स्थापना के 25वें वर्ष में Uttarakhand के खाते में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि आई है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा राज्यों की वित्तीय स्थिति पर किए गए दशकीय अध्ययन के अनुसार 16 राज्य राजस्व अधिशेष की स्थिति में हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश सबसे अग्रणी है। खास बात यह है कि इसमें अपना उत्तराखंड भी शामिल है। यानी राज्य की कमाई उसके खर्च से ज्यादा है। उत्तराखंड ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 5,310 करोड़ रुपये का राजस्व अधिशेष दर्ज कर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।
राज्य सरकार के पास जनकल्याणकारी योजनाओं और निवेश के लिए खुद का पैसा है। इसका मतलब यह हुआ कि उसे कोई योजना शुरू करने के लिए कर्ज या केंद्र सरकार से मदद की दरकार कम होगी। विकास का पहिया तेजी से घूमेगा। अन्य राज्यों की अपेक्षा उत्तराखंड का नाम चौंकाता इसलिए भी है, क्यों यह राज्य हर साल प्राकृतिक आपदाओं से जूझता है। सैकड़ों करोड़ की संपत्ति स्वाहा हो जाती है। जानमाल का नुकसान अलग से होता है। ऐसे में राजस्व को सरप्लस की स्थिति में ले जाना वाकई सराहनीय है। राज्य के नीति नियंता बधाई के पात्र हैं। अर्थशास्त्र के जानकार कहते हैं कि अगर उत्तराखंड की स्थिति अगले दशक तक ऐसी बनी रहती है तो वह विकसित राज्य की श्रेणी में खड़ा हो सकता है। लोगों के पास रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध होंगे।
15वें वित्त आयोग की ओर से निर्धारित राजकोषीय उत्तरदायित्व और राजकोषीय समेकन पथ के मुताबिक, राज्यों को 2022-2023 के दौरान या तो शून्य राजस्व घाटा या राजस्व अधिशेष में होना आवश्यक था। लेकिन, 28 राज्यों में 16 राज्य ही अधिशेष की स्थिति में हैं। बाकी 12 राज्य घाटे में हैं। यह रिपोर्ट CAG के संजय मूर्ति द्वारा राज्य वित्त सचिवों के सम्मेलन के दौरान जारी की गई।
रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड ने लगातार छह वर्षों से राजस्व सरप्लस बनाए रखा है। करों और अन्य संसाधनों से आय में वृद्धि हुई है जिससे राज्य की वित्तीय स्थिति मजबूत हुई है। सरकार वित्तीय अनुशासन को प्राथमिकता दे रही है और अर्थव्यवस्था को और मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्तराखंड ने अपने संसाधनों से आय जुटाने के लिए जब से प्रयास तेज किए और साथ ही फिजूलखर्ची पर कैंची चलाई तो वार्षिक बजट में राजस्व घाटा सिमटने लगा है। पांच वर्षों में करों व अन्य संसाधनों से होने वाली आय डेढ़ गुना से अधिक बढ़ गई। वित्तीय अनुशासन की इसी इच्छाशक्ति के बूते प्रदेश लगातार छह वर्षों से राजस्व सरप्लस बना हुआ है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के पुनरीक्षित बजट अनुमान इशारा कर रहे हैं कि इस अवधि में भी राज्य का बजट राजस्व सरप्लस रहने जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट अनुमान और 2024-25 के राज्य बजट के पुनरीक्षित अनुमान में भी राजस्व सरप्लस बजट आकलित किया गया है। कैग ने यह भी उल्लेख किया वर्ष 2005 के बाद से 47 हजार करोड़ की बजट राशि निर्धारित प्रक्रिया अपनाए बगैर खर्च की गई है।
यूपी खास क्यों?
CAG रिपोर्ट के अनुसार 16 राज्यों में वित्तीय वर्ष 2022-23 में राजस्व अधिशेष दर्ज किया गया, जो आर्थिक रूप से कमजोर माने जाने वाले राज्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है। उत्तर प्रदेश इस मामले में अग्रणी है, जिसके पास 37,000 करोड़ रुपये का अधिशेष है, जो पहले बीमारू राज्य के रूप में जाना जाता था। बीमारू (BIMARU) शब्द बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश का संक्षिप्त रूप है, जो उन राज्यों का समूह है, जो ऐतिहासिक रूप से आर्थिक और सामाजिक संकेतकों में पिछड़े रहे हैं।
राज्यों का औसत प्रदर्शन निराशाजनक
एक दशक में ऋण वृद्धि: राज्यों का कुल सार्वजनिक ऋण वर्ष 2013-14 में 17.57 लाख करोड़ रुपये से 3.39 गुना बढ़कर वर्ष 2022-23 में 59.60 लाख करोड़ रुपये हो गया। वित्त वर्ष 2022-23 में राज्यों का ऋण, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 22.17% रहा।
राजस्व घाटे वाले राज्य
वित्तीय वर्ष 2022-23 में कम-से-कम 12 राज्य राजस्व घाटे में पाए गए, जो गंभीर राजकोषीय संकट को दर्शाता है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में सबसे अधिक घाटा दर्ज किया गया, जो केंद्रीय अनुदान पर बढ़ती निर्भरता की ओर संकेत करता है। कुछ राज्य केंद्रीय वित्तीय सहायता पर अत्यधिक निर्भर हैं, जिसमें पश्चिम बंगाल को वित्तीय वर्ष 2022-23 में 16% का सबसे बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ। कुछ राज्यों ने कर और गैर-कर दोनों तरीकों से अपने राजस्व सृजन को सफलतापूर्वक बढ़ाया है। इसमें हरियाणा सबसे आगे है, जिसकी 80% से अधिक आय उसके स्वयं के स्रोतों से आती है, इसके बाद तेलंगाना और महाराष्ट्र का स्थान है, जिनकी आय क्रमशः 70% तथा 60% से अधिक है।
राज्यों का अपना कर राजस्व
कैग रिपोर्ट में कुछ राज्यों के स्वयं के आय स्रोत पर निर्भरता पर भी प्रकाश डाला गया है। इसमें छह राज्य- हरियाणा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु अपने राजस्व का 60% से अधिक आय अर्जित करते हैं। दूसरी ओर, कुछ पूर्वोत्तर राज्य और छोटे क्षेत्र जैसे अरुणाचल, मणिपुर, नागालैंड तथा सिक्किम बहुत कम आय करते हैं। जहां उनके स्वयं के कर राजस्व का योगदान 20% से भी कम है।