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    Home»ग्राउंड Report»चुनावी शोर में दबी पहाड़ी किसानों की समस्याएं
    ग्राउंड Report

    चुनावी शोर में दबी पहाड़ी किसानों की समस्याएं

    पहाड़ी अन्नदाताओं की भी सुनो सरकार
    teerandajBy teerandajMarch 30, 2024Updated:April 12, 2024No Comments
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    चुनावी शोर में पहाड़ी किसानों की समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है।
    हमारी भी सुनो सरकार
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    चुनावी शोर में पहाड़ी किसानों की समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है।
    हमारी भी सुनो सरकार

    चुनावी शोर चरम पर है। देश के हर हिस्से में गहमागहमी है। हमारा पहाड़ भी इससे अछूता नहीं है। पर, विडंबना यह है कि इस चुनावी शोर में पहाड़ी किसानों की आवाज दब सी गई है। बड़ी-बड़ी बातों के बीच किसानों के लिए जरूरी मूलभूत सुविधाओं की बात करने वाला कोई नहीं है। चुनावी शोर के बीच तीरंदाज अर्जुन रावत अल्मोडा के चौखुटिया ब्लॉक के चौकोड़ी गांव में अन्नदाताओं के बीच पहुंचे। इस उम्मीद के साथ कि हमारे माध्यम से महिला किसानों की आवाज हुक्मरानों के कानों तक पहुंचे। ताकि वह जमीनी स्तर पर कुछ करें।

    पानी न खाद, ऊपर से छुट्टा पशुओं का उत्पात

    चौकोड़ी गांव में कुछ ही घर ऐसे हैं जहां, पुरुष मिलेंगे। कारण..सभी रोजगार के लिए दूर किसी शहर में बेहद औसत मेहनताना पर मजदूरी कर रहे हैं। पहाड़ के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी खेती महिलाओं के भरोसे ही है। खेत में जा रहीं गीता देवी बहुत परेशान दिखीं। वजह पूछने पर वह कहती हैं- छुट्टा पशुओं, जंगली जानवरों के कारण खेती करना मुश्किल हो गया है। यहां बंदरों की संख्या भी खूब है। भगाने पर जल्दी ही दोबारा आ जाते हैं। पहाड़ों पर हमेशा से खेती करना कठिन रहा है। अब हालात और बदतर हो गए हैं। कितने समय तक खेतों की रखवाली करें? अब तो जंगली सुअरों की संख्या बढ़ गई है। वे हिंसक होते हैं। जब वो झूंड में आते हैं तो हम लोगों को हट जाना होता है और वो हमारी सारी फसल तबाह कर चले जाते हैं।

    चुनावी शोर में गायब गुम हुईं असल समस्याएं

    पानी की समस्या तो है ही। खाद भी समय पर और पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलती है। रेनू देवी भी उनकी बात पर हामी भरती हैं। वह कहती हैं- घर के पास की क्यारी को बंदर पनपने नहीं दे रहे। नील गाय धान और गेहूं के खेतों को उजाड़ रही हैं। ऐसे में हम खेती करें तो कैसे?

     

    टीवी पर नहीं दिखती हमारी समस्याएं

    उर्मिला देवी की शिकायत है कि उन लोगों की समस्याओं पर बात नहीं होती। वह कहती हैं, टीवी पर दुनियाभर की बात होती रहती है। लेकिन, हमारी समस्याओं पर कभी चर्चा नहीं की जाती है। राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर बात हो मगर हमारी समस्याओं को नजरअंदाज न किया जाए।

     

    नई पीढ़ी नहीं करना चाहती है खेती

    पुष्पा देवी कहतीं हैं, नई पीढ़ी खेती बिल्कुल भी नहीं करना चाहती है। लड़के बाहर जाकर कम पैसों में छोटा मोटा काम कर लेंगे मगर घर पर रहकर खेती नहीं करेंगे। यही हाल उनकी पत्नियों का भी है। वह बाहर किसी के घर का बर्तन धो लेंगी। लेकिन, यहां नहीं रहना चाहती। इसकी वजह भी है। पहाड़ों की खेती बारिश के भरोसे होती है। जिस साल खेती नहीं हुई तब वो क्या करेंगे। सरकारें भी कई वर्षों से वादें कर रही हैं। लेकिन, पानी की व्यवस्था नहीं कर पाईं हैं। बुजुर्ग महिलाओं के भरोसे कितनी अच्छी खेती की जा सकती है।

     

    नई पीढ़ी खेती नहीं करना चाहती
    नई पीढ़ी खेती नहीं करना चाहती

    नेता आते हैं मगर सिर्फ वोट मांगने

    सीता देवी कहती हैं, अभी चुनाव का समय है। पार्टियों से जुड़े लोग आ रहे हैं। हमारी समस्याएं सुनकर चुनाव बाद ठीक कर देने का आश्वासन देकर चले जाते हैं। हमेशा की तरह। अब तो हमारे मोबाइल पर वोट मांगने के लिए फोन भी आने लगे हैं, जिसमें वो सिर्फ अपनी कहते हैं। हमारी नहीं सुनते। (मुस्कुराते हुए) पता नहीं उनके पास हमारे नंबर कैसे पहुंच गए।

     

     

    पीने के पानी की भी समस्या

    चौकोड़ी गांव में भी अन्य पहाड़ी गांवों की अपेक्षा पीने के पानी की समस्या है। रमा देवी बताती हैं, गांव में महज दो हैंडपंप हैं जो आए दिन खराब हो जाते हैं। हमको बहुत दूर से पानी लाना पड़ता है। सरकार हमारे लिए पानी की व्यवस्था तो कर ही सकती है।

     

    तीरंदाज व्यू…

    पहाड़ की समस्याएं पहाड़ सी दिखती जरूर हैं मगर ऐसा भी नहीं है कि कुछ किया न जा सके। जब पहाड़ में सुरंग बनाकर ट्रेनें चलाईं जा सकती हैं तो अन्नदाताओं के लिए खाद, पानी, बिजली की व्यवस्था की जा सकती हैं। बस जरूरत है राजनीतिक इच्छाशक्ति की।

    छुट्टा पशुओं से परेशान अन्नदाता पहाड़ी किसानों की समस्याओं की अनदेखी हमारी भी सुनो सरकार
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