2013 केदारनाथ आपदा के बाद इस वर्ष Uttarakhand को सबसे बड़ी क्षति हुई है। आपदा के जख्म ऐसे है, इसे भरने में वर्षों लग जाएंगे। राज्य की आर्थिकी चारधाम यात्रा से गहरी जुड़ी हुई है। मगर, इस बार बार-बार बादल फटने की घटना, भुस्खलन, बाढ़ के कारण यात्रा 55 दिन तक स्थगित रही। 13 जिलों वाले उत्तराखंड के 10 जिले किसी न किसी रूप में आपदाग्रस्त रहे। राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से 5700 करोड़ रुपये की सहायता की मांग की है। अगर केंद्र सरकार यह सहायता दे भी देती है तो उत्तराखंड को उबरने में वर्षों का समय लगेगा। बुनियादी ढांचे को बहुत नुकसान हुआ है। कई राजमार्ग बह गए हैं। सैकड़ों घरों का नामोनिशान तक मिट गया है।
आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस मानसूनी सीजन में 31 अगस्त तक 79 लोगों की जान चली गई है। 115 घायल है और 90 लोग लापता हैं। इसमें दूसरे राज्य के निवासी भी शामिल हैं। लापता लोगों की तलाश जारी है। दर्जनों होटल और होम स्टे मलबे में दबे पड़े हैं। धराली को पार कर गंगोत्री जाने वाला मार्ग भी सुचारू नहीं हो सका है। हर्षिल जैसी खूबसूरत घाटी भी सुनसान पड़ी है। पर्यटकों की दूरी से लोगों के काम धंधे चौपट हो गए हैं। उत्तराखंड के कई एकड़ सेब के बगीचे मलबे में दब गए हैं। इससे हुए नुकसान का आकलन जारी है। जहां कभी पेड़-बगीचे थे वहां मलबा है। मुखबा के सामने भागीरथी नदी के किनारे पांडव कालीन कल्पकेदार मंदिर भी करीब 40 फीट मलबे में दब गया है। यमुनोत्री धाम की यात्रा भी जंगलचट्टी के जंगलचट्टी के पास नेशनल हाईवे पर भूस्खलन के कारण बंद है।
केदारनाथ की त्रासदी से अधिक नुकसान
उत्तराखंड को इस मानसून केदारनाथ की त्रासदी से अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। विभिन्न धार्मिक व पर्यटन स्थलों तक पहुंचाने वाले हाईवे से लेकर दूरस्थ गांवों को जोड़ने वाले छोटे मार्ग भारी बारिश, भूस्खलन के कारण सर्वाधिक प्रभावित हैं। इन मार्गों को सुचारू करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। सरकार ने अभी तक सड़क, बिजली, पेयजल, पशुपालन, शिक्षा विभाग को 1,944 करोड़ के सीधे तौर पर नुकसान का अनुमान लगाया है। इनमें बहुत सी संपत्ति आपदा के कारण नष्ट हुई हैं, उन्हें ठीक करने के लिए 3,758 करोड़ की जरूरत का अनुमान है।
उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में भारी तबाही
वर्ष 2025 का मानसून सीजन पहाड़ी राज्यों के लिए बुरा साबित हुआ है। अमूमन हर मानसूनी सीजन में भुस्खलन और बादल फटने की घटनाएं होती हैं। लेकिन, इस बार पैटर्न में बदलाव दिखा। जहां बादल फटने की संभावना नहीं थी, वहां भी बादल फटे। नदियां पूरे वेग से बहीं। अपने साथ आसपास के इलाकों को ले उड़ीं। धराली आपदा में लापता हुए लोगों को कोई पता नहीं लग पाया है। जिस हिसाब से वहां मलबे का ढेर है, उससे यही आशंका है कि शायद ही उनका पता चले।
पीएम जल्द करेंगे आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही उत्तराखंड के आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे। आपदा में हुए भारी नुकसान के बीच राज्य ने केंद्र से 5702 करोड़ की विशेष सहायता मांगी है। राज्य में पांच अगस्त को उत्तरकाशी के धराली से शुरू हुआ आपदाओं का सिलसिला अब तक अनवरत जारी है। इस बीच सोमवार को केंद्रीय टीम भी प्रदेश के आपदाग्रस्त इलाकों का दौरा करने के लिए उत्तराखंड आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार आपदाओं को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से संपर्क में रहे हैं। अब जल्द ही उनके उत्तराखंड दौरे की संभावना है। इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। पीएम मोदी कुछ आपदाग्रस्त इलाकों में जा सकते हैं या फिर हवाई सर्वेक्षण भी कर सकते हैं। अभी यह तय नहीं है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी के आने की सूचना तो है लेकिन अभी कार्यक्रम का इंतजार किया जा रहा है। पीएमओ से इस संबंध में जल्द ही जानकारी आने की संभावना है।
