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    Home»कवर स्टोरी»त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव : जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए समर्थित हारे, अब समर्पितों के सहारे!
    कवर स्टोरी

    त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव : जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए समर्थित हारे, अब समर्पितों के सहारे!

    सत्ता का सेमीफाइनल कहा जा रहा उत्तराखंड का त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव कई मायनों में खास रहा। इसके संदेश व्यापक और दीर्घकालिक असर डालने वाले हैं। भाजपा भले ही यह दावा कर रही हो कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर सभी 12 जिलों में पार्टी जीतेगी लेकिन नंबर गेम उसके इस दावे पर खरा नहीं उतर रहा है। पार्टी को अपने दावे को हकीकत में बदलने के लिए बैकडोर मशक्कत करनी पड़ रही है। कांग्रेस के लिए जिला पंचायत के नतीजे 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए संजीवनी सरीके हैं। पार्टी जहां मिलकर लड़ी, वहीं जीती है। जिला पंचायत चुनाव में दोनों ही दलों के बागी भी अच्छी खासी संख्या में जीते हैं। ऐसे में अब सारा खेल ‘समर्पितों’ को अपने खेमे में बनाए रखने का है।
    Arjun Singh RawatBy Arjun Singh RawatAugust 11, 2025Updated:August 11, 2025No Comments
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    • अतुल्य उत्तराखंड के लिए अर्जुन एस. रावत

    त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव का फाइनल स्कोर 12 जिलों में छोटी सरकार के गठन के बाद ही साफ होगा। इन चुनाव में भाजपा-कांग्रेस का सियासी हासिल क्या रहा, जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी साफ करेगा। पिछली बार 12 जिला पंचायतों में 10 पर भाजपा और 2 पर कांग्रेस के अध्यक्ष थे। इस बार के पंचायत चुनाव के नतीजों ने दोनों दलों को अंत तक लड़ने का मौका दिया है।

    त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव की खास बात यह रही कि ज्यादातर जीतने वाले प्रत्याशी युवा हैं। फिर वह चमोली के सारकोट की 21 साल की नवनियुक्त प्रधान प्रियंका नेगी हों या पौड़ी कुईं गांव की बीटेक पास प्रधान साक्षी। इस बार जोश के साथ पेशेवर उच्च शिक्षित युवा अपने गांवों को संवारने के लिए आगे आए और लोगों ने उन्हें हाथोंहाथ लिया। वहीं, दूसरी ओर देश और राज्य में अपनी सेवाएं देने वाले पूर्व अधिकारी भी आगे बढ़कर अपने गांवों की कमान संभालने को तैयार दिखे। लोगों ने उनपर भरोसा भी जताया। यह राज्य और लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है।

    इसके अलावा बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों से ज्यादा निर्दलियों ने जीत दर्ज की। कई दिग्गजों के परिजनों को इस चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। इसका संदेश यह है कि लोग परिवारवाद की राजनीति को नकारने लगे हैं। लोकसभा, विधानसभा चुनावों में लोग राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित रहते हैं। वोट भी उसी हिसाब से करते हैं जबकि पंचायत चुनावों में लोग अपनी समझ और स्थानीय मुद्दों को तरजीह देते हैं। अगर कहा जाए कि यह चुनाव असल लोकतांत्रिक तरीके से लड़ा जाता है तो गलत नहीं होगा। जहां उम्मीदवारों के गुण-दोष पर परिवार का एक-एक सदस्य मिलकर सामूहिक चर्चा करता है। आमतौर पर प्रधान का नाम आते ही गांव के बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति का चेहरा सामने आता था, लेकिन इस बार 21 से 32 साल के तमाम युवा छोटी सरकार चलाने में अहम भूमिका निभाने जा रहे हैं। गांवों का विकास होगा तो पहाड़ से पलायन रुकेगा।

