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    Home»उत्तराखंड 360»हर तरह के स्पोर्ट्स का गढ़ है अपना पिथौरागढ़
    उत्तराखंड 360

    हर तरह के स्पोर्ट्स का गढ़ है अपना पिथौरागढ़

    teerandajBy teerandajSeptember 11, 2023Updated:November 11, 2023No Comments
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    उत्तराखंड में जब भी खेलों की बात होती है तो एक जिले का नाम हमेशा लिया जाता है और वह जिला है पिथौरागढ़। यहां जब खेलों की बात होती है तो यहां के बॉक्सिंग और फुटबॉल का कोई सानी नहीं है कोई मैच ही नहीं है। उसके पीछे वजह यह है कि यहां से टैलेंट लगातार बाहर आता रहता है। ‘तीरंदाज’ की टीम ऐसे ही टैलेंट से मुलाकात करने जा पहुंची। हमें यह समझना था कि ऐसा क्या है पिथौरागढ़ में जो यहां से इतने सारे नेशनल और इंटरनेशनल बॉक्सर्स निकलते हैं। यह सिलसिला हरि थापा से शुरू होता है और आज यहां पर कई सारे छोटे बच्चे भी बॉक्सिंग के गुर सीख रहे हैं। दनादन पंचेस की आवाज… ऐसा लगता है कि आप किसी अलग ही दुनिया में आ गए हों।

    एक बॉक्सर मिलीं। उनका नाम दीपा है और वह पिथौरागढ़ से हैं। उन्होंने बताया, ‘अभी मैंने 60 यूथ वूमेन नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में अपने वेट में गोल्ड मेडल लिया है। मैंने 60-63 वेट खेला है। जिसको लाइट फिल्टर बोलते हैं। यह चैंपियनशिप मध्य प्रदेश भोपाल में 26 जून से 2 जुलाई तक चली थी। मैं पिथौरागढ़ में ट्रेनिंग कर रही हूं। हमारे कोच निखिल मेहर सर हैं। मेरा ड्रीम इंडिया के लिए गोल्ड मेडल लाना है।’

    4th और 5th जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में पिन वेट कैटेगरी में मैं 2 साल से चैंपियन हूं। मेरा टीम ओलंपिक में इंडिया को रिप्रेजेंट करके मेडल लाना है। – ब्रजेश, पिथौरागढ़

    आरती ने 2018 में बॉक्सिंग शुरू की थी। वह बताती हैं कि मुझे बॉक्सिंग करते-करते 5 साल हो गए हैं। स्टार्टिंग में मैं संगीता मैम के अंडर ट्रेनिंग करती थी। फिर मैंने भास्कर सर के अंडर SAI का ट्रायल दिया था। उसमें ट्रेनिंग करते-करते हरियाणा में 4th नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में मेरा सिल्वर मेडल आया था। उसके बाद मेरा एमबीए रोहतक में सिलेक्शन हो गया था जो खेलो इंडिया का सेंटर है। मैंने वहां ढाई-तीन साल ट्रेनिंग की है। 2022 में खेलो इंडिया में मैंने सिल्वर मेडल जीता। जुलाई में मेरा कजाकिस्तान नूरसुल्तान में कैंप था। नूरसुल्तान मैंने इलोर्डा कप खेला था, जिसमें मैंने इंडिया को रिप्रेजेंट किया था। उसके बाद मेरे लेग में नी-इंजरी हो गई थी, जिस वजह से 1 साल का गैप हो गया। मैं अब निखिल सर के अंडर दोबारा ट्रेनिंग करने आ गई हूं। अभी मेरा गोल अपने आप को फिट करना है। उसके बाद नेशनल चैंपियनशिप एलिट में गोल्ड लेकर एक पोजीशन ले लूं। उसके बाद में आगे की कंपटीशन के लिए तैयार होऊंगी।

    अब मिलिए कैप्टन सर से

    पिथौरागढ़ की एक लैगेसी है जो हरि थापा से चलती है। यहां 16 – 17 साल के बच्चे कजाकिस्तान इंटरनेशनल ट्रेनिंग के लिए जा रहे हैं। कैप्टन देवी चंद सर से हमने पूछा कि पिथौरागढ़ की मिट्टी में ऐसा क्या है जिसने इतने सारे बॉक्सर्स पैदा किए हैं? कैप्टन देवी ने कहा कि हमारे सीनियर बॉक्सर ने हमें जो सिखाया, उसे सीखकर हमने नेशनल इंटरनेशनल मेडल जीते। अब हम वही गाइडलाइन पर चलकर बच्चों को तैयार कर रहे हैं और बच्चे भी अच्छा प्रदर्शन करके अपने परिवार, प्रदेश और देश का नाम राशन कर रहे हैं। उम्मीद है कि आगे भी यह बच्चे अच्छा ही करेंगे।

