सिडी पर सेब की पौधे देते हैं। जिसमें कई किस्में नई हैं। वर्कशॉप, ट्रेनिंग सब कुछ क्लस्टर लेवल पर आयोजित किया जाता है। खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए हमने ‘सोर्स टू टैंक’ पर अमल किया है। सेब के पौधों में छोटे किसानों को 80 प्रतिशत सब्सिडी, बड़े किसानों को 45 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। कीड़े-मकौड़ों की स्प्रे 50 प्रतिशत सब्सिडी में और एंटी-हेल नेट 80 प्रतिशत सब्सिडी में दिया जाता है। सरकार सेब की खेती करने वाले किसानों से उचित कीमत पर कच्चा माल यानी सेब खरीदती है और उन्हें जैम, जूस आदि प्रोसेसिंग यूनिट्स में भेजती है। इससे ऐसे बागवान जो मंडी तक नहीं जा पाते, या जिनके सेब खराब हो गए, जिनकी कम पैदावार हुई, क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं हो पाई, या अन्य कंपनी सेब की कम कीमत दे रही होती है, उन किसानों को सरकार सही कीमत पर सेब खरीदकर मदद पहुंचाती है।

    विक्रम सिंह रावत

    विक्रम सिंह रावत आज हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े सेब उत्पादकों में से एक हैं। 2003 से मंडी जिले के करसोग स्थित कलासन फॉर्म में सेब की बागवानी कर रहे विक्रम मूल रूप से उत्तराखंड से है। वह उत्तराखंड के लोगों को सेब की खेती करने के लिए प्रेरित करते आए हैं। विक्रम खुद सेब की बागवानी में सक्रिय हैं। दोनों राज्यों में लंबे समय तक काम करने के बाद उन्होंने उत्तराखंड में सेब की खेती में रुकावटों का मुख्य कारण वहां के लोगों की मानसिकता को बताया है। उनका मानना है कि उत्तराखंड में कई लोगों को सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाली सहायता के चलते बिना मेहनत के आय अर्जित करने की आदत पड़ गई है। सब्सिडी पर मिलने वाले सेब के पौधों की गुणवत्ता भी ठीक नहीं होती। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती मानसिकता की है- अधिकतर लोग बिना मेहनत के शहरों में कमाई का रास्ता अपनाना पसंद करते हैं, जो राज्य में बड़े पैमाने पर पलायन का कारण भी है। सेब की खेती में धैर्य और समर्पण की आवश्यकता होती है, जैसे एक बच्चे की देखभाल करनी पड़ती है। उत्तराखंड में कई लोग इस मेहनत से बचना चाहते हैं, जिससे यह राज्य अब भी सेब जैसी कैश क्रॉप के उत्पादन में पीछे है। विक्रम का मानना है कि अगर लोग थोड़ी मेहनत और धैर्य से काम लें, तो उत्तराखंड का भौगोलिक और मौसमी वातावरण सेब की अच्छी पैदावार के लिए काफी उपयुक्त है।

    वीरबान सिंह रावत भी हिमाचल में सेब की पैदावार करते हैं। इसके अलावा उन्होंने वहां एक प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई है। वह भी मूल रूप से उत्तराखंड के हैं। वह कहते हैं कि अगर देखा जाए तो उत्तराखंड के पास हिमाचल के मुकाबले 15 दिन का एडवांस सीजन टाइम है। यानी उत्तराखंड में सेब हिमाचल की तुलना में 15 दिन पहले तैयार हो जाता है। उत्तराखंड से सेब को दिल्ली या दूसरे राज्यों तक पहुंचाना हिमाचल की तुलना में ज्यादा आसान है। उत्तराखंड के किसी भी हिस्से से एक दिन में सेब बाजार में पहुंचाया जा सकता है। बावजूद इसके उत्तराखंड में सेब को लेकर उदासीन रवैया काफी मायूस करता है।

    उत्तराखंड का ‘एप्पल मिशन’