आपदा अभी टली नहीं : डॉ. दिनेश सती
पिछले दिनों देहरादून डायलॉग में वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक डॉ. दिनेश सती ने कहा कि धराली में अब भी फ्लश फ्लड का खतरा टला नहीं है। घराली के ऊपर श्रीकंठ पर्वत के बेस में मौजूद सिल्ट, गाद, आइस कवर, बेसिन में पड़ा मलबा निचली आबादी के लिए खतरनाक है। धराली की घटना के संबंध में वह बताते हैं, पांच अगस्त के आगे-पीछे के कुछ दिनों में धराली में सिर्फ 25 एमएम तक ही बारिश हुई। बादल फटने की घटना तब मानी जाती है जब 100 एमएम से ऊपर बारिश हुई हो। डॉ. सती कहते हैं कि केदारनाथ, ऋषिगंगा, धराली और अब उत्तरकाशी के स्थानाचट्टी में आई विपदा विशुद्ध प्राकृतिक नहीं है। निरंतर अवैज्ञानिक निमाण कार्य, उच्च क्षेत्र में बढ़ती मानवीय गतिविधि, नदी, गधेरों के बहाव वाले क्षेत्रों में निर्माण इन आपदाओं को निमंत्रण दे रही है। वह बताते हैं कि धराली के ऊपर कम से कम तीन संवेदनशील क्षेत्रों में आइस कवर, आरबीएम, बेसिन के मलबे के रूप में करीब 461.3 मिलियन क्यूबिक मीटर मलबा अभी भी मौजूद है। जो बड़ी आपदा ला सकता है।
बढ़ता खतरा
हिमालयी क्षेत्रों में तापमान बढ़ने और अनियमित बारिश के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे नई झीलें बन रही हैं और उनके टूटने से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। साल 2025 तक भारत में ऐसे 300 से ज्यादा स्थान चिह्नित किए गए हैं जहां हिमनद झील के फटने की आशंका है। इसके अलावा सड़कों का चौड़ीकरण, मशीनों से कटाई, सहारा देने वाली दीवारों (रिटेनिंग वाल) की कमी और नदियों में मलबा डालने जैसी इंसानी गतिविधियां भी प्राकृतिक आपदाओं के खतरे बढ़ा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद निर्माण कार्यों पर रोक नहीं लग पाई है। इसी वजह से यह क्षेत्र लगातार जलवायु जोखिम का हॉटस्पॉट बन गया है।
8 साल में 3,534 लोगों ने गंवाई जान
मानसून हर साल उत्तराखंड के लिए बर्बादी लेकर आता है। बीते दस सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में करीब 18,464 प्राकृतिक आपदाएं आई हैं। हर मानसून का सीजन कोई न कोई नया जख्म देकर जाता है। इस साल 2025 में भी उत्तराखंड को धराली आपदा के रूप में कभी न भूल पाने वाला जख्म मिला है। इस आपदा में 66 लोग लापता हैं, जिनकी खोजबीन में सर्च ऑपरेशन चल रहा है। लेकिन 50 फीट मलबे के नीचे दबे लोगों को कुछ पता नहीं चल पा रहा है।
साल 2015 से 2024 तक आई प्राकृतिक आपदाओं पर गौर करें तो इन 10 सालों में 18,464 प्राकृतिक घटनाएं हुई हैं। इनके चलते हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। इन सभी घटनाओं में से सबसे अधिक 12,758 तेज बारिश और बाढ़ की घटनाएं हुई हैं। उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 10 सालों में करीब 18,464 प्राकृतिक घटनाओं के चलते 3,667 पक्के और कच्चे मकान जमींदोज हुए। इसके अलावा 9,556 पक्के मकान और 5,390 कच्चे मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।
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