    प्रदेश के 12 जिलों में हुए त्रिस्तरीय पंचायतों के लिए जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य और ग्राम प्रधान के कुल 10831 पदों के लिए चुनाव हुए। इनमें जिला पंचायत के 358 पद, क्षेत्र पंचायत के 2974 पद और ग्राम प्रधानों के 7499 पद शामिल हैं। प्रदेश में इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव दो चरणों में कराए गए थे। इनमें कुल 69.16 प्रतिशत मतदान हुआ। इसमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान प्रतिशत अधिक रहा। पुरुषों ने 64.23 प्रतिशत और महिलाओं ने 74.42 प्रतिशत वोट डाले।

    नतीजों पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का कहना है कि यह परिणाम ऐतिहासिक हैं। भाजपा को 2019 में 200 सीटें मिली थीं। उसमें हरिद्वार भी शामिल था। अब हरिद्वार छोड़कर भाजपा का आंकड़ा 216 तक जा रहा है। उस लिहाज से हरिद्वार की 44 सीटों को जोड़कर यह आंकड़ा 260 होगा। यह सीएम पुष्कर सिंह धामी सरकार की पंचायतों में ऐतिहासिक जीत है। सभी जिलों में भाजपा का बोर्ड बनने जा रहा है। वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षा करना माहरा ने कहा कि पंचायत चुनाव के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आए हैं। ग्रामीण क्षेत्र की जनता ने भाजपा की विरोधी नीतियों के खिलाफ मतदान किया। चुनाव के नतीजे बताते हैं कि 2027 में कांग्रेस सत्ता में आएगी। भाजपा छल कपट व प्रलोभन के हथकंडे न अपनाए तो कई जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष कांग्रेस समर्थित बनेंगे।

    राजनीतिक दिग्गजों की साख थी दांव पर
    त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कई राजनीतिक दिग्गजों की साख दांव पर थी। इसमें भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और पूर्व ब्लॉक प्रमुख भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। वहीं भाजपा समर्थित करीब छह से सात सीटें तो आई हैं, लेकिन उनके दिग्गज अपनी सीट नहीं बचा पाए। भटवाड़ी विकासखंड में पूर्व दो ब्लॉक प्रमुख सहित पुरोला में भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष हार गए। पुरोला में जिला पंचायत सीट पर रामा वार्ड सबसे हॉट सीट बनी हुई थी। क्योंकि यहां भाजपा के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सतेंद्र राणा, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष हरिमोहन नेगी और जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण मैदान में थे। इसमें दीपक बिजल्वाण ने सतेंद्र राणा से करीब 1200 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। वहीं भटवाड़ी में पूर्व ब्लॉक प्रमुख विनीता रावत मैदान में थीं। वह करीब डेढ़ सौ मतों से अपने प्रतिद्वंद्वी से हार गईं। साथ ही पूर्व में भटवाड़ी ब्लॉक प्रमुख रहे और जिला पंचायत सदस्य चंदन पंवार इस बार तीसरे नंबर पर रहे। इस बार के चुनाव में अप्रत्याशित मतों के कारण कई दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा। यह सभी हारने वाले प्रत्याशी भाजपा के दिग्गज हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के प्रभाव वाले क्षेत्र बदरीनाथ से भी भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। चमोली में भाजपा को सबसे करारी हार मिली है।

    विधायकों के ‘अपने’ भी हारे
    सल्ट विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक महेश जीना के पुत्र करण नेगी और लैंसडौन से विधायक महंत दिलीप रावत की पत्नी नीतू रावत चुनाव हार गईं। भवाली गांव से नैनीताल विधायक सरिता आर्य के पुत्र रोहित आर्य को हार का सामना करना पड़ा। नैनीताल जिले में ही जिला पंचायत सदस्य पद पर भाजपा की प्रत्याशी निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया को करारी हार मिली। लोहाघाट से पूर्व विधायक पूरन सिंह की बेटी सुष्मिता फर्त्याल नहीं जीतीं। भाजपा विधायक शक्ति लाल शाह के दामाद हरेंद्र शाह भी चुनाव हार गए।