    एप्पल मिशन के अंतर्गत सेब के बगीचे लगाने वाले किसानों को 80% तक सब्सिडी प्रदान की जा रही है। नई सेब नीति के तहत अगले आठ वर्षों में 5000 हेक्टेयर भूमि पर अति सघन बागवानी का लक्ष्य है। इस नीति का उद्देश्य राज्य में सेब का वार्षिक कारोबार 200 करोड़ से बढ़ाकर 2000 करोड़ तक पहुंचाना है। गुणवत्ता और पैकेजिंग पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि उत्तराखंड के सेब को जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के साथ विशेष पहचान मिल सके। किसानों को बिना ब्याज के 3 लाख रुपये तक और महिला स्वयं सहायता समूहों को 5 लाख रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती को प्रोत्साहित करने का भी प्रयास जारी है। इसके अलावा, फार्म मशीनरी बैंक योजना के तहत किसानों को कृषि उपकरण 80% सब्सिडी पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे सेब की खेती अधिक व्यावहारिक और लाभकारी बन सके।

    मौसम विभाग के चलते होती है फसल खराब?

    पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम विभाग का नेटवर्क काफी सीमित है। परिणामस्वरूप, किसान विभाग के डाटा पर पूरी तरह से निर्भर नहीं हो पाते हैं और राजस्व अधिकारियों की रिपोर्ट जमीनी हकीकत को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती। किसान अक्सर इस बात से अनजान होते हैं कि मौसम संबंधी डाटा कैसे एकत्र किया जाता है और वे इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाते हैं। कई दफा जब मौसम की मार के कारण किसानों का सेब उत्पादन कम होता है तो वे आपदा कोष से आस जताते हैं। पर लोगों को फसल बीमा कवरेज की जानकारी न होने और उनके पास ये कवरेज नहीं पाए जाने की स्थिति में कोई सहायता नहीं मिल पाती है। सरकार अक्सर अधूरे मानकों का हवाला देकर सहायता से इनकार कर देती है।

    पैदावार बढ़ाने की सरकारी कोशिशें

    उत्तराखंड सरकार सेब उत्पादन में बढ़ावा लाने के लिए ‘एप्पल मिशन’ पर काम कर रही है, जिसका उद्देश्य सेब उत्पादन को वर्तमान स्तर से लगभग 10 गुना तक बढ़ाना और किसानों की आय में वृद्धि करना है। राज्य की मूल्य श्रृंखला में 12 परियोजनाओं के माध्यम से यह मिशन 10-15 बार मूल्य श्रृंखला की चुनौतियों का समाधान करेगा। इन परियोजनाओं का लक्ष्य एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है जो न केवल सेब उत्पादकों को अधिक लाभ दे सके बल्कि उत्तराखंड को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘एप्पल ब्रांड’ के रूप में स्थापित कर सके।

    भले ही हिमाचल और उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना, तापमान, मिट्टी की गुणवत्ता और मौसम में गहरी समानताएं हैं, फिर भी सेब जैसी कैश क्रॉप में हिमाचल, उत्तराखंड से कहीं आगे है। यह एक सवाल है कि आखिर क्यों उत्तराखंड अब भी ‘किन्नौर एप्पल’ के नाम से सेब बेचने के लिए मजबूर है, जबकि परिस्थितियां अनुकूल होने के बावजूद स्थानीय स्तर पर पहचान कायम नहीं कर पाया है। हिमाचल के किसान सेब को आर्थिक रूप से फायदेमंद मानते हुए पूरी मेहनत और लगन से इसे उगाते हैं। उन्होंने अपनी किस्मत सेब के खेतों में लगाई और वर्षों की कड़ी मेहनत ने आज हिमाचल को ‘एप्पल बेल्ट’ का दर्जा दिला दिया है। इसके विपरीत, उत्तराखंड में पलायन, सरकारी तंत्र की निष्क्रियता, किसान समुदाय में धैर्य की कमी और फसलों को लेकर प्रयोगों में झिझक से सेब उद्योग उतना नहीं बढ़ पाया जितनी संभावनाएं थीं।

    उत्तराखंड 360 उत्तराखंड में बागबानी उत्तराखंड में सेब उत्पादन
    Follow on Facebook Follow on X (Twitter) Follow on Pinterest Follow on YouTube Follow on WhatsApp Follow on Telegram Follow on LinkedIn
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Pinterest Telegram LinkedIn
    teerandaj
    • Website

