उत्तराखंड की वायु, जलस्रोत को किस प्रकार संरक्षित किया जा रहा है। इसे सूचकांक के जरिये बताया जाएगा। यह देश में पहली बार होगा। यानी अपना उत्तराखंड पहला राज्य बन गया है जहां पर आज सकल पर्यावरण उत्पाद (GEP Index) लांच किया गया है। GEP का मतलब है प्राकृतिक संसाधनों में हुई वृद्धि के आधार पर समय-समय पर पर्यावरण की स्थिति का आकलन करना। इससे पर्यावरण के संरक्षण में कितनी मदद मिलेगी यह भविष्य में पता चलेगा। हालांकि, भारतीय वन सर्वेक्षण समय-समय पर ऐसी रिपोर्ट जारी करती रहती है। उसकी रिपोर्ट पूरे देश पर आधारित होती है। यहां पर जीईपी के माध्यम में राज्य की स्थिति का पता चलेगा। हालांकि, आलोचक कहते हैं कि अब तक राज्य की पर्यावरण की स्थिति के बारे में जो रिपोर्ट जारी होती है उसको गंभीरता से नहीं लिया जाता है। ऐसे में जीईपी को कितनी गंभीरता से लिया जाएगा। इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है।
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जीईपी को लॉन्च करते समय सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हमारे सामने आने वाले वर्षों में भी इसे बनाए रखने की चुनौती है। ग्रीन बोनस की हम मांग करते थे, लेकिन आज पिछले तीन साल के आंकड़े आए हैं। उससे हमें बेहतर करने का मौका मिलेगा। मुख्यमंत्री ने लॉन्च के मौके पर कहा कि यह सूचकांक नीति आयोग और भारत सरकार के लिए भी बेहद उपयोगी होगा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर हम केंद्र सरकार से बात करेंगे। भले ही हमारी जनसंख्या में 1.25 करोड़ है लेकिन पर्यटन और तीर्थयात्रा को मिलाकर देखा जाए तो प्रतिवर्ष यहां पर करीब आठ करोड़ लोग पहुंचते हैं। इसलिए हमारे राज्य को अलग बजट भी मिलना चाहिए।
इस मौके पर सीएम ने कहा कि हमारी कुछ नदियां पहले सदानीरा थीं लेकिन आज सूख गई हैं। हम उन्हें एक दूसरे से जोड़ने का काम करेंगे। सीएम ने उम्मीद जताई कि जीईपी सूचकांक से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी। हम अपने वनों, जलस्रोतों को बचाए रखने के लिए काम करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि भविष्य में यह इंडेक्स राज्य को नीति बनाने में भी मदद करेगा।
GEP के बारे में
यह पारिस्थितिक स्थिति को मापने के लिए एक मूल्यांकन प्रणाली है। इसे उन उत्पाद और सेवा मूल्यों के रूप में लिया जाता है जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र मानव कल्याण और आर्थिक एवं सामाजिक सतत विकास को बढ़ावा मिलता है। इतिहास की बात करें तो पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए शिक्षाविदों ने 1981 में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं शब्द को गढ़ा था। जिन पारिस्थितिक तंत्रों को मापा जा सकता है उनमें प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र जैसे- वन, घास के मैदान, आर्द्रभूमि, रेगिस्तान, मीठे पानी एवं महासागर और कृत्रिम प्रणालियां शामिल हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं जैसे कि कृषि भूमि, चरागाह, जलीय कृषि खेतों तथा शहरी हरी भूमि आदि पर आधारित हैं।