    कैप्टन ने कहा कि पुराने बॉक्सर को देखकर ही नए टैलेंट बाहर आ रहा है। हम बच्चों को ट्रेनिंग देने के साथ-साथ उन्हें हर एक बारीकी बताते हैं। उन्हें गाइडलाइन के साथ-साथ मोटिवेट भी करते हैं। हम उन्हें कहते हैं कि हरियाणा की भिवानी में भी बच्चे यहां के जैसे ही हैं और यह तो पहाड़ी इलाका है। पहाड़ी लोग वैसे भी मजबूत होते हैं। आराम से पहाड़ों में चढ़ते और उतरते हैं। यहां का क्लाइमेट और रहन सहन और खान पान सब अच्छा है। जब वो कर सकते हैं तो तुम लोग क्यों नहीं कर सकते हो। ट्रेनिंग के साथ-साथ हम बच्चों को इस तरीके से मोटिवेट करते हैं और बच्चे भी मोटिवेट होते हैं। यही वजह है कि बच्चे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।

    खेलो इंडिया से क्या बदला?

    ऐसे में हमने पूछ लिया कि खेलो इंडिया कितना बड़ा गेम चेंजर बना खासकर रूरल एरियाज से जो टैलेंट निकलकर आया उसके लिए। उन्होंने बताया कि खेलो इंडिया बहुत अच्छा कर रहा है। बच्चों को प्रोत्साहन मिल रहा है, धनराशि भी मिल रही है, जिससे बच्चे खेलों के लिए और मोटिवेट हो रहे हैं।

    बॉक्सिंग के कोच पहले की तुलना में आज क्या चेंज देखते हैं? आज बच्चे इंटरनेशनल इवेंट्स के लिए जाते वक्त कितना मेंटली रिपेयर होते हैं? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि हम लोग बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं और मोटिवेट भी करते हैं। उन्हें यह सिखाते हैं कि जब और बच्चे कर सकते हैं तो तुम भी कर सकते हो। देवभूमि उत्तराखंड में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मैं आर्मी से रिटायर्ड कैप्टन हूं। खेलों में अनुशासन बहुत ज्यादा जरूरी है। जिस प्लेयर में अनुशासन होता है, वह अच्छा प्लेयर बनता है। जैसे जैवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने गोल्ड जीता। जब वह कर सकता है तो और बच्चे क्यों नहीं कर सकते हैं। इस तरीके से बच्चों को मोटिवेट किया जाता है और बच्चे भी मोटिवेट हो रहे हैं। खासकर लड़कों से ज्यादा अच्छा लड़कियां कर रही हैं। यह देखकर मुझे बहुत ज्यादा खुशी होती है।

    लड़कियां भी कम नहीं

    ट्रेनिंग सेंटर में बहुत ज्यादा लड़कियां दिखाई दीं। क्या इसके पीछे कोई खास वजह? क्या पेरेंट्स की तरफ से भी लड़कियों को ज्यादा सपोर्ट मिल रहा है। इस पर उन्होंने कहा कि पेरेंट्स का अच्छा सपोर्ट मिल रहा है। बच्चों को खिलाड़ी बनाने के लिए पेरेंट्स की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। पेरेंट्स खुद बच्चों को लेकर ट्रेनिंग सेंटर में आ रहे हैं। हमारे जमाने में मेडल जीतना बहुत ज्यादा मुश्किल हुआ करता था, लेकिन आज बच्चे ओलंपिक में मेडल जीत रहे हैं। उन्हें नौकरियां मिल रही है, पैसा मिल रहा है, इज्जत और मान सम्मान मिल रहा है। बच्चे अपनी सीनियर को देखकर मोटिवेट होते हैं और अच्छा कर रहे हैं। हाल ही में हमने डिस्ट्रिक्ट लेवल पर कंपटीशन का आयोजन किया था, जिसमें 210 बच्चों ने पार्टिसिपेट किया था। इसमें छोटे बच्चों ने बड़े बच्चों से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया। यह देखकर मुझे बहुत ज्यादा खुशी होती है। बच्चे बहुत ज्यादा मोटिवेट हैं। यहां इतनी भीड़ है कि शाम को स्टेडियम में जगह नहीं होती है।

    एक कहावत है कि वंस ए बॉक्सर इस ऑलवेज ए बॉक्सर। सर अभी भी बिल्कुल बॉक्सर जैसे ही लगते हैं। वह कहते हैं कि पहाड़ी लोग बोर्न फाइटर होते हैं। यह उनके डीएनए में होता है, क्योंकि हम रोज चैलेंज से लड़ते हैं। उन चैलेंजेस से लड़ने के चलते हमारे अंदर फाइटिंग स्पिरिट होती है। उसे किसी स्पोर्ट्स के जरिए अगर हम किसी मुकाम पर ले जा रहे हैं तो यह बहुत अच्छी पहल आपके द्वारा की जा रही है। पिथौरागढ़ में एक बहुत अच्छी बात है कि यहां पर यंग कोचस बहुत ज्यादा हैं।

