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    Home»ओपिनियन»नवरात्र … शक्ति उपासना का पावन पर्व
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    नवरात्र … शक्ति उपासना का पावन पर्व

    आज के संदर्भ में नवरात्र का अर्थ केवल देवी की प्रतिमा के सामने दीप जलाना नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में सत्य, शक्ति और समरसता का पालन करने का संदेश देती है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जब जीवन में अंधकार और अधर्म बढ़ता है, तभी आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत होकर विजय का मार्ग दिखाती है।
    teerandajBy teerandajSeptember 23, 2025Updated:September 23, 2025No Comments
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    • पार्थसारथि थपलियाल
    लेखक पार्थसारथि थपलियाल

    भारत, जो सदियों से आध्यात्मिक चेतना और पर्वों की भूमि रहा है, वहां नवरात्र का महत्व अत्यधिक है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि मानव जीवन के धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों का पर्व है। वर्ष में दो बार – बसंत ऋतु के आरंभ में चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा (पड़वा) से और शरद ऋतु में आश्विन मास शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक– यह पर्व मनाया जाता है। इन नौ दिनों के दौरान लोग देवी दुर्गा की उपासना करते हैं, अपने भीतर शक्ति, धैर्य और संयम का संचार करते हैं और अपने जीवन को आध्यात्मिक अनुशासन और आत्मशुद्धि की दिशा में ले जाने का संकल्प करते हैं। नवरात्र का महत्व केवल लोकपरंपरा तक सीमित नहीं है। शास्त्रों और पुराणों में इसका स्पष्ट और व्यापक विवरण मिलता है। मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा को संपूर्ण जगत की शक्ति स्वरूपा बताया गया है।

    श्लोक में वर्णित है
    “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”

    इसका अर्थ है कि समस्त प्राणियों में शक्ति रूपी देवी की उपासना जीवन को सफल और सुरक्षित बनाती है। यही शक्ति है जो अंधकार, अधर्म और दुर्बलता का नाश करती है।

    देवी भागवत पुराण में भी नवरात्र व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। श्लोक कहता है:
    “चैत्रे मासि च कर्तव्यं तथा चैवाश्विने शुभे, चण्डिकायाः विशेषेण भक्त्या परमया नरैः।”

    यह स्पष्ट करता है कि चैत्र और आश्विन मास में देवी की उपासना मानव को रोगों, अशुभ प्रभावों और कठिनाइयों से मुक्त करती है। इन शास्त्रीय प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि नवरात्र केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन की सुरक्षा और आध्यात्मिक उत्कर्ष का माध्यम है।
    पौराणिक कथाएं इस पर्व की महिमा को और भी स्पष्ट करती हैं। रामायण में वर्णित है कि श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व शारदीय नवरात्र में देवी दुर्गा की पूजा की थी। महाभारत में पांडवों ने अज्ञातवास के समय देवी की आराधना की और उनसे युद्ध में विजय का वरदान प्राप्त किया। यही नवरात्रि को धर्म की रक्षा और विजय का पर्व बनाता है।

    नवरात्र का आध्यात्मिक संदेश अत्यंत गहन है। नौ रातों का क्रम केवल संख्या नहीं, बल्कि मानव जीवन की आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक है। पहले तीन दिन महाकाली की उपासना होती है, जो अज्ञान, भय और असत्य का नाश करती हैं। अगले तीन दिन महालक्ष्मी की आराधना होती है, जो समृद्धि, स्थिरता और धैर्य का वरदान देती हैं। अंतिम तीन दिन महासरस्वती की उपासना होती है, जो ज्ञान, विवेक और चेतना का विकास करती हैं। इस क्रम से नवरात्र हमें यह संदेश देती है कि जीवन में अज्ञान, भय और दुर्बलता पर विजय तभी संभव है जब शक्ति, समृद्धि और ज्ञान का संतुलन बना रहे।

    सांस्कृतिक दृष्टि से नवरात्र समाज के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। बंगाल में दुर्गा पूजा, गुजरात में गरबा और डांडिया, उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा – ये सभी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामूहिक चेतना और सांस्कृतिक सौंदर्य का प्रदर्शन हैं। इस पर्व में समाज में एकता, सहयोग और सौहार्द्र की भावना जागृत होती है। यह पर्व नारी शक्ति के सम्मान का प्रतीक भी है, जो हमें याद दिलाता है कि शक्ति का वास्तविक स्वरूप महिलाओं में निहित है और वह जीवन में अधर्म पर धर्म की विजय सुनिश्चित करती है।
    विज्ञान और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी नवरात्र का महत्व है। ऋतुओं के संधिकाल में शरीर रोगों और असंतुलन से प्रभावित हो सकता है। उपवास, सात्त्विक आहार और संयम न केवल धार्मिक आवश्यकता हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी हैं। यही कारण है कि शास्त्रों ने नवरात्रि के दौरान उपवास और साधना को अनिवार्य बताया।

    उपासना का अर्थ है ईश्वर के निकट आसान लगाकर बैठना उसका ध्यान करना है। उसकी महिमा की स्तुति करना। उत्तम तो यह है दुर्गा सप्तशती का पाठ स्वयं करें या किसी अच्छे जानकर पंडित से पाठ करवाएं। नियम संयम से दिनचर्या बनाए रखना। निराहार रहना मात्र उपवास नहीं है। आहार का अर्थ यह भी नहीं कि आप दिनभर शहगार के नाम पर कचौरी, मठरी, नमकीन, हलवा आदि को ठूंसे जा रहे हैं। निराहार इसलिए रहना होता है ताकि याद रहे कि हम प्रभु आराधना में हैं न कि पिकनिक में।

    आज के संदर्भ में नवरात्र का अर्थ केवल देवी की प्रतिमा के सामने दीप जलाना नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में सत्य, शक्ति और समरसता का पालन करने का संदेश देती है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जब जीवन में अंधकार और अधर्म बढ़ता है, तभी आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत होकर विजय का मार्ग दिखाती है। शास्त्र हमें यह भी स्पष्ट करते हैं कि धर्म की रक्षा करने वाले की रक्षा स्वयं देवी करती हैं।
    अतः नवरात्र केवल देवी की पूजा का पर्व नहीं है। यह शक्ति, धर्म, ज्ञान और सामूहिक चेतना का महोत्सव है। यह पर्व हमें हमारे आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ता है, समाज में सहयोग और एकता की भावना बढ़ाता है और जीवन में संयम, भक्ति और शक्ति का संचार करता है। नवरात्र का पालन न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह आध्यात्मिक अनुशासन, सामाजिक चेतना और आत्मशुद्धि का अवसर है। यही कारण है कि यह पर्व आज भी पूरे भारत में श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

    आप सभी को नवरात्रि के पावन अवसर पर शक्ति संचय की शुभकामनाएं।

    ओपिनियन नवरात्र
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