    पर्ची-लॉटरी से चुनी गईं प्रधान

    रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक के ग्राम पंचायत कांदी में ग्राम प्रधान पद की प्रत्याशी पूनम देवी और लक्ष्मी देवी को 178-178 मत मिले। ऐसे में जिलाधिकारी प्रतीक जैन की मौजूदगी में पर्ची के माध्यम से ग्राम प्रधान का चयन किया गया जिसमें लक्ष्मी देवी निर्वाचित हुईं। दूसरी तरफ ग्राम पंचायत चौकी-बरसिल में भी ग्राम प्रधान प्रत्याशी विजय देवी और उर्मिला देवी को भी 102-102 वोट मिले। रिटर्निंग अधिकारी और खंड शिक्षाधिकारी अतुल सेमवाल ने लॉटरी के जरिये प्रधान का चुनाव किया जिसमें उर्मिला देवी विजयी घोषित हुईं।

    पंचायतों में समर्पित आयोग की सिफारिशें लागू

    पहली बार पंचायतों में ओबीसी आरक्षण के लिए गठित एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की सिफारिशें लागू की हैं। सचिव पंचायती राज चंद्रेश कुमार की ओर से जारी आरक्षण प्रस्ताव में यह स्पष्ट किया गया है कि ओबीसी की सीट आबादी के हिसाब से मुकाबले इस बार महिला जिलाध्यक्षों की संख्या में एक सीट की कमी आई है। ब्यूरो आरक्षित की गई है। इस बार ऊधमसिंह नगर जिला पंचायत की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है।

    पूर्व फौजी ने किया उलटफेर

    चमोली जिले की रानों जिला पंचायत सीट से पूर्व फौजी लक्ष्मण खत्री ने बड़ा उलटफेर किया। उन्होंने पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी और निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी को करारी शिकस्त दी। खत्री ने रजनी भंडारी को 479 वोटों के अंतर से हराया और शानदार जीत दर्ज की। इस चुनाव में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि भाजपा के चमोली जिलाध्यक्ष गजपाल बर्तवाल भी चुनावी मैदान में पिछड़ गए और वह चौथे स्थान पर रहे। इस नतीजे को राजनीतिक गलियारों में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। रजनी भंडारी की हार को न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत राजनीतिक पकड़ में कमी के तौर पर देखा जा रहा है, बल्कि इसे उनके पति राजेंद्र भंडारी के राजनीतिक भविष्य से भी जोड़कर देखा जा रहा है। राजेंद्र भंडारी हाल ही में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके बाद हुए बद्रीनाथ विधानसभा उपचुनाव में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी लखपत बुटोला से हार का सामना करना पड़ा था। अब पंचायत चुनाव में उनकी पत्नी की हार ने भंडारी परिवार की सियासी साख को एक और बड़ा झटका दिया है। यह नतीजा सिर्फ पंचायत स्तर के समीकरणों को ही नहीं बदल रहा, बल्कि आने वाले समय में जिले की राजनीति पर भी इसका गहरा असर पड़ सकता है।

     

    वनराजी समुदाय को पहली बार मिला प्रतिनिधित्व

    सीमांत जिले पिथौरागढ़ में पहली बार पंचायतों में वनराजी महिला को प्रतिनिधित्व का मौका मिला है। धारचूला के पूर्व विधायक गगन सिंह रजवार की बेटी कृति रजवार ने धारचूला विकासखंड के डुंगातोली क्षेत्र पंचायत सीट से जीतकर इतिहास रचा है। वह वनराजी समुदाय की पहली महिला हैं जो पंचायत चुनाव लड़ीं और जीती हैं। अपने पिता के साये में राजनीति की सीढ़ी चढ़कर बीडीसी सदस्य बनीं कृति अब ब्लॉक प्रमुख के लिए दावेदारी करेंगी। धारचूला में ब्लॉक प्रमुख का पद एसटी महिला के आरक्षित होने से सभी चुनावी समीकरण भी उनके पक्ष में हो सकते हैं।

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    Arjun Singh Rawat
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    पत्रकारिता का लंबा करियर। एजेंसी,टीवी, अखबार, मैग्जीन, रेडियो और डिजिटल मीडिया का अनुभव। राष्ट्रीय मीडिया में 15 साल काम करने के बाद पहाड़ों का रुख। पहाड़ के मुद्दों पर खुलकर बोलने का दम। जमीन पर काम करने का जज़्बा और जुनून आज भी वैसा ही, जैसा पहले दिन था।

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