    Related Posts

    Uttarakhand : ग्रेजुएट लेवल भर्ती पेपर लीक मामले में एकल सदस्यीय आयोग ने सौंपी रिपोर्ट

    October 11, 2025 उत्तराखंड 360 By teerandaj2 Mins Read2
    Read More

    बेजोड़ इकोनॉमी की राह पर Uttarakhand

    October 11, 2025 उत्तराखंड 360 By teerandaj5 Mins Read2
    Read More

    किसान मेला : भारत की सभ्यता और संस्कृति कृषि के चारों ओर ही हुई विकसित : राज्यपाल

    October 11, 2025 उत्तराखंड 360 By teerandaj6 Mins Read3
    Read More
    Leave A Reply Cancel Reply

    https://www.teerandaj.com/wp-content/uploads/2025/08/Vertical_V1_MDDA-Housing.mp4
    अतुल्य उत्तराखंड


    सभी पत्रिका पढ़ें »

    Top Posts

    Uttarakhand : आपदा में भी मुस्कुराई जिंदगी, पहाड़ों को लांघकर पहुंची मेडिकल टीम, घर में कराई डिलीवरी

    August 31, 202531K

    CM Dhami ने दून अस्पताल में निरीक्षण कर मरीजों से लिया फीडबैक, वेटिंग गैलरियों में पंखे लगाने, सुविधाएं बढ़ाने के निर्देश

    September 13, 202531K

    ऋषिकेश में अवैध निर्माणों पर MDDA की ताबड़तोड़ कार्रवाई, 11 बहुमंजिला स्ट्रक्चर सील 

    August 30, 202531K

    Chardham Yatra-2025: चलो बुलावा आया है, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की यात्रा बहाल

    September 6, 202524K
    हमारे बारे में

    पहाड़ों से पहाड़ों की बात। मीडिया के परिवर्तनकारी दौर में जमीनी हकीकत को उसके वास्तविक स्वरूप में सामने रखना एक चुनौती है। लेकिन तीरंदाज.कॉम इस प्रयास के साथ सामने आया है कि हम जमीनी कहानियों को सामने लाएंगे। पहाड़ों पर रहकर पहाड़ों की बात करेंगे. पहाड़ों की चुनौतियों, समस्याओं को जनता के सामने रखने का प्रयास करेंगे। उत्तराखंड में सबकुछ गलत ही हो रहा है, हम ऐसा नहीं मानते, हम वो सब भी दिखाएंगे जो एकल, सामूहिक प्रयासों से बेहतर हो रहा है। यह प्रयास उत्तराखंड की सही तस्वीर सामने रखने का है।

    एक्सक्लूसिव

    Dhami Cabinet विस्तार का काउंटडाउन शुरू? पूर्व मंत्रियों को तत्काल मंत्री आवास खाली करने को कहा गया, देखें पत्र

    August 27, 2025

    Dehradun Basmati Rice: कंकरीट के जंगल में खो गया वजूद!

    July 15, 2025

    EXCLUSIVE: Munsiyari के जिस रेडियो प्रोजेक्ट का पीएम मोदी ने किया शिलान्यास, उसमें हो रहा ‘खेल’ !

    November 14, 2024
    एडीटर स्पेशल

    Uttarakhand : ये गुलाब कहां का है ?

    February 5, 202512K

    India Space Missions … अंतरिक्ष में भारत का बसेरा!

    September 14, 202511K

    Dehradun Basmati Rice: कंकरीट के जंगल में खो गया वजूद!

    July 15, 202511K
    तीरंदाज़
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube Pinterest LinkedIn WhatsApp Telegram
    • होम
    • स्पेशल
    • PURE पॉलिटिक्स
    • बातों-बातों में
    • दुनिया भर की
    • ओपिनियन
    • तीरंदाज LIVE
    • About Us
    • Atuly Uttaraakhand Emagazine
    • Terms and Conditions
    • Privacy Policy
    • Disclaimer
    © 2025 Teerandaj All rights reserved.

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.