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    कैप्टन देवी ने कहा कि यंग कोचेस भी हैं, एक्सपीरियंस्ड कोच भी हैं, सब मिलजुल कर काम करते हैं। हमारे समय पर इस तरह की सुविधा नहीं थी। लेकिन हमने जो सीखा हम उन्हें सिखाते हैं और बच्चे अच्छा कर रहे हैं।

    कौन-कौन से खेल बढ़ रहे

    पिथौरागढ़ में खेलों की कहानी सिर्फ बॉक्सिंग, बैडमिंटन फुटबॉल तक ही सीमित नहीं है। यहां बहुत सारे ऐसे खेल है जिनमें बच्चे बहुत अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं। नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट्स में पार्टिसिपेट कर रहे हैं। पिथौरागढ़ में फुटबॉल के फील्ड में क्या-क्या हो रहा है, इसके बारे में बात करने के लिए हमने मुलाकात की प्रताप सिंह बिष्ट से, जो इस ट्रेनिंग सेंटर में डीएसओ हैं। हमने यह जानना चाहा कि कौन-कौन से ऐसे खेल हैं जिनमें बच्चे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं?

    प्रताप सिंह बिष्ट ने बताया कि हमारे यहां करीबन 28 कैंप चल रहे हैं, जिसमें से फुटबॉल में SAI का एक सेंटर खुला है। इसमें हमारे पास 30 बच्चे हैं। इसके अलावा बॉक्सिंग में भी SAI का सेंटर है, जिसके लिए हमें फंड मिलता है। इसमें तीन-चार बच्चे इंटरनेशनल लेवल पर पार्टिसिपेट करेंगे। इसके साथ ही हमारे पास एक हॉस्टल भी है। लड़कियों का काफी अच्छा रिजल्ट है। उसमें भी दो-चार बच्चे इंटरनेशनल लेवल पर प्रतिभाग करेंगे। वहीं यहां एथलेटिक्स भी है, जिसमें लास्ट इयर एक लड़की ने इंडिविजुअली ब्रोंज और टीम में गोल्ड मेडल जीता है। इसके अलावा सेंटर में नया-नया बास्केटबॉल शुरू किया गया है। हमारे पास परमानेंट कोच आए हैं। बास्केटबॉल में गर्ल्स की हमारी एक अच्छी टीम बनी हुई है। बैडमिंटन में यहां से एंजल पुनेरा नेशनल रैंकिंग में नंबर वन पर चल रही है। इसके अलावा हमारे पास वॉलीबॉल, हॉकी है। हॉकी में गर्ल्स की बढ़िया टीम बनी है। हॉकी के लिए नए कोच आए हैं और उसमें काफी अच्छा इंप्रूवमेंट हो रहा है। वहीं तायक्वोंडो में भी हमारे पास काफी अच्छा स्कोप है। लास्ट ईयर तायक्वोंडो में हमारे 5- 6 बच्चे इंटरनेशनल लेवल पर पार्टिसिपेट कर कर आए हैं।

    आमतौर पर सुदूरवर्ती इलाकों में शहरों के कंपैरिजन कम फैसेलिटीज होती हैं। क्या अभी भी ऐसा है या यहां पर फैसेलिटीज काफी अच्छी हैं? प्रताप सिंह इस सवाल का जवाब स्पष्ट देते हुए कहते हैं कि सरकार काफी अच्छी फैसिलिटीज दे रही है। वहीं ग्राउंड की स्थिति को लेकर हमने उत्तराखंड और भारत सरकार को कई सारे प्रपोजल भेजे हैं। मुझे लगता है कि आने वाले समय में हमें यह फैसिलिटी भी जल्द मिल जाएगी। खेलो इंडिया ने कितना बदलाव लाया है? प्रताप सिंह ने कहा कि खेलो इंडिया से बच्चे काफी ज्यादा मोटिवेट हुए हैं और इसके काफी अच्छे रिजल्ट्स हैं। हमारे काफी सारे बच्चों ने खेलो इंडिया में पार्टिसिपेट भी किया है।

    आखिर में दो बात

    आमतौर पर पिथौरागढ़ की पहचान बॉक्सिंग, बैडमिंटन, फुटबाल जैसे खेलों से होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब यहां ओवर ऑल स्पोर्ट्स कल्चर निकलकर सामने आ रहा है और बच्चे बहुत अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं। यह पिथौरागढ़ की कहानी है। ऐसे ही कुछ और कहानी आपको दिखाते रहेंगे।

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